Book Name:Sadqa ke Fawaid
लिए कुछ त़लब फ़रमा रहे हैं और येह भी इरशाद फ़रमा रहे हैं कि जो इस को चार दराहिम देगा, मैं उस के लिए चार दुआ़एं करूंगा । एक वलिय्ये कामिल की रह़मत भरी आवाज़ सुन कर ग़ुलाम ने चार दराहिम उस फ़क़ीर को पेश कर दिए । ह़ज़रते मन्सूर رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने फ़रमाया : बताओ ! कौन कौन सी दुआ़एं करवाना चाहते हो ? अ़र्ज़ की : (1) मेरा एक आक़ा है, मैं चाहता हूं कि उस की ग़ुलामी से आज़ाद हो जाऊं । (2) मुझे इन दराहिम का बदला मिल जाए । (3) अल्लाह करीम मुझे और मेरे आक़ा को तौबा की तौफ़ीक़ अ़त़ा करे । (4) अल्लाह पाक मेरी, मेरे आक़ा की, आप की और तमाम लोगों की बख़्शिश फ़रमा दे । ह़ज़रते मन्सूर رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने उस के लिए दुआ़ फ़रमा दी । ग़ुलाम अपने आक़ा के पास देर से पहुंचा, आक़ा ने देर से आने का सबब पूछा, तो उस ने सारा वाक़िआ़ सुना दिया । आक़ा ने उस से पूछा : ह़ज़रते मन्सूर رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने किस चीज़ के बारे में दुआ़ की ? ग़ुलाम बोला : पेहली दुआ़ येह की, कि तू मुझे आज़ाद कर दे । येह सुन कर आक़ा ने कहा : जा ! तू रिज़ाए इलाही के लिए आज़ाद है । पूछा : दूसरी दुआ़ कौन सी करवाई ? कहा : मुझे मेरे दराहिम का अच्छा बदला मिल जाए । आक़ा बोल उठा : मेरी त़रफ़ से तेरे लिए चार दिरहम के बदले चार हज़ार दराहिम हैं । पूछा : तीसरी दुआ़ क्या थी ? बोला : अल्लाह करीम तुझे तौबा की तौफ़ीक़ अ़त़ा करे । येह सुनते ही आक़ा केहने लगा : मैं ने अल्लाह पाक की बारगाह में अपने तमाम गुनाहों से तौबा की । फिर कहा : चौथी दुआ़ क्या थी ? ग़ुलाम ने जवाब दिया : रब्बे करीम मेरी, आप की, ह़ज़रते मन्सूर की और इजतिमाअ़ में तमाम मौजूद लोगों की मग़फ़िरत फ़रमाए । येह सुन कर आक़ा ने कहा : येह मेरे इख़्तियार से बाहर है । जब रात हुई, तो आक़ा ने ख़्वाब में किसी केहने वाले को केहते हुवे सुना : जो तुम्हारे इख़्तियार में था वोह तुम ने कर दिया, मैं सब से बढ़ कर रह़म करने वाला हूं, मैं ने तुम्हें, तुम्हारे ग़ुलाम को, मन्सूर बिन अ़म्मार को और वहां मौजूद तमाम लोगों को बख़्श दिया । (روض الریاحین ، الحکایۃ السادسۃ بعدالمئتین ، ص۱۹۹ملخصاً)
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! इस ह़िकायत से मालूम हुवा ! अल्लाह वालों की दुआ़एं ह़ासिल करने का कोई मौक़अ़ हाथ से नहीं जाने देना चाहिए, अल्लाह पाक के येह नेक बन्दे जब अल्लाह पाक से दुआ़ करते हैं, तो वोह इन की दुआ़ओ़ं को क़बूल फ़रमाता है । اَلْحَمْدُ لِلّٰہ अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ नेकियों के शैदाई हैं और नेक कामों की तरग़ीब के लिए मुख़्तलिफ़ दुआ़एं इरशाद फ़रमाते रेहते हैं । कभी हफ़्तावार रिसाला पढ़ने, सुनने वालियों के लिए दुआ़ इरशाद फ़रमाते हैं, तो कभी मदनी इनआ़मात पर अ़मल करने वालियों को दुआ़ओं से नवाज़ते हैं । हमें भी चाहिए कि अल्लाह पाक के इस मक़्बूल वली की दुआ़एं पाने का कोई मौक़अ़ हाथ से जाने न दें, क्या मालूम इन की कौन सी दुआ़ हमारी दुन्या व आख़िरत को बेहतर बना दे ।
इसी ह़िकायत से येह भी मालूम हुवा ! जो अल्लाह पाक की राह में इख़्लास के साथ सदक़ा करता है, अल्लाह पाक उस को ज़रूर अज्र अ़त़ा फ़रमाता है, लिहाज़ा हमें भी चाहिए कि वक़्तन फ़ वक़्तन जितनी तौफ़ीक़ हो, ज़रूर सदक़ा किया करें, اِنْ شَآءَ اللّٰہ इस की बे शुमार दीनी व दुन्यावी बरकतें ह़ासिल होंगी । अल्लाह पाक की राह में सदक़ा व ख़ैरात करने की अहम्मिय्यत व फ़ज़ीलत