Book Name:Siddique e Akbar Ki Sakhawat

ज़िक्र है । इस के बारे में अ़र्ज़ है कि आज कल उ़मूमन येही अदला बदला हो रहा है । एक रिश्तेदार अगर इस को शादी की दावत (Invitation) देती है, जभी येह उस को दावत देती है, अगर वोह न दे, तो येह भी नहीं देती । अगर उस एक ने इस को ज़ियादा अफ़राद की दावत दी और येह अगर उस को कम अफ़राद की दावत दे, तो इस का ठीक ठाक नोटिस लिया जाता, ख़ूब तन्क़ीदें और ग़ीबतें की जाती हैं । बद क़िस्मती से इ़ल्मे दीन से दूरी की वज्ह से आज कल मुआ़शरे में येह माह़ोल भी आ़म होता जा रहा है कि किसी मौक़अ़ पर लेन देन के मुआ़मलात में भी येही अन्दाज़ इख़्तियार किया जाता है कि जितने पैसे (नियोता) फ़ुलां ने दिए, हम भी उतने ही देंगी, ह़त्ता कि बाज़ नादान इस्लामी बहनें अपनी किसी रिश्तेदार के फ़ौत होने पर उस की ताज़ियत को नहीं जातीं, सगे भाइयों और बहनों की ख़ुशी और ग़म में शरीक नहीं होतीं । इसी त़रह़ जो रिश्तेदार इस के यहां किसी तक़रीब में शिर्कत नहीं करती, तो येह उस के यहां होने वाली तक़रीब का बाईकॉट कर देती है और यूं फ़ासिले मज़ीद बढ़ाए जाते हैं, ह़ालांकि कोई इस्लामी बहन हमारे यहां शरीक न हुई हो, तो उस के बारे में अच्छा गुमान रखने के कई पेहलू निकल सकते हैं, मसलन वोह न आने वाली बीमार हो गई होगी, भूल गई होगी, ज़रूरी काम आ पड़ा होगा या कोई सख़्त मजबूरी होगी जिस की वज़ाह़त उस के लिए दुशवार हो गई होगी वग़ैरा । वोह अपनी ग़ैर ह़ाज़िरी का सबब बताए या न बताए, हमें अच्छा गुमान रख कर सवाब कमाना और जन्नत में जाने का सामान करना चाहिए । फ़रमाने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ है : حُسْنُ الظَّنِِّ مِن حُسْنِِ الْعِبَادَۃِ अच्छा गुमान बेहतरीन इ़बादत से है । (ابوداود،کتاب الادب،باب فی حسن الظن ،۴ /۳۸۸،حدیث: ۴۹۹۳)

ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ इस ह़दीसे पाक के मुख़्तलिफ़ मत़ालिब बयान करते हुवे लिखते हैं : यानी मुसलमानों से अच्छा गुमान करना, उन पर बद गुमानी न करना येह भी अच्छी इ़बादात में से एक इ़बादत है । (मिरआतुल मनाजीह़, 6 / 621)