Book Name:Sadqa ke Fawaid
का अन्दाज़ा इस बात से लगाइए कि ख़ुद हमारे प्यारे रब्बे करीम ने क़ुरआने करीम में सदक़ा व ख़ैरात करने का ह़ुक्म इरशाद फ़रमाया और मुख़्तलिफ़ मक़ामात पर सदक़ा व ख़ैरात करने वालों की तारीफ़ भी फ़रमाई है । चुनान्चे, पारह 1, सूरतुल बक़रह की आयत नम्बर 2 और 3 में इरशाद होता है :
هُدًى لِّلْمُتَّقِیْنَۙ(۲) الَّذِیْنَ یُؤْمِنُوْنَ بِالْغَیْبِ وَ یُقِیْمُوْنَ الصَّلٰوةَ وَ مِمَّا رَزَقْنٰهُمْ یُنْفِقُوْنَۙ(۳) )پ۱ ، البقرۃ : ۳ ، ۲(
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : इस में डरने वालों के लिए हिदायत है, वोह लोग जो बिग़ैर देखे ईमान लाते हैं और नमाज़ क़ाइम करते हैं और हमारे दिए हुवे रिज़्क़ में से कुछ (हमारी राह में) ख़र्च करते हैं ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! वाके़ई़ बहुत ख़ुश नसीब हैं वोह इस्लामी बहनें जो अपने माल के वोह ह़ुक़ूक़ अदा करती हैं जिन का अदा करना उन पर लाज़िम व ज़रूरी है । ٭ जो ख़ुश दिली से वक़्त पर पूरी पूरी ज़कात व फ़ित़्रा अदा करती हैं । ٭ जो अपने माल को मां-बाप, बहन, भाई और औलाद पर ख़र्च करती हैं । ٭ जो अपने रिश्तेदारों (Relatives) की मौत पर उन को सवाब पहुंचाने के लिए सोइम, दसवां, चालीसवां और बरसी वग़ैरा कर के ग़रीबों और मोह़ताजों को खाना खिलाती हैं । ٭ जो सवाब पहुंचाने के लिए मक्तबतुल मदीना के रसाइल तक़्सीम करती हैं । ٭ जो अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ लंगरे रज़विय्या करती हैं । ٭ जो लोगों के ह़ुक़ूक़ का लिह़ाज़ रखते हुवे इख़्लास के साथ क़ुरआन ख़्वानी, मेह़फ़िले नात और सुन्नतों भरे इजतिमाआ़त पर ख़र्च करती हैं । ٭ जो जामिआ़तुल मदीना, मदारिसुल मदीना और दीगर शोबाजाते दावते इस्लामी की तामीर व तरक़्क़ी और अख़राजात में ह़िस्सा लेती हैं । ٭ जो दीनी त़ालिबात पर अपना माल ख़र्च करती हैं । इख़्लास के साथ इस त़रह़ ख़र्च करने वालियों को अल्लाह पाक अपने फ़ज़्ल से दुगना बल्कि इस से भी ज़ियादा अ़त़ा फ़रमाएगा । आइए ! आप भी अल्लाह पाक की रिज़ा के लिए अपना चन्दा दावते इस्लामी को दीजिए और दूसरों को भी इस की तरग़ीब दिलाइए ।
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! क़ुरआनो ह़दीस में सदक़ा व ख़ैरात करने और अल्लाह पाक की राह में ख़र्च करने के कई फ़ज़ाइल आए हैं । राहे ख़ुदा में ख़र्च करना इन्सान की अपनी ज़ात के लिए भी मुफ़ीद है, जो दिल खोल कर नेकी के कामों में ख़र्च करती हैं, ग़रीबों, मोह़ताजों की मदद करती हैं, उन के माल में ह़ैरत अंगेज़ त़ौर पर त़रक़्क़ी व बरकत होती चली जाती है । चुनान्चे, पारह 3, सूरतुल बक़रह, आयत नम्बर 261 में इरशाद होता है :
مَثَلُ الَّذِیْنَ یُنْفِقُوْنَ اَمْوَالَهُمْ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ كَمَثَلِ حَبَّةٍ اَنْۢبَتَتْ سَبْعَ سَنَابِلَ فِیْ كُلِّ سُنْۢبُلَةٍ مِّائَةُ حَبَّةٍؕ-وَ اللّٰهُ یُضٰعِفُ لِمَنْ یَّشَآءُؕ-وَ اللّٰهُ وَاسِعٌ عَلِیْمٌ(۲۶۱) )پ۳ ، البقرۃ : ۲۶۱(
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : उन लोगों की मिसाल जो अपने माल अल्लाह की राह में ख़र्च करते हैं, उस दाने की त़रह़ है जिस ने सात बालियां उगाईं, हर बाली में सौ दाने हैं और अल्लाह इस से भी ज़ियादा बढ़ाए जिस के लिए चाहे और अल्लाह वुस्अ़त वाला, इ़ल्म वाला है ।
इस आयते मुबारका के तह़्त "तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान" जिल्द 1, सफ़ह़ा नम्बर 395 पर लिखा है : राहे ख़ुदा में ख़र्च करने वालों की फ़ज़ीलत एक मिसाल के ज़रीए़ बयान की जा रही है कि