Book Name:Khud Kushi Kay Asbab

दिन रोज़े में और रातें इ़बादत में गुज़रती हों, कितनी ही इ़बादतो रियाज़त करने वाला हो, दीने मतीन की ख़ूब तब्लीग़ ख़िदमत करने वाला हो लेकिन अगर दिल में मीठे मुस्त़फ़ा करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की दुश्मनी हो, तो नेकियों और इ़बादत की कोई ह़क़ीक़त नहीं (3) आमाल में ख़ातिमे का मुकम्मल अ़मल दख़ल है चुनान्चे, ह़दीसे पाक में है : اِنَّمَا الْاَعْمَالُ بِالْخَوَاتِیْم आमाल का दारो मदार ख़ातिमे पर है (مسند احمد،۸/۴۳۴،حد یث ۲۲۸۹۸)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

ख़ुदकुशी की तारीफ़ ह़ुक्म

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! अपने हाथों से ख़ुद को मौत के घाट उतार देना "ख़ुदकुशी" केहलाता है ख़ुदकुशी गुनाहे कबीरा, ह़राम और दोज़ख़ में ले जाने वाला काम है येह जिस्म अल्लाह पाक की नेमत है, सह़ीह़ सलामत आज़ा अल्लाह पाक की नेमत हैं, धड़कता हुवा दिल अल्लाह पाक की नेमत है और चलता हुवा सांस भी अल्लाह पाक की नेमत है, इन नेमतों की ह़िफ़ाज़त करना बहुत ज़रूरी है जब कि ख़ुदकुशी कर के अपनी जान को ज़ाएअ़ करना बहुत बड़ा गुनाह है पारह 5, सूरतुन्निसा की आयत नम्बर 29 में इरशादे रब्बानी है :

وَ لَا تَقْتُلُوْۤا اَنْفُسَكُمْؕ-اِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِكُمْ رَحِیْمًا(۲۹) (پ۵،النساء:۲۹)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और अपनी जानों को क़त्ल करो, बेशक  अल्लाह तुम पर मेहरबान है

       सय्यिद मुफ़्ती मुह़म्मद नई़मुद्दीन मुरादाबादी رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ इस आयते करीमा के तह़्त फ़रमाते हैं : इस आयत से ख़ुदकुशी की ह़ुर्मत साबित होती है (यानी येह साबित होता है कि ख़ुदकुशी करना ह़राम है)

ख़ुदकुशी का बढ़ता हुवा रुजह़ान

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! ख़ुदकुशी बुज़्दिली और कम हिम्मती की दलील है अफ़्सोस ! आज कल ख़ुदकुशी के वाक़िआ़त में दिन दिन इज़ाफ़ा होता जा रहा है एक मोतबर और बैनल अक़्वामी इदारे के सर्वे के बाद दिए जाने वाले आदादो शुमार के मुत़ाबिक़ दुन्या में हर साल तक़रीबन दस लाख इन्सान ख़ुदकुशी करते हैं, दुन्या की कुल अम्वात में ख़ुदकुशी के बाइ़स होने वाली अम्वात की शरह़ एक आशारिया आठ (1.8) फ़ीसद है एक सर्वे के मुत़ाबिक़ इस शरह़ में तेज़ी से इज़ाफ़ा हो रहा है (मुख़्तलिफ़ वेबसाइटस से माख़ूज़)

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! ग़ौर कीजिए ! इन्सानों से भरी इस दुन्या में हर चालीस सेकन्डज़ बाद कोई न कोई इन्सान अपने हाथों अपनी ज़िन्दगी का चराग़ गुल