Book Name:Hajj Kay Mahine Kay Ibtidai 10 Din

اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ وَ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَامُ عَلٰی سَیِّدِ الْمُرْسَلِیْنَ ط

اَمَّا بَعْدُ فَاَعُوْذُ بِاللّٰہِ مِنَ الشَّیْطٰنِ الرَّجِیْمِ ط  بِسْمِ اللہِ الرَّحْمٰنِ الرَّ حِیْم ط

اَلصَّلٰوۃُ وَ السَّلَامُ عَلَیْكَ یَا رَسُولَ اللہ                                                         وَعَلٰی اٰلِكَ وَ اَصْحٰبِكَ یَا حَبِیْبَ اللہ

اَلصَّلٰوۃُ وَ السَّلَامُ عَلَیْكَ یَا نَبِیَّ اللہ                                                                       وَعَلٰی اٰلِكَ وَ اَصْحٰبِكَ یَا نُوْرَ اللہ

दुरूदे पाक की फ़ज़ीलत

          रसूले हाशिमी, मक्की मदनी صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم का इरशादे नूरबार है : زَیِّنُوْامَجَالِسَکُمْ بِالصَّلَاۃِ عَلَیَّ فَاِنَّ صَلَاتَـکُمْ عَلَیَّ نُوْرٌلَّکُمْ یَـوْمَ القِیَامَۃِ तुम अपनी मजलिसों को मुझ पर दुरूदे पाक पढ़ कर आरास्ता करो क्यूंकि तुम्हारा मुझ पर दुरूद पढ़ना क़ियामत के दिन तुम्हारे लिए नूर होगा । (جامع صغیر،حرف الزاء ،ص۲۸۰، حدیث :۴۵۸۰)

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! जब भी किसी ज़िक्रो नात की मेह़फ़िल में शिर्कत की सआ़दत नसीब हो और मक्की मदनी आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم का नामे पाक लिया जाए, तो बरकत ह़ासिल करने के लिए दुरूदे पाक पढ़ लेना चाहिए ताकि हमारा पढ़ा हुवा दुरूदे पाक क़ियामत के दिन हमारे लिए नूर हो और हमारी बख़्शिश व मग़फ़िरत का ज़रीआ़ भी बन जाए ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आइए ! अल्लाह पाक की रिज़ा पाने और सवाब कमाने के लिए पेहले अच्छी अच्छी निय्यतें कर लेती हैं :

          फ़रमाने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم : نِیَّۃُ الْمُؤمِنِ خَیْرٌ مِّنْ عَمَلِہٖ मुसलमान की निय्यत उस के अ़मल से बेहतर है । (معجم کبیر،۶/۱۸۵،حدیث:۵۹۴۲)

अहम नुक्ता : नेक और जाइज़ काम में जितनी अच्छी निय्यतें ज़ियादा, उतना सवाब भी ज़ियादा ।

बयान सुनने की निय्यतें

          मौक़अ़ की मुनासबत और नौइ़य्यत के एतिबार से निय्यतों में कमी बेशी व तब्दीली की जा सकती है । ٭ निगाहें नीची किए ख़ूब कान लगा कर बयान सुनूंगी । ٭ टेक लगा कर बैठने के बजाए इ़ल्मे दीन की ताज़ीम की ख़ात़िर जहां तक हो सका दो ज़ानू बैठूंगी । ٭ ज़रूरतन सिमट सरक कर दूसरी इस्लामी बहनों के लिए जगह कुशादा करूंगी । ٭ धक्का वग़ैरा लगा तो सब्र करूंगी, घूरने, झिड़कने और उलझने से बचूंगी । ٭ اُذْکُرُوااللّٰـہَ، تُوبُوْا اِلَی اللّٰـہِ صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْبِ، वग़ैरा सुन कर सवाब कमाने और सदा लगाने वाली की दिलजूई के लिए पस्त आवाज़ से जवाब दूंगी । ٭ इजतिमाअ़ के बाद ख़ुद आगे बढ़ कर सलाम व मुसाफ़ह़ा और इनफ़िरादी कोशिश करूंगी । ٭ दौराने बयान मोबाइल के ग़ैर ज़रूरी इस्तिमाल से बचूंगी, न बयान रीकॉर्ड करूंगी, न ही और किसी क़िस्म की आवाज़ कि इस की इजाज़त नहीं । जो कुछ सुनूंगी, उसे सुन और समझ कर, उस पे अ़मल करने और उसे बाद में दूसरों तक पहुंचा कर नेकी की दावत आ़म करने की सआ़दत ह़ासिल करूंगी ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आज के इस हफ़्तावार इजतिमाअ़ के बयान का मौज़ूअ़ है "ह़ज के महीने के इब्तिदाई अ़ज़ीम 10 दिन" जिस में हम माहे ज़ुल ह़िज्जा के फ़ज़ाइल सुनेंगी ।