Book Name:Khuwaja Ghareeb Nawaz

साल की डूबी हुई बारात दुल्हा समेत बाहर निकाल दें । ٭ वोह चाहें, तो अल्लाह पाक की दी हुई त़ाक़त से बड़ी से बड़ी आफ़त को टाल दें । ٭ सोने को मिट्टी बना दें । ٭ मिट्टी को सोने में तब्दील कर दें । ٭ चन्द मिनटों में दूर की चीज़ें ह़ाज़िर कर दें । ٭ बिग़ैर मौसिम के फल बन्द कमरों में ह़ासिल कर लें । ٭ पानी पर चलते हुवे दरया पार कर लें और ٭ वोह चाहें, तो अल्लाह पाक की दी हुई त़ाक़त से परिन्दों की त़रह़ परवाज़ करना शुरूअ़ कर दें ।

          पारह 3, सूरए आले इ़मरान की आयत नम्बर 37 में बयान हुवा कि ह़ज़रते बीबी मरयम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہَا का कमरा हर त़रफ़ से बन्द था जिस में वोह इ़बादते इलाही करती थीं, आप  رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہَا के लिए बिग़ैर मौसिम के मेवे उस बन्द कमरे में ज़ाहिर हो जाते थे । येह ह़ज़रते मरयम رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہَا की करामत थी । (ख़ज़ाइनुल इ़रफ़ान, स. 112, मुलख़्ख़सन) चुनान्चे, इरशाद होता है :

فَتَقَبَّلَهَا رَبُّهَا بِقَبُوْلٍ حَسَنٍ وَّ اَنْۢبَتَهَا نَبَاتًا حَسَنًاۙ-وَّ كَفَّلَهَا زَكَرِیَّاؕ-كُلَّمَا دَخَلَ عَلَیْهَا زَكَرِیَّا الْمِحْرَابَۙ-وَجَدَ عِنْدَهَا رِزْقًاۚ-قَالَ یٰمَرْیَمُ اَنّٰى لَكِ هٰذَاؕ-قَالَتْ هُوَ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِؕ-اِنَّ اللّٰهَ یَرْزُقُ مَنْ یَّشَآءُ بِغَیْرِ حِسَابٍ(۳۷)  (پ ۳، آل عمران، ۳۷)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : तो उस के रब ने उसे अच्छी त़रह़ क़बूल किया और उसे ख़ूब परवान चढ़ाया और ज़करिय्या को उस का निगेहबान बना दिया, जब कभी ज़करिय्या उस के पास उस की नमाज़ पढ़ने की जगह जाते, तो उस के पास फल पाते । (ज़करिय्या ने) सुवाल किया : ऐ मरयम ! येह तुम्हारे पास कहां से आता है ? उन्हों ने जवाब दिया : येह अल्लाह की त़रफ़ से है, बेशक अल्लाह जिसे चाहता है बे शुमार रिज़्क़ अ़त़ा फ़रमाता है ।

          इसी त़रह़ पारह 15, सूरए कह्फ़ की आयत नम्बर 9 ता 26 में बयान हुवा कि अल्लाह पाक के नेक बन्दे "ग़ार वाले" 309 साल तक एक ग़ार में आराम फ़रमा रहे और उन के जिस्मों को कुछ भी न हुवा, येह उन की करामत थी । चुनान्चे, सूरए कह्फ़ की आयत नम्बर 26 में इरशादे रब्बानी है :

 وَ لَبِثُوْا فِیْ كَهْفِهِمْ ثَلٰثَ مِائَةٍ سِنِیْنَ وَ ازْدَادُوْا تِسْعًا(۲۵) قُلِ اللّٰهُ اَعْلَمُ بِمَا لَبِثُوْاۚ-لَهٗ غَیْبُ السَّمٰوٰتِ وَ الْاَرْضِؕ-اَبْصِرْ بِهٖ وَ اَسْمِعْؕ-مَا لَهُمْ مِّنْ دُوْنِهٖ مِنْ وَّلِیٍّ٘-وَّ لَا یُشْرِكُ فِیْ حُكْمِهٖۤ اَحَدًا(۲۶) (پ۱۵،کہف،آیت : ۲۶)

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और वोह अपने ग़ार में तीन सौ साल ठेहरे और नव साल ज़ियादा । तुम फ़रमाओ : अल्लाह ख़ूब जानता है वोह जितना ठेहरे । आसमानों और ज़मीन के सब ग़ैब उसी के लिए हैं, वोह कितना देखने वाला और सुनने वाला है, उन के लिए उस के सिवा कोई मददगार नहीं और वोह अपने ह़ुक्म में किसी को शरीक नहीं करता ।

          इसी त़रह़ पारह 19, सूरतुन्नम्ल की आयत नम्बर 40 में बयान हुवा कि ह़ज़रते सुलैमान عَلَیْہِ السَّلَام के उम्मती, ह़ज़रते आसिफ़ बिन बरख़िया رَحْمَۃُ اللّٰہ عَلَیْہ ने सैंक्ड़ों मील की दूरी पर रखा हुवा भारी तख़्त पलक झपकने से पेहले ह़ज़रते सुलैमान عَلَیْہِ السَّلَام के दरबार में ह़ाज़िर कर दिया । येह उन की करामत थी । (ख़ज़ाइनुल इ़रफ़ान, स. 705, मुलख़्ख़सन) चुनान्चे, अल्लाह पाक इरशाद फ़रमाता है :

قَالَ الَّذِیْ عِنْدَهٗ عِلْمٌ مِّنَ الْكِتٰبِ اَنَا اٰتِیْكَ بِهٖ قَبْلَ اَنْ یَّرْتَدَّ اِلَیْكَ طَرْفُكَؕ-فَلَمَّا رَاٰهُ مُسْتَقِرًّا عِنْدَهٗ قَالَ هٰذَا مِنْ فَضْلِ رَبِّیْ ﱎ (پ۱۹، نمل، آیت  : ۴۰)