Book Name:Apni Islah Ka Nuskha
एह़तिसाब (ग़ौरो फ़िक्र) के मुतअ़ल्लिक़ फ़रामीने मुस्त़फ़ा
- इरशाद फ़रमाया : जब तुम किसी काम को करना चाहो, तो उस के अन्जाम के बारे में ग़ौर कर लो, अगर वोह अच्छा है, तो उसे कर गुज़रो और अगर उस का नतीजा (Result) ग़लत़ हो, तो उस से बाज़ रहो । (کنزالعمال،کتاب الاخلاق،حرف التاء،التودۃ والتانی والتبیین،الجزء۳ ،۲/۴۴،حدیث:۵۶۷۳)
2. इरशाद फ़रमाया : अ़क़्लमन्द के लिए एक घड़ी ऐसी होनी चाहिए जिस में वोह अपने नफ़्स का मुह़ासबा करे । (شعب الایمان، باب فی تعدید نعم ﷲ …الخ ، ۴/۱۶۴، حدیث: ۴۶۷۷)
3. इरशाद फ़रमाया : (उमूरे आख़िरत में) घड़ी भर ग़ौरो फ़िक्र करना, साठ साल की इ़बादत से बेहतर है । (کنز العمال،کتاب الاخلاق،التفکر، الجز۳، ۲/۴۸،حدیث:۵۷۰۷)
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आयते मुबारका, उस की तफ़्सीर और फ़रामीने मुस्त़फ़ा से मालूम हुवा ! हमारे दीन में अपना मुह़ासबा करने की ज़बरदस्त तरग़ीब दिलाई गई है क्यूंकि ٭ मुह़ासबए नफ़्स की वज्ह से इन्सान गुनाहों से बचने लगता है । ٭ नेकियां करना आसान हो जाता है । ٭ अल्लाह पाक और बन्दों के ह़ुक़ूक़ अदा करने का ज़ेहन बनता है । ٭ दिल में ख़ौफे़ ख़ुदा बेदार होता है । ٭ इन्सान के ज़ाहिरो बात़िन में निखार पैदा होता है । ٭ मौत से पेहले मौत की तय्यारी का ज़ेहन बनता है । ٭ अल्लाह पाक की नेक बन्दियों के नक़्शे क़दम पर चलने का ज़ेहन बनता है । ٭ अच्छी आ़दतें बनती हैं । ٭ बुरी ख़स्लतों से छुटकारे का ज़ेहन बनता है । ٭ अल ग़रज़ ! मुह़ासबए नफ़्स की वज्ह से दुन्या में भी आसानियां हो जाती हैं और आख़िरत भी अच्छी हो जाती है । येही वज्ह है कि हमारा दीन मुह़ासबए नफ़्स की बड़ी तल्क़ीन करता है । आइए ! मुह़ासबए नफ़्स की तारीफ़ सुनती हैं ताकि हम ज़ियादा अच्छे अन्दाज़ में अपने आमाल का मुह़ासबा करने में काम्याब हो सकें । चुनान्चे,
ह़ज़रते इमाम मुह़म्मद ग़ज़ाली رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہ अपनी मश्हूर किताब "इह़याउल उ़लूम" में फ़रमाते हैं : आमाल की कसरत, मिक़्दार में ज़ियादती और नुक़्सान पेहचानने के लिए जो ग़ौर किया जाता है, उसे "मुह़ासबा" केहते हैं । अगर बन्दा (और बन्दी) अपने दिन भर के आमाल को सामने रखे ताकि उसे कमी बेशी का इ़ल्म हो जाए, येही "मुह़ासबा" है । (इह़याउल उ़लूम, 5 / 319)
اَلْحَمْدُلِلّٰہ अमीरे अहले सुन्नत دَامَتْ بَرْکَاتُھُمُ الْعَالِیَہ हमें अपने आमाल का मुह़ासबा करने का ज़ेहन देते रेहते हैं । इन्सान को चाहिए कि उख़रवी एतिबार से अपने मामूलाते ज़िन्दगी पर ग़ौरो फ़िक्र करे फिर जो काम उस की आख़िरत के लिए नुक़्सान देह साबित हो सकते हों, उन की इस्लाह़ की कोशिश करे और जो काम उख़रवी एतिबार से फ़ाएदा देने वाले नज़र आएं, उन में बेहतरी के लिए इक़्दामात करे । इस्तिक़ामत के साथ अपने आमाल का जाइज़ा लेने से ख़ूब ख़ूब बरकतें ह़ासिल होती हैं, येही वज्ह है कि बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن निहायत इस्तिक़ामत के साथ अपने आमाल