Book Name:Khof e Khuda Main Rone Ki Ahamiyat

आंसू बहाएं मगर कहां ?

          प्यारी प्यारी इस्लामी बहनो ! मालूम हुवा ! ईमान के तक़ाज़ों में से एक तक़ाज़ा ख़ौफे़ ख़ुदा भी है । यक़ीनन फ़िक्रे आख़िरत से बे क़रार रेहना, अ़ज़ाबे दोज़ख़ से रोना और ख़ौफे़ ख़ुदा में डूबे रेहना बहुत बड़ी नेमत है । अफ़्सोस ! आज दुन्या के ग़म में तो आंसू बहाए जाते हैं मगर फ़िक्रे आख़िरत में रोने का जज़्बा कम होता जा रहा है । ग़ौर तो कीजिए ! इस दुन्या की ह़ैसिय्यत ही क्या है कि इस के लिए आंसू बहाए जाएं ! येह दुन्या तो एक मुसाफ़िर ख़ाने की त़रह़ है जिस में मुसाफ़िर आ कर ठेहरते हैं और चन्द दिन रेहने के बाद रुख़्सत हो जाते हैं । मुसाफ़िर ख़ाने में चन्द दिन रेहने वाला इन्सान कभी भी वहां लम्बी लम्बी उम्मीदें नहीं बांधता, मुसाफ़िर ख़ाने में चन्द दिन रेहने वाला इन्सान कभी भी वहां की रौनक़ों से दिल नहीं लगाता । लिहाज़ा हमें भी दुन्या की फ़िक्र नहीं करनी चाहिए और न ही इस के  लिए आंसू बहाने चाहिएं बल्कि ٭ आंसू बहाने हों, तो ख़ौफे़ ख़ुदा । ٭ इ़श्के़ रसूल । ٭ फ़िक्रे आख़िरत । ٭ गुनाहों की कसरत पर । ٭ नेकियां न कर सकने पर । ٭ मौत की सख़्तियों को याद कर के । ٭ ग़मे मदीना में । ٭ अल्लाह पाक की ख़ुफ़्या तदबीर के ख़ौफ़ से । ٭ क़ब्र को याद कर के । ٭ क़ब्र की घबराहट का सोच कर । ٭ क़ब्र के अन्धेरे को याद कर के ٭ और क़ब्र की तंगी को याद कर के । ٭ क़ियामत के हौलनाक मराह़िल को याद कर के । ٭ येह सोच कर आंसू बहाइए कि क़ियामत के दिन हम अपने एक एक अ़मल का ह़िसाब किस त़रह़ दे सकेंगी ? ٭ मह़शर के दिन की गर्मी को हम कैसे बरदाश्त करेंगी ? ٭ मह़शर के दिन तल्वार से ज़ियादा तेज़ और बाल से बारीक पुल सिरात़ कैसे पार करेंगी ? ٭ हमारा ख़ातिमा ईमान पर होगा या नहीं ? अल ग़रज़ ! फ़िक्रे आख़िरत में बे क़रार हो कर आंसू बहाइए और अगर आंसू न बेहते हों, तो इस बात पर आंसू बहाइए कि हमारे आंसू ख़ौफे़ ख़ुदा से क्यूं नहीं बेहते ?

ख़ौफे़ ख़ुदा में रोने की आ़दत बनाएं

        आइए ! फ़िक्रे आख़िरत में आंसू बहाने की तरग़ीब पर मुश्तमिल 2 फ़रामीने मुस्त़फ़ा सुनती हैं :

1.      इरशाद फ़रमाया : क़ियामत के दिन सब आंखें रोने वाली होंगी मगर तीन आंखें नहीं रोएंगी, उन में से एक वोह होगी जो ख़ौफे़ ख़ुदा से रोई होगी । (کنزالعمال ،  کتاب المواعظ ، ۸ / ۳۵۶ ،  حدیث : ۴۳۳۵)

2.      इरशाद फ़रमाया : ऐ लोगो ! रोया करो और अगर न हो सके, तो रोने की कोशिश किया करो क्यूंकि दोज़ख़ में दोज़ख़ी रोएंगे, यहां तक कि उन के आंसू उन के चेहरों पर ऐसे बहेंगे गोया वोह नालियां हैं, जब आंसू ख़त्म हो जाएंगे, तो ख़ून बेहने लगेगा और आंखें ज़ख़्मी हो जाएंगी । (شرحُ السّنۃ ، ۷  /  ۵۶۵  ، حدیث : ۴۳۱۴)

        आइए ! ख़ौफे़ ख़ुदा में रोने से मुतअ़ल्लिक़ बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن के 3 अक़्वाल भी सुनती हैं :

ह़ज़रते अ़ब्दुल्लाह बिन अ़म्र बिन आ़स رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھُمَا फ़रमाते हैं : ख़ूब रोओ और अगर रोना न आए, तो रोने जैसी सूरत ही बना लो । उस ज़ात की क़सम जिस के क़ब्ज़ए क़ुदरत में मेरी जान है ! अगर तुम में से किसी शख़्स को ह़क़ीक़ते ह़ाल का इ़ल्म हो जाए, तो वोह (ख़ौफे़ ख़ुदा