Book Name:Faizan-e-Ghous-ul-Azam

इ़ल्म के समुन्दर

          आ़शिक़ाने ग़ौसे आज़म ! सरकारे ग़ौसे आज़म رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ अल्लाह पाक के बहुत बड़े वली होने के साथ साथ अपने वक़्त के बहुत बड़े इमाम, मुफ़्ती, और इ़ल्मे दीन के समुन्दर थे आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ का इ़ल्मी मक़ाम इस क़दर बुलन्द था कि बड़े बड़े उ़लमाए किराम आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ की पाक बारगाह में ह़ाज़िरी दे कर आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के फ़ुयूज़ो बरकात और आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ की सोह़बत से ख़ूब ख़ूब बरकतें पाते थे चुनान्चे,

अ़ल्लामा इबने जौज़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की इ़ल्मी ख़िदमात

          ह़ज़रते अ़ल्लामा इबने जौज़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ अपने वक़्त के बहुत बड़े आ़लिम इमाम थे, आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने इ़ल्मे क़ुरआन, इ़ल्मे ह़दीस, इ़ल्मे फ़िक़्ह, जुग्ऱाफ़िया, इ़ल्मे त़िब, तारीख़, तफ़्सीर, इ़ल्मे नुजूम, ह़िसाब, लुग़त और नह़्व वग़ैरा के इ़लावा दीगर बहुत से उ़लूमो फ़ुनून में भी शानदार किताबें लिखी हैं, आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ की किताबों की तादाद तीन सौ से ज़ियादा बताई जाती है जिन में काफ़ी किताबें कई कई जिल्दों पर मुश्तमिल हैं (मुक़द्दमा उ़यूनुल ह़िकायात, ह़िस्सा 1, . 16, मुल्तक़त़न मुलख़्ख़सन)

          ह़ज़रते इमाम इबने क़ुदामा ह़म्बली رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ह़ज़रते इमाम इबने जौज़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ अपने ज़माने में ख़ित़ाबत के इमाम थे, मुख़्तलिफ़ उ़लूमो फ़ुनून में बेहतरीन किताबें लिखीं, पढ़ाते भी थे और आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ह़ाफ़िज़ुल ह़दीस भी थे (1 लाख अह़ादीसे मुबारका सनद के साथ याद करने वाले ख़ुश नसीब को "ह़ाफ़िज़ुल ह़दीस" कहा जाता है) (मुक़द्दमा आंसूओं का दरया, . 15) आइए ! वक़्त के इस अ़ज़ीम इमाम, अ़ल्लामा इबने जौज़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ का एक वाक़िआ़ सुनते हैं चुनान्चे,

ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की तफ़्सीरी महारत

          ह़ज़रते ह़ाफ़िज़ अबुल अ़ब्बास अह़मद رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मैं अ़ल्लामा इबने जौज़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के साथ एक मरतबा ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के इजतिमाए़ ग़ौसिय्या में ह़ाज़िर हुवा, एक क़ारी ने क़ुरआने करीम की तिलावत की, तिलावत के बाद ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने बयान शुरूअ़ किया जिस में आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने तिलावत की गई आयाते मुबारका में से एक आयत की तफ़्सीर बयान करते हुवे आयत का एक माना बयान फ़रमाया । मैं ने अ़ल्लामा इबने जौज़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ से पूछा : क्या आप को इस तफ़्सीर का इ़ल्म था । ? उन्हों ने जवाब दिया : हां ! मुझे इ़ल्म था । इस के बाद ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने एक एक कर के ग्यारह तफ़्सीरी अक़्वाल ज़िक्र फ़रमाए । मेरे पूछने पर हर बार अ़ल्लामा इबने जौज़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते रहे : येह तफ़्सीरी क़ौल भी मुझे मालूम था । ह़ज़रते ह़ाफ़िज़ अबुल अ़ब्बास رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं