Book Name:Seerate Imam Ahmad Bin Hamnbal

कोड़े की हर ज़र्ब पर मुआ़फ़ी का एलान

          एक मौक़अ़ पर अ़ब्बासी ख़लीफ़ा, मोतसिम बिल्लाह के ह़ुक्म पर जल्लाद, ह़ज़रते इमाम अह़मद बिन ह़म्बल رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की पीठ पर बारी बारी कोड़े बरसाने लगे, जिस से मुक़द्दस पीठ ख़ून से रंगीन हो गई और खाल मुबारक उधड़ गई । इसी दौरान आप का पाजामा शरीफ़ सरकने लगा, तो बारगाहे इलाही में दुआ़ की : ऐ अल्लाह पाक ! तू जानता है कि मैं ह़क़ पर हूं, मुझे बे पर्दगी से बचा ले । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ पाजामा शरीफ़ मज़ीद सरकने से रुक गया और फिर आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ बेहोश हो गए । जब तक होश क़ाइम था कोड़े की हर चोट पर फ़रमाते : मैं ने मोतसिम बिल्लाह का क़ुसूर मुआ़फ़ किया । बाद में लोगों ने जब आप से इस की वज्ह पूछी, तो फ़रमाया : मोतसिम बिल्लाह, ह़ुज़ूर नबिय्ये करीम  صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم के चचाजान, ह़ज़रते अ़ब्बास رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की औलाद में से है, मुझे इस बात से शर्म आती है कि क़ियामत के दिन कहीं येह न केह दिया जाए कि अह़मद बिन ह़म्बल ने नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم के चचाजान की औलाद को मुआ़फ़ नहीं किया ।

        ह़ज़रते फ़ुज़ैल बिन इ़याज़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ह़ज़रते इमाम अह़मद बिन ह़म्बल رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ को मुसल्सल अठ्ठाईस महीने (यानी सवा दो साल से ज़ाइद) कै़द में रखा गया, इस दौरान आप पर हर रात कोड़े बरसाए जाते, यहां तक कि आप पर बेहोशी त़ारी हो जाती, तल्वार के ज़ख़्म लगाए गए, पाउं तले रौंदा गया मगर मरह़बा इस्तिक़ामत ! मुसीबतों के पहाड़ टूटने के बा वुजूद आप साबित क़दम रहे । ह़ज़रते अ़ल्लामा ह़ाफ़िज़ इबने जौज़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ, मुह़म्मद बिन इस्माई़ल رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ से नक़्ल करते हैं : ह़ज़रते इमाम अह़मद बिन ह़म्बल رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ को 80 कोड़े ऐसे मारे गए कि अगर हाथी को मारे जाते, तो वोह भी चीख़ उठता मगर वाह रे सब्रे इमाम ! (फै़ज़ाने सुन्नत, 1 / 414, 415)

          मन्क़ूल है : जब आप को मारा गया और ज़ुल्मो सितम ढाए गए, तो आप साबित क़दम रहे जिस की वज्ह से मशरिक़ो मग़रिब वालों के पसन्दीदा बन गए । आप हमेशा लोगों की निगाहों में बा इ़ज़्ज़त रहे, यहां तक कि जब लोग आप को देखते, तो गोया वोह किसी शेर को देख रहे होते । (الروض الفائق،ص ۲۲۱)

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आप ने सुना कि मश्हूर मुह़द्दिस और वली, ह़ज़रते इमाम अह़मद बिन ह़म्बल رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ पर कैसी कैसी सख़्त आज़माइशें आईं मगर आप ने रोने धोने, चीख़ने चिल्लाने, शिक्वे शिकायात, बे सब्री और ना शुक्री करने की बजाए सब्रो रिज़ा का दामन थामे रखा और रब्बे करीम की रिज़ा पर राज़ी रहे, इस लिए कि उन्हें मालूम था कि मुसीबतों और आज़माइशों का आना तक्लीफ़ का सबब नहीं बल्कि रह़मत व सआ़दत का सबब है । मुसीबत में मुब्तला फ़र्द से अल्लाह पाक भलाई का इरादा फ़रमाता है, मुसीबत में मुब्तला होने वाली के गुनाह बख़्श दिए जाते हैं, आज़माइश में मुब्तला फ़र्द को अल्लाह पाक बे ह़िसाब अ़त़ा फ़रमाता है और मुसीबत छुपाने वाली को बारगाहे इलाही से मग़फ़िरत का परवाना अ़त़ा किए जाने की ख़ुश ख़बरी है । लिहाज़ा हमें येह ज़ेहन बनाना चाहिए कि चाहे कितनी ही मुसीबतें आ पड़ें, आज़माइशों के त़ूफ़ान