Book Name:Tahammul Mizaji ki Fazilat
घेर लेती है, तह़म्मुल मिज़ाज बनने और इस की फ़ज़ीलतें पाने के लिए ग़ुस्से पर क़ाबू (Control) रखना बड़ा ज़रूरी है । * बहुत सी बुराइयों को जन्म देने के साथ साथ आख़िरत के लिए भी बहुत तबाह कुन साबित होता है । * इन्सान को कई गुनाहों में मुब्तला कर सकता है । * मार धाड़ की त़रफ़ उभारता है । * दूसरों की इ़ज़्ज़तों की पामाली का सबब बनता है । * बे ह़याई की बातों और बुरा कलाम करने पर उभारता है । * दूसरों की नफ़रतों का सबब बनाता है । * दूसरों के ह़ुक़ूक़ को ज़ाएअ़ करने का सबब बनता है । * ह़क़दार को उस का ह़क़ देने से रोकता है । * इन्सान के ज़ाहिर और बात़िन के फ़र्क़ को वाज़ेह़ कर देता है । * मह़ब्बतों को ख़त्म कर देता है । * दूरियों को फ़रोग़ देता है । * गेहरे और मज़बूत़ रिश्तों को भी बहा ले जाता है । * सिलए रेह़्मी से मह़रूम कर देता है । * शफ़्क़त व मेहरबानी जैसी बेहतरीन सिफ़ात से दूर कर देता है । * कई बुरी चीज़ों की त़रफ़ ले जाता है ।
याद रखिए ! बहुत ज़ियादा ग़ुस्से में मुब्तला हो कर मज़बूत़ चीज़ों को तोड़ देना, त़ाक़तवरों को पछाड़ देना और दूसरों को अपने ग़ुस्से से डरा देना येह बहादुरी नहीं बल्कि ग़ुस्से के वक़्त ख़ुद को क़ाबू में रखना बहादुरी है । मेहरबान व करीम आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم का फ़रमाने आ़लीशान है : जो ग़ुस्सा पी जाएगा ह़ालांकि वोह नाफ़िज़ करने पर क़ुदरत रखता था, तो अल्लाह पाक क़ियामत के दिन उस के दिल को अपनी रिज़ा से मामूर फ़रमा देगा । (کنزالعُمّال ، ۳ / ۱۶۳حديث۷۱۶۰, अज़ : ग़ुस्से का इ़लाज, स. 11)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! तह़म्मुल मिज़ाजी को अपनाने और ग़ुस्से पर क़ाबू पाने के लिए ज़रूरी है कि ग़ुस्से की तबाहकारियों को भी पेशे नज़र रखा जाए क्यूंकि * ग़ुस्सा ही अक्सर ख़राबियों का सबब बनता है । * भाई बहनों में जुदाई का बाइ़स बनता है । * आपस में नफ़रत को फ़रोग़ देता है ।
अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ फ़रमाते हैं : जब किसी पर ग़ुस्सा आए, मार धाड़ और तोड़ ताड़ कर डालने को जी चाहे, तो अपने आप को इस त़रह़ समझाइए : मुझे दूसरों पर अगर कुछ क़ुदरत ह़ासिल भी है, तो इस से बेह़द ज़ियादा अल्लाह पाक मुझ पर क़ादिर (क़ुदरत रखने वाला) है, अगर मैं ने ग़ुस्से में किसी का दिल दुखाया या ह़क़ ज़ाएअ़ किया, तो क़ियामत के रोज़ अल्लाह पाक के ग़ज़ब से मैं किस त़रह़ मह़फ़ूज़ रेह सकूंगी ? (ग़ुस्से का इ़लाज, स. 15) ग़ुस्से का एक इ़लाज येह भी है कि ग़ुस्सा लाने वाली बातों के मौक़अ़ पर अल्लाह वालों के अन्दाज़ और उन की ह़िकायात को ज़ेहन में दोहराए । आइए ! इस त़रह़ की तीन ह़िकायतें सुनती हैं ।
﴾1﴿...किसी शख़्स ने अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते उ़मर बिन अ़ब्दुल अ़ज़ीज़ رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ से सख़्त कलामी की । आप ने सर झुका लिया और फ़रमाया : क्या तुम येह चाहते हो कि मुझे ग़ुस्सा आ जाए और शैत़ान मुझे तकब्बुर और ह़ुकूमत के ग़ुरूर में मुब्तला करे, मैं तुम को ज़ुल्म का निशाना बनाऊं और रोज़े क़ियामत तुम मुझ से इस का बदला लो, मुझ से येह हरगिज़ नहीं होगा । येह फ़रमा कर ख़ामोश हो गए । (कीमियाए सआ़दत, 2 / 597, अज़ : ग़ुस्से का इ़लाज, स. 16)