Book Name:Hajj Kay Mahine Kay Ibtidai 10 Din

ख़ाली होता है, आ़म त़ौर पर इस्तिमाल के लिए शोरबे वाला गोश्त बेहतर रेहता है, सब से बेहतर गोश्त बकरे का होता है, बकरे के गोश्त में दस्ती और शाना वोह मक़ामात हैं जहां पर रेशे मोटे नहीं होते, ऐसा गोश्त जल्द गलता और मुलाइम होता है, पुश्त (Back) के गोश्त का रेशा, रान से कम मोटा होता है, इस में ख़ून पैदा करने वाले अजज़ा मिलते हैं, गोश्त बदन को बढ़ा कर त़ाक़त बख़्शता है, गोश्त के फ़वाइद जानवरों के ह़िसाब से मुख़्तलिफ़ हैं, बकरी का गोश्त साफ़ ख़ून पैदा करता और गर्म मिज़ाजों के लिए मुफ़ीद है ।

ज़ियादा गोश्त खाने के नुक़्सानात

          आइए ! अब कसरत से गोश्त खाने के नुक़्सानात भी सुनती हैं : याद रखिए ! इन्सानी जिस्म के लिए हफ़्ते में दो तीन बार से ज़ियादा गोश्त का इस्तिमाल नुक़्सान देता है । बड़े जानवर का गोश्त ज़ियादा खाना "आ बैल मुझे मार" वाली बात है क्यूंकि इस से मसूढ़े और दांत ख़राब होते हैं, ज़ियादा गोश्त खाने से गुर्दों (Kidneys) में यूरिक ऐसिड (Uric Acid) की ज़ियादती हो जाती है और गुर्दे इसे आसानी से बाहर नहीं कर पाते, गोश्त का ज़ियादा इस्तिमाल जिगर (Liver) को भी नुक़्सान देता है, ज़ियादा मिक़्दार में गोश्त खाने से कैन्सर (Cancer) का इमकान बढ़ जाता है । लिहाज़ा आ़फ़िय्यत इसी में है कि इन्सान अपनी सेह़त को ग़नीमत समझे, अपने आप को लज़्ज़तों, चटख़ारेदार खानों, तेल व घी में तली हुई और चिकनाहट वाली ग़िज़ाओं का आ़दी न बनाए, ज़ियादा गोश्त खाने के सबब होने वाली तबाहकारियों को ज़ेहन में रखे, अपने नफ़्स को कन्ट्रोल में रखे, गोश्त खाने में एह़तियात़ का दामन थामे, ख़ुसूसन दावतों में खाना खाते वक़्त तो बहुत ही ज़ियादा एह़तियात़ करनी चाहिए ताकि ज़ियादा गोश्त खाने के नतीजे में होने वाले नुक़्सानात से बचा जा सके । अल्लाह पाक हमें खाने समेत हर जाइज़ काम में दरमियाना अन्दाज़ अपनाने की तौफ़ीक़ नसीब फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِّ الکَرِیْم صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

नाख़ुन काटने की सुन्नतें और आदाब

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आइए ! शैख़े त़रीक़त, अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ के रिसाले "101 मदनी फूल" से नाख़ुन काटने के चन्द मदनी फूल सुनती हैं : ٭ जुम्आ़ के दिन नाख़ुन काटना मुस्तह़ब है, हां ! अगर ज़ियादा बढ़ गए हों, तो जुम्आ़ का इन्तिज़ार न कीजिए । (دُرِّمُختار،۹/۶۶۸) सदरुश्शरीआ़, बदरुत़्त़रीक़ा, मौलाना अमजद अ़ली आज़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं, मन्क़ूल है : जो जुम्आ़ के रोज़ नाख़ुन तरशवाए (काटे), अल्लाह पाक उस को दूसरे जुम्आ़ तक बलाओं से मह़फ़ूज़ रखेगा और तीन दिन ज़ाइद यानी दस दिन तक । एक रिवायत में येह भी है कि जो जुम्आ़ के दिन नाख़ुन तरशवाए (काटे), तो रह़मत आएगी और गुनाह जाएंगे । (دُرِّمُختار، رَدُّالْمُحتَار،۹/۶۶۸, बहारे शरीअ़त, हि़स्सा : 16, स. 225, 226) ٭ हाथों के नाख़ुन काटने के मन्क़ूल त़रीके़ का ख़ुलासा पेशे ख़िदमत है : पेहले सीधे हाथ की शहादत की उंगली से शुरूअ़ कर के तरतीब वार