Book Name:Ghos e Pak Ki Shan o Azmat 10th Rabi ul Akhir 1442
थूक मुबारक क्यूं नहीं डाला ? उन्हों ने फ़रमाया : रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ وَاٰلِہٖ وَسَلَّم के अदब की वज्ह से । (ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं :) इतना फ़रमा कर ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ली رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ मेरी आंखों से ओझल हो गए । (بہجة الاسرار ، ذکر فصول من کلامہ…الخ، ص۵۸)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! ह़ुज़ूरे ग़ौसे आज़म, ह़ज़रते मुह़्युद्दीन सय्यिद अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ का पेहला बयान एक अ़ज़ीमुश्शान इजतिमाअ़ में हुवा, जिस पर हैबत व रौनक़ छाई हुई थी, औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن और फ़िरिश्तों ने उस इजतिमाअ़ को ढांपा हुवा था । जब ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने किताबो सुन्नत का मज़मून बयान कर के लोगों को अल्लाह करीम की त़रफ़ बुलाया, तो वोह सब इत़ाअ़त व फ़रमां बरदारी के लिए जल्दी करने लगे । (بہجة الاسرار ، ذکروعظہ، ص۱۷۴)
40 साल तक इस्तिक़ामत से बयान फ़रमाया
शाहे जीलां, सरकारे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के प्यारे बेटे, ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल वह्हाब رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : ह़ुज़ूर सय्यिद शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने 521 हिजरी से 561 हिजरी तक चालीस साल मख़्लूक़ को वाज़ो नसीह़त फ़रमाई । (بہجة الاسرار ، ذکر وعظہ، ص۱۸۴)
ह़ज़रते इब्राहीम बिन साद رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जब हमारे शैख़, ह़ुज़ूरे ग़ौसे आज़म رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ आ़लिमों वाला लिबास पेहन कर ऊंचे मक़ाम पर जल्वा अफ़रोज़ हो कर बयान फ़रमाते, तो लोग आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के मुबारक कलाम को ग़ौर से सुनते और उस पर अ़मल करते । (بہجة الاسرار ، ذکر وعظہ، ص۱۸۹)
ह़ज़रते सय्यिदुना शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जीलानी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के इजतिमाए़ पाक में बा वुजूद येह कि शुरकाए इजतिमाअ़ बहुत ज़ियादा होते थे लेकिन आप की आवाज़े मुबारक जैसे नज़दीक वालों को सुनाई देती थी, वैसी ही दूर वालों को भी सुनाई देती थे, यानी दूर और नज़दीक वालों के लिए आप की आवाज़े मुबारक एक जैसी थी । (بہجة الاسرار ، ذکر وعظہ، ص۱۸۱)
ह़ुज़ूरे ग़ौसे पाक رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ शुरकाए इजतिमाअ़ के दिलों के मुत़ाबिक़ बयान फ़रमाते और कश्फ़ के साथ उन की त़रफ़ मुतवज्जेह हो जाते । जब आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ मिम्बर पर खड़े हो जाते, तो आप के जलाल (रोबो दबदबे) की वज्ह से लोग भी खड़े हो जाते थे और जब आप उन से फ़रमाते : चुप रहो ! तो आप की हैबत की वज्ह से उन की सांसों के इ़लावा कुछ भी सुनाई न देता । (بہجة الاسرار ،ذکر وعظہ، ص۱۸۱)