Book Name:Ikhtiyarat-e-Mustafa (12Shab)

وَسَلَّمَ ने अपने अ़ज़ीमुश्शान इख़्तियारात से अपने एक सह़ाबी के लिये इन्तिहाई ख़ूब सूरत अन्दाज़ में येह कफ़्फ़ारा मुआ़फ़ फ़रमा दिया । चुनान्चे,

सज़ा को इनआ़म में बदल दिया

      ह़ज़रते सय्यिदुना अबू हुरैरा رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ से मरवी है कि एक शख़्स ने बारगाहे अक़्दस में ह़ाज़िर हो कर अ़र्ज़ की : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ! मैं हलाक हो गया । फ़रमाया : किस चीज़ ने तुम्हें हलाकत में डाल दिया ? अ़र्ज़ की : मैं रमज़ान में अपनी औ़रत से सोह़बत कर बैठा । फ़रमाया : क्या ग़ुलाम आज़ाद कर सकते हो ? अ़र्ज़ की : नहीं ! फ़रमाया : क्या लगातार दो महीने के रोज़े रख सकते हो ? अ़र्ज़ की : नहीं ! फ़रमाया : क्या साठ मिस्कीनों को खाना खिला सकते हो ? अ़र्ज़ की : नहीं ! इतने में ख़िदमते अक़्दस में खजूर लाए गए । ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने (उस शख़्स से) फ़रमाया : इन्हें ख़ैरात कर दो । अ़र्ज़ की : क्या अपने से ज़ियादा किसी मोह़्ताज पर ख़ैरात करूं ? ह़ालांकि मदीने भर में कोई घर हमारे बराबर मोह़्ताज नहीं । فَضَحِکَ النَّبِیُّ صَلَّی اللہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ وَسَلَّمَ حَتّٰی بَدَتْ نَوَاجِذُہُ وَقَالَ اِذْھَبْ فَاَطْعِمْہُ اَھْلَکَ रह़मते आ़लम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ येह बात सुन कर हंसे यहां तक कि दन्दाने मुबारक ज़ाहिर हुवे और फ़रमाया : जाओ ! येह खजूरें अपने घर वालों को खिला दो (समझो कि तुम्हारा कफ़्फ़ारा अदा हो गया) । (مسلم،کتاب الصیام،باب تغلیظ تحریم الجماع…الخ، ص۵۶۰، حدیث:۱۱۱۱)

          आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ "फ़तावा रज़विय्या" में इस ह़दीसे पाक को नक़्ल करने के बा'द मदीने के सुल्त़ान, रह़मते आ़लमिय्यान صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की अ़ज़मत व शान बयान करते हुवे फ़रमाते हैं : मुसलमानो ! गुनाह का ऐसा कफ़्फ़ारा किसी ने भी न सुना होगा (कि रोज़ा तोड़ने पर) सवा दो मन ख़ुरमे (या'नी खजूरें) बारगाहे सरकार صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ से अ़त़ा होते हैं कि ख़ुद खा लो,