Book Name:Faizan-e-Ghous-ul-Azam
رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ हमारे लिए अपने घर से खाना भेजते थे । (سیر اعلام النبلاء،الشیخ عبد القادربن ابی صالح ،۱۵/۱۸۳)
त़लबाए किराम की ख़िदमत कीजिए !
ऐ आ़शिक़ाने ग़ौसुल आज़म ! आप ने सुना कि ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ इ़ल्मे दीन सीखने वाले त़लबए किराम पर कैसी शफ़्क़त फ़रमाया करते थे कि उन के लिए अपने घर से खाना भेजा करते थे । लिहाज़ा हमें भी चाहिए कि दीनी त़लबा की ज़रूरिय्यात का अपनी अपनी त़ाक़त के मुत़ाबिक़ ख़ूब ख़ूब ख़याल रखा करें, मसलन जिन से बन पड़े बिल ख़ुसूस ग़रीब त़लबए किराम के लिए दीनी किताबें, कपड़े, मौसिम के लिह़ाज़ से रिहाइश की ज़रूरिय्यात पूरी करने में रिज़ाए इलाही और दीगर अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ अपना ह़िस्सा मिला कर दीन की मदद करने वालों में हम भी शामिल हो जाएं, क्या मालूम इस नेक अ़मल की बरकत से हमारा रब्बे करीम हम से राज़ी हो जाए, क्या मालूम इस नेक अ़मल की बरकत से हमें मग़फ़िरत का परवाना मिल जाए ।
देखिए ! जिस त़रह़ हम अपने बच्चों को अच्छे से अच्छा खाना खिलाना पसन्द करते हैं, अच्छे से अच्छा लिबास पेहनते देखना पसन्द करते हैं, ज़रा सोचिए ! सर्दी के मौसिम में हम अपने बच्चों का कितना ख़याल करते हैं कि कहीं मेरे लाल को सर्दी न लग जाए, मेरे बेटे की त़बीअ़त तो ऐसी है कि न ही हल्की सी ठन्डी हवा बरदाश्त कर सकता है, न ही गर्म हवा का हल्का सा झोंका, इसी त़रह़ इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने वाले त़लबाए किराम को भी कई बुन्यादी ज़रूरिय्याते ज़िन्दगी की ज़रूरत होती है ।
اَلْحَمْدُ لِلّٰہ आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी के तह़्त दुन्या भर में 606 से ज़ाइद जामिआत क़ाइम हैं, जहां पचास हज़ार से ज़ाइद त़लबा व त़ालिबात इ़ल्मे दीन ह़ासिल करने की सआ़दत पा रहे हैं । आप सदक़ाते वाजिबा व नाफ़िला से दावते इस्लामी के साथ तआ़वुन कीजिए, اِنْ شَآءَ اللّٰہ येह तआ़वुन आप की क़ब्र को अच्छा करने के साथ मह़शर में भी काम आएगा ।
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
ऐ आ़शिक़ाने औलिया ! अल्लाह करीम के नेक बन्दों की सोह़बत की बहुत सी बरकात हैं, उन में से एक नफ़्स की चालों और उस के धोके की पेहचान ह़ासिल होना भी है । ह़ज़रते शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जीलानीرَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ इसी बात की त़रफ़ निशान देही करते हुवे इरशाद फ़रमाते है مَنْ اَکْثَرَ مِنْ مُّخَالَـطَۃِ الْعَارِفِیْنَ بِاللہِ عَـرَفَ نَفْسَہٗ जो शख़्स अल्लाह पाक की पेहचान रखने वाले बन्दों (यानी औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن) की सोह़बत में रेहता है, तो वोह अपने नफ़्स को पेहचान लेता है । (الفتح الربانی، المجلس الرابع والخمسون، ص۱۸۰)