Book Name:Ghos e Pak Ki Shan o Azmat 10th Rabi ul Akhir 1442
आदमी उठाए हुवे थे, उस सन्दूक़ को दस्तरख़ान के एक त़रफ़ रख दिया गया । अबू ग़ालिब ने कहा : इजाज़त है । उस वक़्त ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ मुह़्युद्दीन अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ मुराक़बे में थे और आप ने खाना न खाया और न ही खाने की इजाज़त दी, लिहाज़ा किसी ने भी खाना न खाया । आप की हैबत के सबब मजलिस वालों का ह़ाल ऐसा था कि गोया उन के सरों पर परिन्दे बैठे हैं । फिर आप ने शैख़ अ़ली की त़रफ़ इशारा करते हुवे फ़रमाया : सन्दूक़ उठा लाइए । हम उठे और उसे उठाया, तो वोह वज़्नी था । हम ने सन्दूक़ को आप के सामने ला कर रख दिया । आप ने ह़ुक्म दिया : सन्दूक़ को खोला जाए । चुनान्चे, हम ने खोला, तो उस में अबू ग़ालिब का लड़का मौजूद था जो पैदाइशी अन्धा था । ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने उस से कहा : खड़ा हो जा ! ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के केहने की देर थी, हम ने देखा कि लड़का दौड़ने लगा और देखने के क़ाबिल भी हो गया और ऐसा हो गया गोया कि कभी बीमारी में मुब्तला ही नहीं था । येह ह़ाल देख कर मजलिस में शोर हो गया और आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इसी ह़ालत में बाहर निकल आए और कुछ न खाया । इस के बाद मैं, शैख़ अबू साद कै़लवी की ख़िदमत में ह़ाज़िर हुवा और येह ह़ाल बयान किया । तो उन्हों ने कहा : ह़ज़रते सय्यिद मुह़्युद्दीन शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी, क़ुत़्बे रब्बानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ पैदाइशी अन्धे और बर्स वालों को अच्छा करते हैं, ह़त्ता कि अल्लाह पाक के ह़ुक्म से मुर्दे भी ज़िन्दा करते हैं । (بہجة الاسرار،ذکرفصول من کلامہ…الخ، ص۱۲۳)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! बारगाहे इलाही में हमारे ग़ौसे आज़म رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ का मक़ाम किस क़दर बुलन्दो बाला है कि आप पैदाइशी अन्धे और बर्स वालों को अच्छा करते हैं, ह़त्ता कि अल्लाह पाक के ह़ुक्म से मुर्दे भी ज़िन्दा करते हैं । याद रखिए ! बिला शुबा शिफ़ा देना और मौत व ह़यात अल्लाह करीम के इख़्तियार में है लेकिन अल्लाह करीम अगर अपनी ख़ुसूसी नवाज़िशात से अपने किसी मुक़र्रब नबी या वली को मुर्दे ज़िन्दा करने की त़ाक़त बख़्शे, तो येह कोई ना क़ाबिले तस्लीम बात नहीं नीज़ अल्लाह करीम की अ़त़ा से किसी और को हम मुर्दा ज़िन्दा करने वाला तस्लीम करें, तो इस से हमारे ईमान पर कोई असर नहीं पड़ता । अगर शैत़ान की बातों में आ कर किसी ने अपने ज़ेह्न में येह बिठा लिया है कि अल्लाह करीम ने किसी और को मुर्दा ज़िन्दा करने की त़ाक़त ही नहीं दी, तो उस का येह नज़रिय्या ह़ुक्मे क़ुरआनी के ख़िलाफ़ है । जैसा कि पारह 3, सूरए आले इ़मरान, आयत नम्बर 49 में ह़ज़रते ई़सा عَلَیْہِ السَّلَام का येह क़ौल मौजूद है :
وَ اُبْرِئُ الْاَكْمَهَ وَ الْاَبْرَصَ وَ اُحْیِ الْمَوْتٰى بِاِذْنِ اللّٰهِۚ- ( پ۳ ، اٰل عمران : ۴۹)
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और मैं पैदाइशी अन्धों को और कोढ़ के मरीज़ों को शिफ़ा देता हूं और मैं अल्लाह के ह़ुक्म से मुर्दों को ज़िन्दा करता हूं ।
ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह बिन अ़ब्बास رَضِیَ اللہُ عَنْہُمَا ने फ़रमाया : ह़ज़रते ई़सा عَلَیْہِ السَّلَام ने चार शख़्सों को ज़िन्दा किया : (1) "आ़ज़र" जिस को आप عَلَیْہِ السَّلَام के साथ मुख़्लिसाना मह़ब्बत थी, जब उस की ह़ालत नाज़ुक हुई, तो उस की बहन ने आप عَلَیْہِ السَّلَام को इत़्त़िलाअ़ दी मगर वोह आप عَلَیْہِ السَّلَام से तीन रोज़ की मसाफ़त के फ़ासिले पर था, जब आप عَلَیْہِ السَّلَام तीन रोज़ में वहां पहुंचे, तो