Book Name:Ghos e Pak Ki Shan o Azmat 10th Rabi ul Akhir 1442

ख़ज़ाना है जिस में से कुछ ख़र्च न किया जाए और ऐसे दावे की त़रह़ है जिस का कोई गवाह नहीं । (الفتح الربانی،المجلس العشرون ،ص۷۸)

बे वुक़ूफ़ कौन ?

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! अगर किसी डॉक्टर के पास हर बीमारी की अच्छी से अच्छी दवा मौजूद हो और दूसरे लोग उस से फ़ाएदा भी उठाते हों मगर जब ख़ुद उस त़बीब को वोह मरज़ लाह़िक़ हो, तो ला परवाई से काम लेता रहे और बिल आख़िर जान से हाथ धो बैठे, तो उस को बे वुक़ूफ़ ही कहा जाएगा । बिल्कुल इसी त़रह़ जो लोग दूसरों को तो गुनाहों से बचने और नेकियां करने की नसीह़त करते हैं मगर ख़ुद अ़मल की कोशिश नहीं करते, वोह भी सरासर नुक़्सान में हैं ।

          नबिय्ये पाक, साह़िबे लौलाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم ने इरशाद फ़रमाया : कुछ जन्नती लोग जहन्नमियों की त़रफ़ जाएंगे, तो उन से पूछेंगे : तुम जहन्नम में किस वज्ह से दाख़िल हुवे ? अल्लाह पाक की क़सम ! हम तो तुम्हारी ही तालीम से जन्नत में दाख़िल हुवे हैं । वोह कहेंगे : हम जो बात कहा करते थे, उस पर ख़ुद अ़मल नहीं करते थे । (معجم کبیر،۲۲/۱۵۰، حدیث:۴۰۵)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! सरकारे बग़दाद, ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ख़ुद इतने बड़े इ़बादत गुज़ार थे कि आप की इ़बादतो रियाज़त के मामूलात सुन कर बन्दा ह़ैरान रेह जाता है । जब आप वली मश्हूर हो गए, तब भी कसरते इ़बादत आप की त़बीअ़त में शामिल रही । चुनान्चे,

ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के मामूलात

          ह़ज़रते शैख़ मुह़म्मद बिन अबुल फ़त्ह़ हरवी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मैं कुछ रातें ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की ख़िदमत में रहा, मैं ने उन रातों में आप का येह मामूल देखा कि तिहाई रात तक नफ़्ल इ़बादत करते और फिर ज़िक्रो अज़्कार में मसरूफ़ हो जाते फिर कुछ अवरादो वज़ाइफ़ पढ़ते । मैं ने अपनी आंखों से देखा कि कभी आप का जिस्म कमज़ोर (Weak) हो जाता, कभी सेह़तमन्द, किसी वक़्त मेरी निगाहों से ग़ाइब हो जाते फिर थोड़ी देर बाद आ जाते और क़ुरआने करीम पढ़ते, ह़त्ता की रात का दूसरा ह़िस्सा गुज़र जाता । आप सजदे बहुत त़वील करते, अपने चेहरे को ज़मीन पर रखते, तहज्जुद अदा फ़रमाते और मुराक़बे व मुशाहदे में त़ुलूए़ फ़ज्र तक बैठे रेहते फिर निहायत इ़ज्ज़ो नियाज़ और ख़ुशूअ़ से दुआ़ मांगते । उस वक़्त आप को ऐसा नूर ढांप लेता कि नज़रों से ग़ाइब हो जाते, ह़त्ता कि नमाज़े फ़ज्र के लिए दरे दौलत से बाहर तशरीफ़ लाते । (بہجة  الاسرار، ذکر طریقہ، ص۱۶۴ملخصا)

          ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ अपनी इ़बादतो रियाज़त के मामूलात बयान करते हुवे इरशाद फ़रमाते हैं : मैं पच्चीस सालों तक तन्हा जंगलों और वीरानों में रियाज़त करता रहा और पन्द्रह साल तक मैं ने इ़शा इस त़रह़ अदा की, कि उस के बाद ख़त्मे क़ुरआन करता और ख़त्मे क़ुरआन के दौरान एक पाउं पर खड़ा रेहता । एक रात सीढ़ी पर चढ़ते हुवे मेरे नफ़्स ने मुझ से कहा : तुम एक घड़ी भी आराम नहीं करते ? तो मैं ने नफ़्स की येह बात अपने लिए ख़त़रा समझते हुवे एक पाउं पे खड़े हो