Book Name:Khof e Khuda Main Rone Ki Ahamiyat
अल्लाह पाक के लिए हो, आख़िरत की फ़िक्र में हो, ख़ौफे़ ख़ुदा की वज्ह से हो जब कि दुन्या के लिए रोने पर आंखों को फ़वाइद तो मिल सकते हैं लेकिन सवाब नहीं मिलेगा । अफ़्सोस ! आज हम अपनी दुन्या अच्छी करने के लिए कितनी बेचैन हैं, दुन्या अच्छी हो जाए, सेह़त ठीक हो जाए, परेशानियां ख़त्म हो जाएं, मुसीबतें दूर हो जाएं, मालो दौलत की कसरत हो जाए, अल ग़रज़ ! बे शुमार दुन्यवी मक़ासिद हैं कि जिन्हें पाने के लिए हम भरपूर कोशिश करती हैं मगर अफ़्सोस ! आख़िरत को बेहतर करने का जज़्बा वैसा नज़र नहीं आता जैसा नज़र आना चाहिए । ऐ काश ! हमें भी दुन्या की ना पाएदारी का ह़क़ीक़ी मानों में एह़सास हो जाए, हमारी भी ग़फ़्लत ख़त्म हो जाए, हमें भी उम्मीदे रह़मत के साथ साथ सह़ीह़ मानों में ख़ौफे़ ख़ुदा की नेमत मिल जाए, बुरे ख़ातिमे का डर हमारे दिल में घर कर जाए, ऐ काश ! हमें अपने मालिके ह़क़ीक़ी की नाराज़ी का हर दम डर लगा रहे, मौत के वक़्त की सख़्तियों, अपने ग़ुस्ले मय्यित व कफ़न, दफ़्न की कैफ़िय्यत और मुर्दा ह़ालत में अपनी बेबसी का एह़सास हो जाए, क़ब्र का अन्धेरा, उस की घबराहट, क़ब्र में आने वाले फ़िरिश्तों के सुवालात और क़ब्र के अ़ज़ाबों का ग़म हमें हर वक़्त सताता रहे । ऐ काश ! मह़शर और पुल सिरात़ की गर्मी, बारगाहे इलाही की पेशी और सब के सामने ऐ़ब खुलने की रुस्वाई का ख़ौफ़ हमें याद रहे, दोज़ख़ की ख़ौफ़नाक चिंघाड़, दोज़ख़ की हौलनाक सज़ाएं और जन्नत की अ़ज़ीम नेमतों से मह़रूमी का ख़ौफ़ हमें बेचैन करता रहे और येह ख़ौफ़ हमारे लिए हिदायत व रह़मत का ज़रीआ़ बन जाए । اٰمِیْن بِجَاہِ النَّبِیِ الْاَمِیْن صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ السَّلَام का ख़ौफे़ ख़ुदा से रोना
प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! इस में कुछ शक नहीं कि अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ السَّلَام वोह मुक़द्दस हस्तियां हैं जो अल्लाह पाक की बारगाह में तमाम मख़्लूक़ से बढ़ कर मर्तबा रखते हैं, जो यक़ीनन अल्लाह पाक के ग़ज़ब, उस के अ़ज़ाब और उस की नाराज़ी से मह़फ़ूज़ हैं, यहां तक अल्लाह पाक ने इन की ह़िफ़ाज़त का वादा कर लिया कि इन से गुनाह हो ही नहीं सकता । (बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा : अव्वल, 1 / 38) बल्कि इन की शान तो येह है कि जिन की सिफ़ारिश येह कर दें, अल्लाह पाक उन्हें भी दुन्या व आख़िरत के अ़ज़ाब से मह़फ़ूज़ फ़रमा लेता है । येह पाकीज़ा शख़्सिय्यात गुनाहों से पाक होने और अल्लाह पाक की रिज़ा के मन्सब पर फ़ाइज़ होने के बा वुजूद भी रोती और गिड़गिड़ाती थीं । मदीने वाले मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ सारी सारी रात इ़बादत में गुज़ार देते थे । अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ السَّلَام में कई ऐसे हैं कि जिन का रोना और गिड़गिड़ाना कई कई दिन तक बर क़रार रेहता था । आइए ! अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ السَّلَام के ख़ौफे़ ख़ुदा में रोने से मुतअ़ल्लिक़ दो रिवायतें सुनती हैं ।
ह़ज़रते दावूद عَلَیْہِ السَّلَام के बारे में आता है कि एक दफ़्आ़ चालीस दिन तक सजदे की ह़ालत में रोते रहे और अल्लाह पाक से ह़या के सबब आसमान की त़रफ़ अपना सर न उठाया । इतना