Book Name:Dil Joi Kay Fazail
۱۴۱) ٭ जो अकेले हज़ारों मील लम्बी सल्त़नत के ह़ुक्मरान थे । ٭ जिन का नाम सुन कर कै़सरो किस्रा (यानी रूम और ईरान के बादशाहों) पर लर्ज़ा त़ारी हो जाता था ।
किरदारे फ़ारूक़ी पर अ़मल कीजिए !
سُبْحٰنَ اللّٰہ ! इतनी बुलन्दो बाला शानो शौकत के बा वुजूद अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते उ़मर फ़ारूके़ आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ दूसरों की कैसी दिलजूई और ख़ैर ख़्वाही करते थे । इस वाक़िए़ में हमारे लिए भी दर्स है कि अगर हमारी कोई इस्लामी बहन किसी तक्लीफ़ में हो या किसी भी मुआ़मले में उसे हमारी ज़रूरत हो और हम उस की परेशानी दूर करने की क़ुदरत रखती हों, तो हमें भी ह़ज़रते फ़ारूके़ आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की सीरत पर अ़मल करते हुवे अपनी इस्लामी बहन की दिलजूई करनी चाहिए । आइए ! दिलजूई की रग़बत पाने के लिए मज़ीद एक वाक़िआ़ सुनती हैं । चुनान्चे,
ह़ज़रते इमामे ह़सन رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ और मिस्कीनों की दिलजूई
एक मरतबा ह़ज़रते इमामे ह़सन رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ कुछ ऐसे मिस्कीनों के पास से गुज़रे जो रास्ते में बैठे लोगों से मांग रहे थे और ज़मीन पर बिखरे हुवे रोटी के बचे खुचे टुक्ड़े खा रहे थे । आप ने उन्हें सलाम किया । उन्हों ने सलाम का जवाब देने के बाद अ़र्ज़ की : ऐ नवासए रसूल ! हमारे साथ खाना तनावुल फ़रमाइए । जब उन्हों ने खाने की दावत दी, तो आप ने फ़रमाया : अल्लाह बड़ाई चाहने वालों को पसन्द नहीं फ़रमाता । फिर आप ने उन के साथ कुछ खाना खाया । जाते हुवे उन्हें सलाम किया और फ़रमाया : मैं ने तुम्हारी दावत क़बूल की, तुम भी मेरी दावत क़बूल करो । उन्हों ने अ़र्ज़ की : ह़ुज़ूर ! जैसे आप फ़रमाएं । आप ने उन्हें अपने पास आने की दावत दी । जब वोह आप के पास आए, तो आप ने उन्हें उ़म्दा खाना खिलाया और ख़ुद भी उन के साथ खाना खाया । (इह़याउल उ़लूम, 2 / 45, बि तग़य्युरिन)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! ग़ौर कीजिए ! नवासए रसूल, जिगर गोशए बतूल, ह़ज़रते इमामे ह़सन رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ कितने उ़म्दा अख़्लाक़ वाले थे, बा वुजूद बुलन्द मर्तबा होने के उन मिस्कीनों और ग़रीबों की दिलजूई की ख़ात़िर उन के साथ बैठ गए और बदले में उन्हें भी अपने घर दावत पर बुलाया । इस वाक़िए़ से येह दर्स मिलता है कि हमें भी सिर्फ़ अमीर इस्लामी बहनों के साथ नहीं बल्कि ह़ाजतमन्द इस्लामी बहनों के साथ भी प्यार और उल्फ़तो मह़ब्बत भरा बरताव (Behave) करना चाहिए ।
ह़ज़रते इमामे ह़सन رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ का मक़ाम येह है कि वोह जन्नती नौजवानों के सरदार हैं, वोह बुलन्द मर्तबा सह़ाबी हैं, वोह अहले बैत में शामिल हैं, वोह अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते मौला अ़ली رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ के शहज़ादे हैं, वोह ह़ज़रते बीबी फ़ात़िमा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا के जिगर के टुक्ड़े हैं, ह़ज़रते इमामे ह़सन رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ का मक़ाम येह है कि वोह दोनों जहां के मालिको मुख़्तार صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم के नवासे हैं मगर इस के बा वुजूद भी उन्हों ने उन ग़रीब और मिस्कीन लोगों की दावत क़बूल फ़रमाई जब कि आज हमारे मुआ़शरे में सूरते ह़ाल कितनी अ़जीब होती जा रही है, आज अगर किसी कम ह़ौसले