Book Name:Ghos e Pak Ki Shan o Azmat 10th Rabi ul Akhir 1442

ग़ौसे पाक की करामात

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! पीरों के पीर, पीरे दस्तगीर, रौशन ज़मीर, क़ुत़्बे रब्बानी, मह़बूबे सुब्ह़ानी, ग़ौसे समदानी, क़िन्दीले नूरानी, शहबाज़े ला मकानी, पीरे पीरां, मीरे मीरां, अश्शैख़ अबू मुह़म्मद सय्यिद अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ, अल्लाह पाक के मुक़र्रब वली बल्कि वलियों के सरदार और कसीरुल करामात बुज़ुर्ग थे । चुनान्चे, इमामुल उ़लमा, ह़ज़रते अ़ल्लामा अ़ली क़ारी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ बयान फ़रमाते हैं : शैख़ सय्यिदुना अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की करामात बे शुमार हैं । इस बात पर उ़लमा का इत्तिफ़ाक़ है कि जितनी करामात ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ से ज़ाहिर हुई हैं, आप के इ़लावा किसी भी साह़िबे विलायत से ज़ुहूर में नहीं आईं । (نزہۃ الخاطرالفاتر، ص۲۳)

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! येह एक ह़क़ीक़त है कि अल्लाह पाक जिस के सर पर विलायत का ताज सजाता है, तो उस की ज़ात से ऐसी ऐसी चीज़ों का ज़ुहूर होने लगता है कि अ़क़्लें ह़ैरान और दंग रेह जाती हैं । मसलन अल्लाह पाक की अ़त़ा से औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن मुर्दों को ज़िन्दा कर सकते हैं, इन की बरकत से बारिशें होती हैं, येह मरीज़ों को अच्छा कर देते हैं, अ़त़ाए इलाही से ग़ैब की बातों को जान लेते हैं, दिलों के ज़ंग को दूर फ़रमा देते हैं और मख़्लूके़ ख़ुदा की मुश्किल कुशाई भी फ़रमाते हैं ।

          اَلْحَمْدُ لِلّٰہ हमारे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ का क़दमे पाक तमाम औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن की गरदनों पर है, आप को भी रब्बे करीम ने येह त़ाक़त व क़ुदरत अ़त़ा फ़रमाई थी कि आप अपनी निगाहे विलायत से पोशीदा चीज़ों को मुलाह़ज़ा फ़रमा लिया करते, अपनी करामत से बीमारों को तन्दुरुस्त फ़रमा देते और आप की बारगाह में ह़ाज़िर होने वाला कभी मह़रूम नहीं लौटता था । आइए ! ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की कुछ करामतें भी सुनते हैं । चुनान्चे,

निगाहे ग़ौसे आज़म से चोर क़ुत़ुब बन गया

          मन्क़ूल है कि सरकारे ग़ौसे आज़म رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ मदीनए पाक से ह़ाज़िरी दे कर नंगे पाउं बग़दाद शरीफ़ की त़रफ़ आ रहे थे कि रास्ते में एक चोर खड़ा किसी मुसाफ़िर का इन्तिज़ार कर रहा था कि उस को लूट ले । आप जब उस के क़रीब पहुंचे, तो पूछा : तुम कौन हो ? उस ने जवाब दिया : देहाती हूं । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने कश्फ़ के ज़रीए़ उस के गुनाह और बद किरदारी को लिखा हुवा देख लिया । बहर ह़ाल चोर के दिल में ख़याल आया कि शायद येह ग़ौसे आज़म رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ हैं । ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ को उस के दिल में पैदा होने वाले ख़याल का इ़ल्म हो गया और आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने फ़रमाया : मैं अ़ब्दुल क़ादिर हूं । येह सुनते ही चोर फ़ौरन आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के मुबारक क़दमों पर गिर पड़ा और उस की ज़बान पर "یَاسَیِّدِیْ عَبْدَالْقَادِرِشَیْئًالِلہِ" (यानी ऐ मेरे सरदार अ़ब्दुल क़ादिर ! मेरे ह़ाल पर रह़्म फ़रमाइए) जारी हो गया । आप को उस की ह़ालत पर रह़्म आ गया और उस की इस्लाह़ के लिए बारगाहे इलाही में मुतवज्जेह हुवे । ग़ैब से निदा आई : ऐ ग़ौसे आज़म ! इस चोर को सीधा रास्ता दिखा दो और हिदायत की त़रफ़ रेहनुमाई फ़रमाते हुवे इसे क़ुत़ुब बना दो