Book Name:Khof e Khuda Main Rone Ki Ahamiyat

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

        प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! आइए ! अल्लाह पाक की रिज़ा पाने और सवाब कमाने के लिए पेहले अच्छी अच्छी निय्यतें कर लेती हैं :

          फ़रमाने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ : "نِیَّۃُ الْمُؤمِنِ خَیْرٌ مِّنْ عَمَلِہٖ" मुसलमान की निय्यत उस के अ़मल से बेहतर है । (معجم کبیر ، ۶ / ۱۸۵ ، حدیث : ۵۹۴۲)

अहम नुक्ता : नेक और जाइज़ काम में जितनी अच्छी निय्यतें ज़ियादा, उतना सवाब भी ज़ियादा ।

बयान सुनने की निय्यतें

            मौक़अ़ की मुनासबत और नौइ़य्यत के एतिबार से निय्यतों में कमी बेशी व तब्दीली की जा सकती है । ٭ निगाहें नीची किए ख़ूब कान लगा कर बयान सुनूंगी । ٭ टेक लगा कर बैठने के बजाए इ़ल्मे दीन की ताज़ीम की ख़ात़िर जहां तक हो सका दो ज़ानू बैठूंगी । ٭ ज़रूरतन सिमट सरक कर दूसरी इस्लामी बहनों के लिए जगह कुशादा करूंगी । ٭ धक्का वग़ैरा लगा तो सब्र करूंगी, घूरने, झिड़कने और उलझने से बचूंगी । ٭ اُذْکُرُوااللّٰـہَ ،  تُوبُوْا اِلَی اللّٰـہِ صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْبِ ،  वग़ैरा सुन कर सवाब कमाने और सदा लगाने वाली की दिलजूई के लिए पस्त आवाज़ से जवाब दूंगी । ٭ इजतिमाअ़ के बाद ख़ुद आगे बढ़ कर सलाम व मुसाफ़ह़ा और इनफ़िरादी कोशिश करूंगी । ٭ दौराने बयान मोबाइल के ग़ैर ज़रूरी इस्तिमाल से बचूंगी, न बयान रीकॉर्ड करूंगी, न ही और किसी क़िस्म की आवाज़ कि इस की इजाज़त नहीं । जो कुछ सुनूंगी, उसे सुन और समझ कर, उस पे अ़मल करने और उसे बाद में दूसरों तक पहुंचा कर नेकी की दावत आ़म करने की सआ़दत ह़ासिल करूंगी ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! اِنْ شَآءَ اللّٰہ आज के बयान में हम ख़ौफे़ ख़ुदा में रोने की अहम्मिय्यत के बारे में सुनेंगी । ख़ौफे़ ख़ुदा में रोना कितना फ़ाएदेमन्द साबित हो सकता है, इस पर एक ईमान अफ़रोज़ ह़िकायत बयान की जाएगी । येह भी सुनेंगी कि ख़ौफे़ ख़ुदा केहते किसे हैं ? ख़ौफे़ ख़ुदा में रोने की तरग़ीब पर कुछ रिवायात भी बयान की जाएंगी । यक़ीनन ख़ौफे़ ख़ुदा में रोना सआ़दत की बात है और आंसू बहाने के त़िब्बी फ़वाइद भी हैं, वोह भी पेश किए जाएंगे । अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ السَّلَام और औलियाए किराम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن ख़ौफे़ ख़ुदा में कैसी गिर्या व ज़ारी फ़रमाते थे ? इस के भी कुछ वाक़िआ़त बयान होंगे । अल्लाह करे हम दिलजमई़ और अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ मुकम्मल बयान सुनने की सआ़दत ह़ासिल कर सकें । आइए ! एक ईमान अफ़रोज़ ह़िकायत सुनती हैं । चुनान्चे,

एक क़त़रे की वज्ह से जहन्नम से आज़ादी

          मक्तबतुल मदीना की किताब "ख़ौफे़ ख़ुदा" के सफ़ह़ा नम्बर 142 पर लिखा है : क़ियामत के दिन एक शख़्स को बारगाहे इलाही में लाया जाएगा, उसे उस का आमाल नामा दिया जाएगा, तो वोह उस में कसीर गुनाह पाएगा । फिर अ़र्ज़ करेगा : ऐ मालिके करीम ! मैं ने तो येह गुनाह किए ही नहीं ? अल्लाह पाक इरशाद फ़रमाएगा : मेरे पास इस के मज़बूत़ गवाह (Witnesses) हैं । वोह बन्दा