Book Name:Seerate Imam Ahmad Bin Hamnbal
तारीख़ों से बे ख़बर रेहती हैं । चीज़ों के ह़िसाब किताब में अक्सर परेशानी का शिकार हो जाती हैं, नमाज़ों की रक्आ़त भूल जाती हैं कि कितनी पढ़ लीं और कितनी बाक़ी रेह गईं ? किसी किताब या रिसाले को कई कई बार पढ़ लेने के बा वुजूद भी उस के मज़ामीन या मसाइल हमारे दिलो दिमाग़ में मह़फ़ूज़ नहीं हो पाते ।
बहर ह़ाल अगर हम अपने ह़ाफ़िज़े को मज़बूत़ बनाना चाहती हैं, भूलने की बीमारी से नजात पाना चाहती हैं, ह़ाफ़िज़े को मज़बूत़ बनाने के त़रीके़ जानना चाहती हैं और भूलने की बीमारी पैदा करने वाले अस्बाब के बारे में मालूमात ह़ासिल करना चाहती हैं, तो इस के लिए मक्तबतुल मदीना की किताब "ह़ाफ़िज़ा कैसे मज़बूत़ हो ?" का मुत़ालआ़ फ़रमाइए ।
ह़ाफ़िज़ा मज़बूत़ करने का आसान वज़ीफ़ा
अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ दुरूदे पाक की फ़ज़ीलत नक़्ल फ़रमाते हैं : अगर किसी शख़्स को निस्यान यानी भूल जाने की बीमारी हो, तो वोह मग़रिब और इ़शा के दरमियान इस दुरूदे पाक को कसरत से पढ़े : "اَللّٰھُمَّ صَلِّ وَسَلِّمْ وَبَارِکْ عَلٰی سَیِّدِنَا مُحَمَّدِ نِ النَّبِیِّ الْکَامِلِ وَعَلٰی اٰلِہٖ کَمَا لَا نِھَایَۃَ لِکَمَالِکَ وَعَدَدَ کَمَالِہٖ" اِنْ شَآءَ اللّٰہ ह़ाफ़िज़ा क़वी (यानी मज़बूत़) हो जाएगा । (मदनी पंजसूरह, स. 169)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! दीन की ख़ात़िर जान, माल और घर बार वग़ैरा की क़ुरबानियां देने और आज़माइशों का मुक़ाबला करने का सिलसिला बड़ा पुराना है । चुनान्चे, जब अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ السَّلَام, सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان, बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن और उ़लमाए दीन ने अपने अपने मन्सब के मुत़ाबिक़ दीने मतीन की तब्लीग़ का काम शुरूअ़ किया, तो फूलों की पत्तियों या हारों के साथ इन का इस्तिक़्बाल नहीं किया जाता था बल्कि इस एह़सान के बदले में इन पर ज़ुल्मो सितम के पहाड़ तोड़े गए, आरे से चीरा गया, कै़दो बन्द की तक्लीफे़ं दी गईं, जिस्म की खालें तक खींच ली गईं, नंगी पीठ पर कोड़े बरसाए गए, मज़ाक़ उड़ाया गया, शहरों से निकाला गया, खौलते हुवे तेल में डाला गया, गर्म रेत पर घसीटा गया, तीरो तल्वार और नेज़ों से जिस्मों को छलनी किया गया, ह़त्ता कि इस राह में कई हस्तियों ने तो जामे शहादत भी पिया, अल ग़रज़ ! इन ह़ज़रात ने दीन की ख़ात़िर इस क़दर तक्लीफे़ं बरदाश्त कीं, कि जब हम इन के बारे में सुनती हैं, तो बदन पर कपकपी त़ारी हो जाती है, दिल उदास हो जाता है, आंखों से आंसू जारी हो जाते हैं । करोड़ों ह़म्बलिय्यों के अ़ज़ीम रेहनुमा, ह़ज़रते इमाम अह़मद बिन ह़म्बल رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ का शुमार भी उन्ही औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن में होता है जिन्हों ने दीन की ख़ात़िर बहुत ज़ियादा क़ुरबानियां दीं और इन्हें भी राहे ख़ुदा में त़रह़ त़रह़ की शदीद तरीन तक्लीफ़ों का सामना करना पड़ा । चुनान्चे,