Book Name:Ghos e Pak Ki Shan o Azmat 10th Rabi ul Akhir 1442

कर क़ुरआने पाक पढ़ना शुरूअ़ कर दिया और तब तक ऐसे ही खड़ा रहा जब तक क़ुरआने पाक ख़त्म न हो गया । (نزہۃ الخاطر الفاتر، ص۵۰)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की शान

          ऐ आ़शिक़ाने ग़ौसे आज़म ! سُبْحٰنَ اللہ ! आप ने सुना कि हमारे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ कैसे इ़बादत गुज़ार थे । इ़बादत से आप की मह़ब्बत का आ़लम येह था कि आप ने रात को मुख़्तलिफ़ ह़िस्सों में तक़्सीम किया हुवा था, रात के किसी ह़िस्से में ज़िक्रो अज़्कार करते, किसी ह़िस्से में नवाफ़िल अदा करते, कभी लम्बे लम्बे सजदे करते, तो कभी ग़ौरो फ़िक्र में मसरूफ़ हो जाते, किसी वक़्त तिवालते क़ुरआन करते, तो कभी इ़ज्ज़ो इन्केसारी के साथ दुआ़एं मांगने में मश्ग़ूल हो जाते, अल ग़रज़ ! सारी रात येही सिलसिला रेहता । ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ही की शान है कि कई कई सालों तक जंगलों और वीरानों में इ़बादत करते रहे और 15 साल तक इ़शा की नमाज़ इस त़रह़ अदा की, कि उस के बाद एक पाउं पर खड़े हो कर ख़त्मे क़ुरआन करते । चालीस साल तक इ़शा के वुज़ू से फ़ज्र की नमाज़ अदा फ़रमाई, जब आप बे वुज़ू होते, तो फ़ौरन वुज़ू फ़रमाते और दो रक्अ़त नमाज़ नफ़्ल पढ़ते थे । (بہجة الاسرار، ذکر طریقہ، ص ۱۶۴ملخصا)

ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ और हमारा किरदार

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! ग़ौर कीजिए ! एक त़रफ़ तो हमारे सामने सरकारे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की मुक़द्दस सीरत है कि आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ दिन रात इ़बादत में गुज़ारते जबकि हम अपनी ज़िन्दगियां न जाने किन किन फ़ुज़ूल कामों में बरबाद कर रहे हैं । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ बहुत बड़े वलिय्युल्लाह होने के बा वुजूद आख़िरी उ़म्र तक इ़बादत करने और नेकियां कमाने में मसरूफ़ रहे जबकि हम में से ऐसे भी हैं जो अपनी सारी ज़िन्दगी ग़फ़्लत में गुज़ार कर बुढ़ापे में भी नेकियों की त़रफ़ माइल नहीं होते । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ नमाज़ के बहुत पाबन्द थे जबकि हम में से कुछ तो महीनों मसाजिद का मुंह नहीं देखते, बाज़ ई़द की नमाज़ के लिए साल में एक बार ही निहायत एहतिमाम के साथ मस्जिद का रुख़ कर तो लेते हैं लेकिन बाज़ इस सआ़दत से भी मह़रूम नज़र आते हैं । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने सारी ज़िन्दगी अपने नानाजान, रह़मते आ़लमिय्यान صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم की सुन्नतों की इत्तिबाअ़ में गुज़ारी जबकि हम फै़शन के मतवाले दुन्या की रंगीनियों के मस्ताने हैं । अल ग़रज़ ! हम ने ज़िन्दगी को खेल कूद समझ लिया है और अपने बुज़ुर्गों के त़रीके़ से बहुत दूर हो गए हैं, लिहाज़ा हमें चाहिए कि आज मिलने वाली इन चन्द सांसों को ग़नीमत जानें और ख़्वाबे ग़फ़्लत से बेदार हो कर इ़बादत में ज़िन्दगी गुज़ारें ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

इ़बादते इलाही की बरकतें

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! अल्लाह पाक की इ़बादत करना अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام और औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن का त़रीक़ा, दिल में मह़ब्बते इलाही के पैदा होने का