Book Name:Apni Islah Ka Nuskha
करना, चोरी करना, बदकारी करना, फ़िल्में ड्रामे देखना, गाने बाजे सुनना, मां-बाप की ना फ़रमानी और उन्हें सताना, अमानत में ख़ियानत, धोका देही, बद निगाही, औ़रतों का मर्दों की नक़्ल करना, बे पर्दगी, ग़ुरूर, तकब्बुर, ह़सद, रियाकारी, अपने दिल में किसी इस्लामी बहन का बुग़्ज़ो कीना रखना, किसी इस्लामी बहन को मरज़, तक्लीफ़ या नुक़्सान पहुंचने पर ख़ुश होना, ग़ुस्सा आ जाने पर शरीअ़त की ह़दें तोड़ डालना, गुनाहों का लालच, इ़ज़्ज़त की ख़्वाहिश, कन्जूसी, ख़ुद पसन्दी वग़ैरा मुआ़मलात हमारे मुआ़शरे में बड़ी बेबाकी के साथ किए जाते हैं । ज़रा सोचिए ! इस क़दर गुनाहों के बा वुजूद भी अगर हमें परेशानियों का सामना न हो, तो क्या हो ?
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! मालूम हुवा ! अगर हम तरक़्क़ी व बरकत की ख़्वाहिश मन्द हैं, त़रह़ त़रह़ की मुसीबतों और मह़रूमियों से बचना चाहती हैं, तो हमें गुनाहों की मुसीबत से छुटकारा ह़ासिल करना और नेकियों से तअ़ल्लुक़ जोड़ना होगा । अल्लाह करे ! हम गुनाहों से बचने वाली बन जाएं और हमारी परेशानियां दूर हो जाएं । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِّ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! इस में शक नहीं कि गुनाहों से बचने और नेकियों की कसरत करने का एक बेहतरीन त़रीक़ा इस्तिक़ामत के साथ अपने आमाल पर ग़ौरो फ़िक्र करना भी है । जो इस्लामी बहन इस बेहतरीन आ़दत को अपना ले और रोज़ाना अपना मुह़ासबा (Self Accountability) करे, तो उस के किरदार में ख़ुद बख़ुद निखार पैदा होता चला जाता है, वोह गुनाहों से पीछा छुड़ाने लगती है । आमाल के बारे में ग़ौरो फ़िक्र की अहम्मिय्यत का अन्दाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि क़ुरआनो ह़दीस में बा क़ाइ़दा इस की तरग़ीब दिलाई गई है । चुनान्चे, पारह 28, सूरतुल ह़श्र की आयत नम्बर 18 में अल्लाह पाक इरशाद फ़रमाता है :
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوا اتَّقُوا اللّٰهَ وَ لْتَنْظُرْ نَفْسٌ مَّا قَدَّمَتْ لِغَدٍۚ- (پ۲۸،الحشر:۱۸)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : ऐ ईमान वालो ! अल्लाह से डरो और हर जान देखे कि उस ने कल के लिए आगे क्या भेजा है ।
इस आयते करीमा में फ़रमाया गया : अपना मुह़ासबा कर लो, इस से पेहले कि तुम्हारा मुह़ासबा किया जाए और ग़ौर करो कि तुम ने क़ियामत के दिन अल्लाह पाक की बारगाह में पेश करने के लिए नेक आमाल का कितना ज़ख़ीरा जम्अ़ किया है । (تفسیر ابنِ کثیر،پ ۲۸،الحشر،تحت الآیۃ: ۱۸، ۸ / ۱۰۶) "तफ़्सीरे सिरात़ुल जिनान" में लिखा है : इस आयत से मालूम हुवा ! एक घड़ी ग़ौरो फ़िक्र करना, बहुत से ज़िक्र करने से बेहतर है । अपने आमाल के बारे में सोचना बहुत अफ़्ज़ल अ़मल है और येही मुराक़बा है । (सिरात़ुल जिनान, 10 / 89, मुल्तक़त़न)
अह़ादीसे करीमा में रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ने भी कई मरतबा आमाल का मुह़ासबा करने की तरग़ीब इरशाद फ़रमाई है । आइए ! इस बारे में चन्द फ़रामीने मुस्त़फ़ा सुनती हैं । चुनान्चे,