Book Name:Sadqa ke Fawaid
1. इरशाद फ़रमाया : اِنَّ الصَّدَقَۃَ لَتُطْفِئُ غَضَبَ الرَّبِّ وَ تَدْفَعُ مِیْتَۃَ السُّوْ ءِ बेशक सदक़ा रब के ग़ज़ब को बुझाता और बुरी मौत को दूर करता है । (ترمذی ، کتاب الزکاۃ ، باب ما جاء فی فضل الصدقة ، ۲ / ۱۴۶ ، حديث : ۶۶۴)
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! बयान कर्दा अह़ादीसे मुबारका से मालूम हुवा ! ٭ सदक़ा बुराइयों के दरवाज़े बन्द करता है । ٭ सदक़ा देने वाली क़ियामत के दिन अपने सदके़ के साए में होगी । ٭ सदक़ा क़ब्र की गर्मी से बचाता है । ٭ गुनाहों को ऐसे मिटा देता है जैसे पानी आग को । ٭ बलाओं को रोकता है । ٭ उ़म्र में बरकत का सबब बनता है । ٭ बुरी मौत और बुरे ख़ातिमे से बचाता है । ٭ तकब्बुर और ग़ुरूर की आ़दत (Habit) का ख़ातिमा करता है । ٭ आग से रुकावट बनता है । ٭ अल्लाह पाक के ग़ज़ब को बुझाता है । अल ग़रज़ ! सदक़ा कई भलाइयों के दरवाज़े खोलता है और कई बुराइयों के दरवाज़े बन्द करता है ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! राहे ख़ुदा में देते वक़्त शैत़ान येह वस्वसा डालता है कि अगर मैं ने इधर पैसे दे दिए, तो घर का ख़र्चा कैसे चलेगा ? अपनी ज़रूरतें कैसे पूरी होंगी ? मेरे घर बार, बाल बच्चों के अख़राजात कैसे चलेंगे ? याद रखिए ! येह सब शैत़ान के वस्वसे हैं । सदक़ा देने से माल कम नहीं होता । चुनान्चे, ह़ज़रते अबू कब्शा अन्मारी رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ से रिवायत है, उन्हों ने मक्की मदनी मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم को फ़रमाते हुवे सुना : एक बात कि जिस पर मैं क़सम खाता हूं (वोह येह है कि) किसी बन्दे का माल सदक़ा करने से कम नहीं होता । (مسند امام احمد ، مسند عبد الرحمن بن عوف ، ۱ / ۵۱۵ ، حديث : ۱۶۷۴)
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! इख़्लास से दिया हुवा सदक़ा कैसी कैसी बरकतें लाता है ? आइए ! इस बारे में कुछ ह़िकायतें सुनती हैं ।
ख़र्च करो, अल्लाह करीम अ़त़ा फ़रमाएगा
ह़ज़रते कै़स बिन सल्अ़ अन्सारी رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ फ़रमाते हैं : उन के भाइयों ने रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم से उन की शिकायत (Complaint) की, कि वोह फ़ुज़ूल ख़र्ची करते हैं और इस मुआ़मले में बहुत खुला हाथ है । नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ने उन से फ़रमाया : तुम्हारे भाइयों का क्या मस्अला है ? वोह इस गुमान पर तुम्हारी शिकायत कर रहे हैं कि तुम अपने माल में बहुत फ़ुज़ूल ख़र्ची करते हो और तुम्हारा हाथ बहुत खुला है । मैं ने अ़र्ज़ की : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ! मैं आमदनी में से अपना ह़िस्सा ले कर अल्लाह करीम की राह में और अपने दोस्तों में ख़र्च कर देता हूं । तो रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ने मेरे सीनए अक़्दस पर हाथ मुबारक रखा और 3 मरतबा फ़रमाया : ख़र्च कर, अल्लाह करीम तुझे अ़त़ा फ़रमाएगा । (ह़ज़रते कै़स رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ फ़रमाते हैं :) इस के बाद जब भी मैं राहे ख़ुदा में निकलता, तो मेरे पास अपनी सुवारी होती और आज मेरा येह ह़ाल है कि मैं माल व आसाइश में अपने भाइयों से बढ़ कर हूं । (معجم اوسط ، ۶ / ۲۱۰ ، حدیث : ۸۵۳۶)