Book Name:Apni Islah Ka Nuskha
का मुह़ासबा करते थे और इस से किसी सूरत भी ग़फ़्लत इख़्तियार न करते थे । आइए ! इसी बारे में बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن के कुछ वाक़िआ़त सुनती हैं । चुनान्चे,
ह़ज़रते अनस बिन मालिक رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ फ़रमाते हैं : मैं एक बाग़ में गया, तो वहां अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते उ़मर फ़ारूक़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की आवाज़ सुनी । हम दोनों के दरमियान एक दीवार ह़ाइल थी और वोह केह रहे थे : उ़मर, ख़त़्त़ाब का बेटा और अमीरुल मोमिनीन का मन्सब ! वाह क्या ख़ूब ! ऐ उ़मर ! अल्लाह पाक से डरते रहो, वरना अल्लाह पाक तुम्हें सख़्त अ़ज़ाब देगा । (تاریخ الخلفاء، عمر بن الخطاب رضی اللہ عنہ، فصل فی نبذ من سیرتہ، ص۱۰۲)
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! ग़ौर कीजिए ! अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते उ़मर फ़ारूके़ आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ, अल्लाह पाक के प्यारे ह़बीब صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم के प्यारे सह़ाबी हैं, येह वोही फ़ारूके़ आज़म हैं जिन के साए से शैत़ान भागता था । (بخاری، کتاب فضائل اصحاب النبی،باب مناقب عمر بن الخطاب، ۲/۵۲۶، حدیث: ۳۶۸۳مفہوماً) ٭ जिन को ह़ुज़ूर नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ने अपनी ज़बाने मुबारक से जन्नती होने की ख़ुश ख़बरी अ़त़ा फ़रमाई । (بخاری،کتاب فضائل اصحاب النبی،باب مناقب عمر بن الخطاب،۲/۵۲۵،حدیث: ۳۶۷۹مفہوماً) ٭ जिन के बारे में अल्लाह पाक के प्यारे रसूल صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ने येह दुआ़ फ़रमाई है : ऐ अल्लाह करीम ! ह़ज़रते उ़मर बिन ख़त़्त़ाब (رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ) के ज़रीए़ इस्लाम को इ़ज़्ज़त अ़त़ा फ़रमा । (ابن ماجہ، کتاب السنۃ، فضل عمر ، ۱/۷۷،حدیث : ۱۰۵) ٭ जिन की राए के मुत़ाबिक़ क़ुरआने करीम की आयाते मुबारका उतरीं । (تاریخ الخلفاء، ص۹۶، الصواعق المحرقۃ، ص۹۹)
किरदारे फ़ारूक़ी पर अ़मल कीजिए
इतनी बुलन्दो बाला शानो शौकत के बा वुजूद अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते उ़मर फ़ारूके़ आज़म رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ अपने आमाल का मुह़ासबा करते और ख़ुद को नसीह़तें करते कि ऐ उ़मर ! अल्लाह पाक से डरते रहो ! ऐ उ़मर ! अल्लाह पाक से डरते रहो ! जब उन के मुह़ासबए नफ़्स का येह ह़ाल है, तो हम जो गुनाहों में डूबी हुई हैं, दिन रात ग़फ़्लतों में ज़िन्दगी गुज़ार रही हैं, हमारे पास तो नेकियां नाम को नहीं हैं, हमें अपना मुह़ासबए नफ़्स करने की कितनी ज़रूरत होगी ? आइए ! अल्लाह पाक के एक नेक बन्दे का वाक़िआ़ सुनती हैं कि वोह अपना मुह़ासबा किस त़रह़ करते थे । चुनान्चे,
ह़ज़रते तौबा बिन सिम्मह رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ ने अपने नफ़्स का मुह़ासबा करते हुवे एक दिन ह़िसाब लगाया, तो उन की उ़म्र 60 साल थी, दिनों का ह़िसाब किया, तो इक्कीस हज़ार पांच सौ दिन बने । उन्हों ने चीख़ मारी और फ़रमाया : हाए अफ़्सोस ! (अगर मैं ने रोज़ाना एक गुनाह भी किया हो तो) मैं ह़क़ीक़ी बादशाह (यानी अल्लाह पाक) से इक्कीस हज़ार पांच सौ गुनाहों के साथ मुलाक़ात करूंगा और जब रोज़ाना दस हज़ार गुनाह होंगे, तो क्या सूरते ह़ाल होगी ? येह सोच कर आप बेहोश हो कर गिर पड़े और आप का इन्तिक़ाल हो गया । लोगों ने किसी केहने वाले को उन के