Book Name:Khof e Khuda Main Rone Ki Ahamiyat

नवाज़ رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने अपने अख़्लाक़ व किरदार से इस्लाम का बोल बाला फ़रमाया, लाखों लोगों को आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने अपनी निगाहे विलायत से फै़ज़ बख़्शा, आप رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने अपने ख़ुलफ़ा और शागिर्दों की ऐसी जमाअ़त तय्यार की जिस ने पाको हिन्द के कोने कोने में दीन का पैग़ाम फैलाया । अल्लाह पाक ह़ज़रते ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ की ख़िदमते दीन के सदके़ हमें भी नेकी की दावत आ़म करने का जज़्बा नसीब फ़रमाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

सजदए तिलावत के अह़काम

          ٭ आयते सजदा पढ़ने या सुनने से सजदा वाजिब हो जाता है । पढ़ने में येह शर्त़ है कि इतनी आवाज़ में हो कि अगर कोई उ़ज़्र न हो, तो ख़ुद सुन सके, सुनने के लिए येह ज़रूरी नहीं कि इरादे से सुनी हो, बिला इरादा सुनने से भी सजदा वाजिब हो जाता है । (فتاوی ھندیہ ،  کتاب الصلوٰۃ ،  باب الثالث عشر۔ ۔ الخ ، ۱ / ۱۳۲) ٭ किसी भी ज़बान में आयत का तर्जमा पढ़ने और सुनने वाली पर सजदा वाजिब हो गया, सुनने वाली ने येह समझा हो या न समझा हो कि आयते सजदा का तर्जमा है, अलबत्ता येह ज़रूर है कि उसे न मालूम हो, तो बता दिया गया हो कि येह आयते सजदा का तर्जमा था और आयत पढ़ी गई हो, तो इस की ज़रूरत नहीं कि सुनने वाली को आयते सजदा होना बताया गया हो । (فتاوی ھندیہ ،  کتاب الصلوٰۃ ،  باب الثالث عشر۔ ۔ الخ ، ۱ / ۱۳۳) ٭ सजदा वाजिब होने के लिए पूरी आयत पढ़ना ज़रूरी है लेकिन बाज़ उ़लमाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ के नज़दीक वोह लफ़्ज़ जिस में सजदे का माद्दा यानी س, ج, د येह तीनों ह़ुरूफ़ मौजूद हों, इस के साथ क़ब्ल या बाद का कोई लफ़्ज़ मिला कर पढ़ा, तो सजदए तिलावत वाजिब हो जाता है, लिहाज़ा एह़तियात़ येही है कि दोनों सूरतों में सजदए तिलावत किया जाए । (फ़तावा रज़विय्या, 8 / 229, मुलख़्ख़सन) ٭ आयते सजदा बैरूने नमाज़ (यानी नमाज़ के इ़लावा) पढ़ी, तो फ़ौरन सजदा कर   लेना वाजिब नहीं है, अलबत्ता वुज़ू हो, तो ताख़ीर मक्रूहे तन्ज़ीही है । (دُرِّمُختار و ردالمحتار ،  کتاب الصلوٰۃ ،  باب سجود التلاوۃ ،   ۲ / ۷۰۳) ٭ सजदए तिलावत नमाज़ में फ़ौरन करना वाजिब है, अगर ताख़ीर की, तो गुनहगार होगी और जब तक नमाज़ में है या सलाम फेरने के बाद कोई नमाज़ के मुनाफ़ी फे़ल नहीं किया, तो सजदए तिलावत कर के सजदए सह्व बजा लाए । (دُرِّمُختار و ردالمحتار ،  کتاب الصلوٰۃ ،  باب سجود التلاوۃ ،   ۲ / ۷۰۴) ٭ ताख़ीर से मुराद तीन आयत से ज़ियादा पढ़ लेना है, कम में ताख़ीर नहीं मगर आख़िरे सूरत में अगर सजदा वाके़अ़ है, मसलन इन्शक़्क़त, तो सूरत पूरी कर के सजदा करेगी, जब भी ह़रज नहीं । (ردالمحتار  ،  کتاب الصلوٰۃ ،  باب سجود التلاوۃ ،   ۲ / ۷۰۶) ٭ ग़ैर मुस्लिम या ना बालिग़ से आयते सजदा सुनी, तब भी सजदए तिलावत वाजिब हो गया । (فتاوی ھندیہ ،  کتاب الصلوٰۃ ،  باب الثالث عشر۔ ۔ الخ ، ۱ / ۱۳۲) ٭ सजदए तिलावत के लिए तह़रीमा के सिवा तमाम वोह शराइत़ हैं जो नमाज़ के लिए हैं, मसलन त़हारत, इस्तिक़्बाले क़िब्ला, निय्यत, वक़्त, सित्रे औ़रत । लिहाज़ा अगर पानी पर क़ादिर है, तयम्मुम कर के सजदा करना जाइज़ नहीं । (دُرِّمُختار و ردالمحتار ،  کتاب الصلوٰۃ ،  باب سجود التلاوۃ ،   ۲ / ۶۹۹) ٭ इस की निय्यत में येह शर्त़    नहीं कि फ़ुलां