Book Name:Shetan Ki Insan Se Dushmani

इस फे़ल पर कोई अफ़्सोस न हुवा, तो इस के तकब्बुर करने की वज्ह से अल्लाह पाक ने हमेशा के लिए इसे अपनी बारगाह से मर्दूद क़रार दे कर निकाल दिया । ख़िन्ज़ीर की त़रह़ लटका हुवा मुंह, सर ऊंट के सर की त़रह़, सीना बड़े ऊंट की कोहान जैसा, चेहरा ऐसे जैसे बन्दर का चेहरा, आंखे खड़ी, नथने हज्जाम के कूजे़ जैसे खुले हुवे, होंट बैल के होटों की त़रह़ लटके हुवे, दांत ख़िन्ज़ीर की त़रह़ बाहर निकले हुवे और दाढ़ी में सिर्फ़ सात बाल, इसी सूरत में इसे जन्नत से नीचे फेंक दिया गया और क़ियामत तक के लिए लानत का ह़क़दार बन गया है और तब से येह इब्लीस, मर्दूद और शैत़ान के नाम से मश्हूर हो गया । (मुकाशफ़तुल क़ुलूब, स. 79)

तकब्बुर की तबाहकारियां

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! अभी हम ने शैत़ान के मुतअ़ल्लिक़ सुना कि येह कितना बड़ा इ़बादत गुज़ार, इ़ल्म वाला था लेकिन इस को एक गुनाह की वज्ह से बारगाहे इलाही से मर्दूद क़रार दे कर निकाल दिया गया और वोह गुनाह है "तकब्बुर" । ٭ तकब्बुर शैत़ान के हथयारों में से एक हथयार है, जिस के ज़रीए़ येह लोगों से अपनी दुश्मनी ज़ाहिर करता और लोगों को गुमराह कर के उन को अल्लाह पाक की नाराज़ी के गढ़े में धकेल देता है ।

          याद रखिए ! ٭ तकब्बुर हलाक कर देने वाली आ़दत है । ٭ तकब्बुर करने वाले अल्लाह पाक के ना पसन्दीदा बन्दे हैं । ٭ तकब्बुर करने वाले बद नसीबों के दिलों पर अल्लाह पाक मोहर लगा देता है । ٭ तकब्बुर करने वाले क़ुरआनी आयात में ग़ौरो फ़िक्र करने और इन से इ़ब्रत व नसीह़त ह़ासिल करने से मह़रूम हो जाते हैं ٭ और ऐसे बद बख़्त ज़लीलो रुस्वा हो कर दोज़ख़ (Hell) में दाख़िल किए जाएंगे । आइए ! तकब्बुर की तारीफ़ सुनती हैं ।

तकब्बुर की तारीफ़

          ख़ुद को अफ़्ज़ल, दूसरों को ह़क़ीर जानने का नाम "तकब्बुर" है । चुनान्चे, प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : तकब्बुर ह़क़ की मुख़ालफ़त और लोगों को ह़क़ीर जानने का नाम है ।  (مسلم،کتاب الایمان،باب تحریم الکبروبیانہ، ص۶۱،حدیث:۹۱) इमाम राग़िब इस्फ़हानी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ लिखते हैं : तकब्बुर येह है कि इन्सान अपने आप को दूसरों से अफ़्ज़ल समझे । (المُفرَدات للرّاغب، ص۶۹۷) जिस कि दिल में तकब्बुर पाया जाए उसे "मुतकब्बिर" केहते हैं ।

तकब्बुर से बचने के त़रीके़

          तकब्बुर से नजात पाने के लिए आ़जिज़ी के फ़ज़ाइल को सामने रखिए और इस त़रह़ "ग़ौरो फ़िक्र" यानी अपना मुह़ासबा कीजिए कि मैदाने मह़शर में हर एक अपने किए का ह़िसाब देगा, तो मुझे भी अपने रब्बे करीम की बारगाह में अपने आमाल का ह़िसाब देना पड़ेगा, अगर तकब्बुर की वज्ह से मेरा रब्बे करीम मुझ से नाराज़ हो गया और मुझे दोज़ख़