Book Name:Ghos e Pak Ki Shan o Azmat 10th Rabi ul Akhir 1442

पांच सौ ग़ैर मुस्लिमों का क़बूले इस्लाम

          ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ मुह़्युद्दीन सय्यिद अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मेरे हाथ पर पांच सौ से ज़ाइद ग़ैर मुस्लिमों ने इस्लाम क़बूल किया और एक लाख से ज़ियादा डाकू, चोर, फ़ासिक़, फ़सादी और गुमराह लोगों ने तौबा की । (بہجة الاسرار ، ذکر وعظہ، ص۱۸۴)

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि हमारे सरदार, शहनशाहे बग़दाद, सरकारे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के बयानात से कितने दिलों में ईमान की रौशनी पैदा हुई और कितने गुनहगार और बदकार गुमराही के रास्ते को छोड़ कर राहे हिदायत के मुसाफ़िर बन गए । इस की बुन्यादी वज्ह येह है कि हमारे सरों के ताज, ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ चूंकि ख़ुद बा अ़मल थे, लिहाज़ा आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के नेकी की दावत पर मुश्तमिल कलिमात तासीर की महक से मुअ़त़्त़र हो कर जब किसी बे अ़मल की समाअ़त से टकराते, तो उस के दिलो दिमाग़ को मेहका देते और वोह गुनाहों को छोड़ कर नेक कामों में मसरूफ़ हो जाता था ।

नेकी की दावत कब असर करेगी ?

          हमें भी चाहिए कि हम दूसरों को नेकी की दावत देने के साथ साथ ख़ुद अपने अन्दर भी अ़मल का जज़्बा बेदार करें । याद रहे ! नेकी की दावत उसी वक़्त ज़ियादा मुअस्सिर होती है कि जब नेकी की दावत देने वाले में अ़मल की रूह़ानिय्यत मौजूद हो क्यूंकि नेकी की दावत दूसरों के दिलो दिमाग़ को तब मेहकाती और अ़मल की त़रफ़ लाती है जब उस में अ़मल की ख़ुश्बू भी हो । लिहाज़ा अगर नेकी की दावत देने और बुराई से मन्अ़ करने वाला ख़ुद बा अ़मल, पाबन्दी से पांच वक़्त की नमाज़ें मस्जिद में बा जमाअ़त पढ़ने वाला और क़ुरआने पाक की तिलावत से अपने दिलो दिमाग़ को मेहकाने वाला होगा, तो उस की बात में भी असर होगा, लोग उस की नमाज़ की दावत सुन कर मस्जिद की त़रफ़ भी जाने वाले और क़ुरआने पाक की तिलावत का जज़्बा पाने वाले बन जाएंगे ।

          यूंही अगर असातिज़ा और वालिदैन ह़ुस्ने अख़्लाक़ से आरास्ता, नमाज़ों के पाबन्द, अच्छी आ़दात वाले, नेकी की दावत देने वाले, फ़र्ज़ के साथ साथ नफ़्ल रोज़े रखने वाले, दर्से फै़ज़ाने सुन्नत देने वाले, अ़लाक़ाई दौरे में शिर्कत करने वाले, हफ़्तावार सुन्नतों भरे इजतिमाअ़ में शिर्कत करने वाले, मदनी मुज़ाकरा देखने, सुनने वाले होंगे, तो उन के शागिर्दों और बच्चों में भी येही ख़ुसूसिय्यात नज़र आएंगी, अलबत्ता अगर नेकी की दावत देने वाला ख़ुद अ़मल से दूर हुवा, तो उस की नेकी की दावत में भी तासीर पैदा नहीं होगी । लिहाज़ा अपनी बात में तासीर पैदा करने के लिए, रिज़ाए इलाही और सवाब को पेशे नज़र रखते हुवे हमें अपनी अ़मली ह़ालत भी दुरुस्त करनी होगी ।

          ह़ुज़ूरे ग़ौसे आज़म رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ख़ुद अ़मल किए बिग़ैर की जाने वाली नसीह़त के बारे में इरशाद फ़रमाते हैं : ख़ुद अ़मल किए बिग़ैर दूसरों को नसीह़त करना कुछ अहम्मिय्यत नहीं रखता । (الفتح الربانی، المجلس العشرون ،ص۷۸) मज़ीद फ़रमाते हैं : ख़ुद अ़मल न कर के दूसरों को नसीह़त करना, ऐसा ही है जैसे बिग़ैर दरवाज़े का घर हो और उस में ज़रूरिय्याते ख़ानादारी भी न हों, ऐसा