Book Name:Tahammul Mizaji ki Fazilat
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! सह़ाबिए रसूल, ह़ज़रते अमीरे मुआ़विया رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की क़ुव्वते बरदाश्त से सबक़ ह़ासिल करते हुवे हमें भी बुर्दबारी का जज़्बा पैदा करना चाहिए, तह़म्मुल मिज़ाज बनना चाहिए, अपने अन्दर नर्मी और मुआ़फ़ करने की आ़दात पैदा करनी चाहिएं, दूसरों से हमेशा अच्छे सुलूक से पेश आना चाहिए, अपने मह़ारिम या दीगर इस्लामी बहनों को तह़ाइफ़ देने की आ़दत बनानी चाहिए । ऐसी आ़दतों से जहां आपस के तअ़ल्लुक़ात (Relations) मज़बूत़ होंगे, आपस की मह़ब्बतों में इज़ाफ़ा होगा, वहीं मुआ़शरे में ख़ुश गवार फ़ज़ा भी क़ाइम होगी ।
तह़म्मुल मिज़ाजी के क्या माना हैं ?
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! तह़म्मुल मिज़ाजी का माना है : बरदाश्त करना, ग़ुस्सा न करना, आपे से बाहर न हो । जब कि तह़म्मुल मिज़ाजी की येह तारीफ़ बयान की गई है कि ग़ुस्से के वक़्त पुर सुकून और मुत़्मइन रेहना । (کتاب التعریفات ، ص۶۶ ، ماخوذاً)
येह एक ऐसा बेहतरीन अ़मल है कि जो ख़ुश नसीब मुसलमान येह अ़मल करता है, उस का शुमार रब्बे करीम के पसन्दीदा बन्दों में होता है । चुनान्चे, पारह 4, सूरए आले इ़मरान की आयत नम्बर 134 में अल्लाह करीम का फ़रमान है :
وَ الْكٰظِمِیْنَ الْغَیْظَ وَ الْعَافِیْنَ عَنِ النَّاسِؕ-وَ اللّٰهُ یُحِبُّ الْمُحْسِنِیْنَۚ(۱۳۴) (پ ۴ ، آل عمران : ۱۳۴)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और ग़ुस्सा पीने वाले और लोगों से दरगुज़र करने वाले और अल्लाह नेक लोगों से मह़ब्बत फ़रमाता है ।
जब कि एक और आयते मुबारका में मुआ़फ़ करने और सब्र व बरदाश्त की तालीम इस त़रह़ दी गई है । चुनान्चे, पारह 18, सूरए नूर की आयत नम्बर 22 में इरशाद होता है :
وَ لْیَعْفُوْا وَ لْیَصْفَحُوْاؕ-اَلَا تُحِبُّوْنَ اَنْ یَّغْفِرَ اللّٰهُ لَكُمْؕ-وَ اللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ(۲۲) (پ ۱۸ ، النور : ۲۲)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और उन्हें चाहिए कि मुआ़फ़ कर दें और दरगुज़र करें, क्या तुम इस बात को पसन्द नहीं करते कि अल्लाह तुम्हारी बख़्शिश फ़रमा दे ? और अल्लाह बख़्शने वाला, मेहरबान है ।
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! मालूम हुवा ! मुआ़फ़ करना और दरगुज़र करना, अल्लाह पाक से मग़फ़िरत पाने का सबब है और येह आ़दत अल्लाह करीम को बहुत पसन्द है । इस में शक नहीं कि शैत़ान इन्सान का अज़ली दुश्मन (Enemy) है । जैसा कि अल्लाह पाक क़ुरआने पाक में इरशाद फ़रमाता है :
اِنَّ الشَّیْطٰنَ یَنْزَغُ بَیْنَهُمْؕ-اِنَّ الشَّیْطٰنَ كَانَ لِلْاِنْسَانِ عَدُوًّا مُّبِیْنًا(۵۳) (پ۱۵ ، بنی اسرائیل : ۵۳)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : बेशक शैत़ान लोगों के दरमियान फ़साद डाल देता है, बेशक शैत़ान इन्सान का खुला दुश्मन है ।
* शैत़ान हरगिज़ येह गवारा नहीं करेगा कि मुसलमान आपस में मुत्तह़िद रहें । * एक दूसरे की ख़ैर ख़्वाही करें । * एक दूसरे की इ़ज़्ज़त के मुह़ाफ़िज़ बनें । * एक दूसरे की ग़लत़ियों को नज़र अन्दाज़ करें । * दरगुज़र से काम लें । * अपने ह़ुक़ूक़ मुआ़फ़ कर दिया करें । * एक दूसरे के ह़ुक़ूक़ का लिह़ाज़ रखा करें । * एक दूसरे के साथ तआ़वुन करें बल्कि * शैत़ान तो येह चाहेगा कि मुसलमान