Book Name:Faizan-e-Ghous-ul-Azam
: ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने उसी एक आयते मुबारका के चालीस तफ़्सीरी अक़्वाल बयान फ़रमाए और हर हर क़ौल के केहने वाले का नाम भी बयान फ़रमाया मगर ग्यारह तफ़्सीरों के बाद से हर तफ़्सीर के बारे में मेरे पूछने पर हज़रते अ़ल्लामा इबने जौज़ी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ नफ़ी में सर हिलाते हुवे केहते रहे कि येह तफ़्सीर मेरे इ़ल्म में नहीं । (اخبارالاخیار ،ص۱ ۱،بہجۃ الاسرار،ذکر علمہ …الخ،ص ۲۲۴،ذبدۃ الاثار،ص ۵۲)
ग़ौसे आज़म का मक़ामो मर्तबा
शैख़ इमाम अबू अ़ब्दुल्लाह बिन अह़मद बिन क़ुदामा رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ह़ज़रते सय्यिद शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने इ़ल्म ह़ासिल करने के लिए बहुत कोशिशें कीं, आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने बहुत से उ़लमाए वक़्त और अपने ज़माने के मश्हूरो मारूफ़ बुज़ुर्गों से इ़ल्म ह़ासिल किया, जिस का नतीजा येह निकला कि आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ अपने ज़माने के उ़लमा और बुज़ुर्गों में सब से बड़े मर्तबे पर फ़ाइज़ हुवे । इ़ल्म ह़ासिल करने के लिए आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने बहुत सी तक्लीफे़ं और मुसीबतें बरदाश्त कीं, आख़िरे कार आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ दुन्यवी मुआ़मलात से तअ़ल्लुक़ तोड़ कर यादे इलाही और नेकी की दावत देने में मश्ग़ूल हो गए । ज़माने भर में आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के चर्चे हो गए, दीन के मन्सब आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ की वज्ह से ज़ाहिर हो गए, इ़ल्म के दरजे आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के सबब बुलन्द होने लगे और शरीअ़त के लश्कर आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के सबब क़ुव्वत पाने लगे, उ़लमा की बहुत बड़ी तादाद ने आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ की त़रफ़ रुजूअ़ किया और आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ से शागिर्दी का शरफ़ ह़ासिल किया, बहुत से फ़ुक़रा, बड़े बड़े उ़लमा और बुलन्द मर्तबा पीराने किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہِم ने भी आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ से ख़िलाफ़त का ताज पेहना । (نزہۃ الخاطرالفاتر ، ص۱۹،۲۰ملخصاً)
ह़ज़रते शैख़ मुह़म्मद बिन यह़या رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जब ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने इ़ल्मे दीन से फ़राग़त ह़ासिल कर ली, तो पढ़ाने और फ़तवा देने के मन्सब पर फ़ाइज़ हुवे, इस के साथ साथ लोगों को नेकी की दावत देने और इ़ल्मो अ़मल के चराग़ रौशन करने में मसरूफ़ हो गए । चुनान्चे, दुन्या भर से उ़लमाए किराम आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ की बारगाहे अक़्दस में इ़ल्म सीखने के लिए ह़ाज़िर होते, उस वक़्त बग़दाद में आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ के पाए का कोई न था । (قلائد الجواہر ص ۵ملخصاً) आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ इ़ल्म के समुन्दर थे । जब आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ को आप के असातिज़ा ने इ़ल्मे ह़दीस की सनद दी, तो फ़रमाने लगे : ऐ अ़ब्दुल क़ादिर ! अल्फ़ाज़े ह़दीस की सनद तो हम आप को दे रहे हैं लेकिन ह़क़ीक़त येह है कि ह़दीस के मआ़नी व मफ़्हूम का समझना तो हम ने आप ही से सीखा है । (حیات المعظم فی مناقب غوث اعظم ص ۴۶ بتغیر قلیل)