Book Name:Seerate Imam Ahmad Bin Hamnbal
फ़रमाते थे । आप तीन बार सुकून में आते और तीन बार आप की चीख़ बुलन्द होती । (حلیۃ الاولیاء،الامام احمد بن حنبل،۹/۱۹۲، رقم:۱۳۶۵۸)
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आप ने सुना कि मश्हूरे ज़माना बुज़ुर्ग, ह़ज़रते इमाम अह़मद बिन ह़म्बल رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ किस क़दर इ़बादत किया करते थे । अब ज़रा हम अपना एह़तिसाब करें कि हमें नमाज़, रोज़ों और तिलावते क़ुरआन से कितनी मह़ब्बत है । नमाज़ की अहम्मिय्यत का अन्दाज़ा इस बात से लगाइए कि रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ने इरशाद फ़रमाया : क़ियामत के दिन बन्दे के आमाल में से सब से पेहले नमाज़ देखी जाएगी, अगर वोह कामिल पाई गई, तो वोह भी और उस के सारे आमाल भी क़बूल होंगे और अगर उस में कमी हुई, तो वोह भी और दीगर सब आमाल भी मर्दूद हो जाएंगे । (موطا امام مالک،کتاب قصر الصلاۃ فی السفر،باب جامع الصلاۃ،۱/۱۶۹،حدیث:۴۲۸بتغیر)
नफ़्ल रोज़े की फ़ज़ीलत बयान करते हुवे फ़रमाया : जिस ने एक दिन का नफ़्ल रोज़ा रखा, अल्लाह पाक उसे दोज़ख़ से इतना दूर कर देगा जितना ज़मीनो आसमान का दरमियानी फ़ासिला है । (معجم کبیر،۱۷/۱۲۰،حدیث:۲۹۵) और तिलावते क़ुरआन की फ़ज़ीलत बयान करते हुवे इरशाद फ़रमाया : मेरी उम्मत की अफ़्ज़ल इ़बादत तिलावते क़ुरआन है । (شعب الایمان،باب فی تعظیم القرآن، ۲/۳۵۴، حدیث: ۲۰۲۲)
मगर अफ़्सोस ! हम इन इ़बादात से ग़ाफ़िल रेहती हैं, हमारा अक्सर वक़्त सहेलियों की बैठकों, फ़ुज़ूल क़िस्से कहानियां पढ़ने और फ़ुज़ूल तबसिरों में गुज़र जाता है । अज़ानें हो जाती हैं, नमाज़ों के अवक़ात रुख़्सत हो जाते हैं मगर अफ़्सोस ! कई इस्लामी बहनें नफ़्ल नमाज़ मसलन तहज्जुद, अव्वाबीन, इशराक़ व चाश्त, सलातुत्तौबा और दीगर मुबारक रातों के नवाफ़िल पढ़ना तो दूर की बात है, फ़र्ज़ नमाज़ों की अदाएगी के लिए भी तय्यार नहीं होतीं । नमाज़ की दावत दी जाए, तो जवाब मिलता है : जुम्आ़ से पढ़ेंगी, ह़ज या उ़मरह कर लें फिर पढ़ेंगी, कपड़े या बदन नापाक है वग़ैरा । इसी त़रह़ क़ुरआने पाक पढ़ने, सीखने, इस को समझने और अ़मल करने के बजाए मस्जिदों में रखवा दिया जाता है, जिन को पढ़ना आता भी है, तो ह़ालत येह है कि सालों गुज़र जाते हैं मगर उन्हें इस प्यारी किताब को खोल कर देखने की फ़ुर्सत तक नहीं मिलती, इसे अब ईसाले सवाब का ज़रीआ़ बना लिया गया है या ख़त्म दिलाने वग़ैरा तक मह़दूद कर दिया गया है । यूंही मोह़र्रम, रजब, शाबान और शव्वाल में भी नफ़्ल रोज़े रखने का बेहतरीन मौक़अ़ होता है मगर इन महीनों में भी रोज़े रखने वालियों की तादाद बहुत ही कम है । अफ़्सोस की बात तो येह है कि अब तो माहे रमज़ान जैसे मुक़द्दस और बरकतों वाले महीने के फ़र्ज़ रोज़े रखने का रुजह़ान भी तेज़ी के साथ दम तोड़ता दिखाई दे रहा है ।
बहर ह़ाल अगर हम चाहती हैं कि हमारे अन्दर भी फ़र्ज़ इ़बादात के साथ साथ नफ़्ल इ़बादात का ज़ौक़ो शौक़ बेदार हो जाए, इ़बादात में हमारी सुस्तियां ख़त्म हो जाएं, हम नमाज़ों की पाबन्दी करने वाली बन जाएं, नफ़्ल रोज़ों की तह़रीक हमारे अन्दर पैदा हो जाए, रोज़ाना तिलावते क़ुरआन करने की सआ़दत पर इस्तिक़ामत नसीब हो जाए, तो आइए ! नमाज़ी बनाओ तह़रीक, नफ़्ल रोज़ों की तह़रीक, फै़ज़ाने क़ुरआन से फै़ज़याब करने वाली तह़रीक दावते इस्लामी के मदनी माह़ोल में आ जाइए, दावते इस्लामी के तह़्त होने वाले हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में