Book Name:Achy amaal ki barkaten

उठा : मैं ने तुझे चार दिरहम के बदले चार हज़ार दिरहम दिए । पूछा : तीसरी दुआ़ क्या थी ? बोला : मुझे और मेरे आक़ा को गुनाहों से तौबा की तौफ़ीक़ नसीब हो जाए । येह सुनते ही आक़ा की ज़बान पर इस्तिग़फ़ार जारी हो गया और केहने लगा : मैं अल्लाह पाक की बारगाह में अपने तमाम गुनाहों से तौबा करता हूं । फिर कहा : चौथी दुआ़ क्या थी ? ग़ुलाम ने जवाब दिया : मैं ने इल्तिजा की, कि मेरी, मेरे आक़ा की, आप जनाब की और तमाम ह़ाज़िरीने इजतिमाअ़ की मग़फ़िरत हो जाए । येह सुन कर आक़ा ने कहा : तीन बातें जो मेरे इख़्तियार में थीं वोह मैं ने कर ली हैं, चौथी बात कि सब की मग़फ़िरत हो जाए, येह मेरे इख़्तियार से बाहर है । दिन गुज़रा, जब रात हुई, तो उसी आक़ा ने ख़्वाब में किसी केहने वाले को सुना : जो तुम्हारे इख़्तियार में था वोह तुम ने कर दिया और मैं अर्ह़मुर्राह़िमीन हूं, मैं ने तुम्हें, तुम्हारे ग़ुलाम, मन्सूर और वहां मौजूद तमाम ह़ाज़िरीन को बख़्श दिया । ( روض الریاحین، ص۲۲۲)

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! बयान कर्दा ह़िकायत से तीन बातें ह़ासिल हुईं : (1) इस ह़िकायत से येह मालूम हुवा कि अल्लाह वालों की दुआ़एं ह़ासिल करने का कोई मौक़अ़ हाथ से नहीं जाने देना चाहिए, अल्लाह पाक के येह नेक बन्दे जब अल्लाह पाक से किसी चीज़ का सुवाल करते हैं, तो वोह उन के सुवालात को रद्द नहीं फ़रमाता । (2) दूसरी बात येह पता चली कि इन्सान को मालूम हो या न हो मगर नेक अ़मल की बरकतें ज़रूर मिलती हैं, हां ! कभी वोह बरकतें ज़ाहिर हो जाती हैं और कभी ज़ाहिर नहीं होतीं । इस लिए कोई भी नेक अ़मल चाहे कितना छोटा ही क्यूं न हो, हमें उसे छोड़ना नहीं चाहिए । नेक आमाल का इस दुन्या में भी फ़ाइदा होता है मगर हमें हर बार नज़र नहीं आता, आख़िरत में अल्लाह पाक की रह़मत से ज़रूर इस का फ़ाइदा होगा और हमें नज़र भी आएगा । (3) तीसरी बात येह भी मालूम हुई कि सदक़ा देने की बड़ी बरकतें हैं । सदक़ा देने से बलाएं टलती हैं, सदक़ा देने से मुसीबतें दूर होती हैं, सदक़ा देने से परेशानियां ख़त्म होती हैं, सदक़ा देने से बीमारियों से नजात मिलती है, लिहाज़ा राहे ख़ुदा में दिल खोल कर ख़र्च करना चाहिए । याद रखिए ! सदक़ा करने का येह मत़लब नहीं कि हम जब तक अमीरो कबीर न हो जाएं, ख़ूब बैंक बेलन्स (Bank Balance) न बना लें, उस वक़्त तक सदक़ा ही न करें बल्कि हमें जैसी त़ाक़त है उस के मुत़ाबिक़ छोटी सी चीज़ भी सिर्फ़ अल्लाह पाक की रिज़ा के लिए ख़र्च करेंगी, तो इस का फ़ाइदा दुन्या में भी मिलेगा और आख़िरत में भी नजात का सबब होगा ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

नेक अ़मल पर आख़िरत का मदार है

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! इस में कोई शक नहीं कि जब मौत आती है, तो घरवाले यहीं रेह जाते हैं, सिर्फ़ मय्यित को तंग व अन्धेरी क़ब्र में उतार दिया जाता है । हां ! सिर्फ़ नेक अ़मल ही क़ब्र में काम आता है । उ़मूमी सूरते ह़ाल येह होती है कि हर फ़र्द बस इसी फ़िक्र में मुब्तला हो जाता है कि मेरा क्या बनेगा ? इस बात की फ़िक्र शायद किसी को नहीं होती कि मय्यित के साथ क्या होगा ? बद क़िस्मती के साथ बसा अवक़ात ऐसा भी होता है कि मय्यित अभी घर पर रखी होती है