Book Name:Ikhtiyarat-e-Mustafa (12Shab)

कफ़्फ़ारा हो गया । वल्लाह ! येह मुह़म्मदुर्रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की बारगाहे रह़मत है कि सज़ा को इनआ़म से बदल दे ।

          (मज़ीद फ़रमाते हैं कि) उन की एक निगाहे करम कबाइर (या'नी कबीरा गुनाहों) को ह़सनात (या'नी नेकियों में तब्दील) कर देती है जब तो अरह़मुर्राह़िमीन جَلَّ جَلَالُـہُ ने गुनाहगारों, ख़त़ावारों, तबाहकारों को उन का दरवाज़ा बताया कि : (پ۴،النساء:۶۴) (وَ لَوْ اَنَّهُمْ اِذْ ظَّلَمُوْۤا اَنْفُسَهُمْ جَآءُوْكَ) गुनाहगार तेरे दरबार में ह़ाज़िर हो कर मुआ़फ़ी चाहें और तू शफ़ाअ़त फ़रमाए, तो ख़ुदा को तौबा क़बूल करने वाला मेहरबान पाएं ।

(फ़तावा रज़विय्या, 30 / 531, मुलख़्ख़सन व मुल्तक़त़न)

आक़ा की आमद...मरह़बा              मुस्त़फ़ा की आमद...मरह़बा

मुज्तबा की आमद...मरह़बा                        त़ाहा की आमद...मरह़बा

'ला की आमद...मरह़बा              बाला की आमद...मरह़बा

मुख़्तार की आमद...मरह़बा            मुख़्तार की आमद...मरह़बा मुख़्तार की आमद...मरह़बा

मरह़बा या मुस्त़फ़ा           मरह़बा या मुस्त़फ़ा           मरह़बा या मुस्त़फ़ा

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

गवाही के मुआ़मले में इख़्तियारे मुस्त़फ़ा

          अल्लाह पाक ने आपस के लेन देन के मुआ़मलात में दो मर्दों को गवाह बनाने का ह़ुक्म देते हुवे पारह 3, सूरतुल बक़रह की आयत नम्बर 282 में इरशाद फ़रमाया :

(پ ۳، البقرۃ:۲۸۲) وَ اسْتَشْهِدُوْا شَهِیْدَیْنِ مِنْ رِّجَالِكُمْۚ-

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और अपने मर्दों में से दो गवाह बना लो ।

मा'लूम हुवा ! किसी भी मुआ़मले में अकेले मर्द की गवाही शरअ़न क़बूल नहीं, येही अल्लाह पाक का ह़ुक्म है जो तमाम मुसलमानों के लिये है मगर ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने अपनी मर्जि़ये मुबारक से ह़ज़रते सय्यिदुना ख़ुज़ैमा رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ को इस ह़ुक्मे आ़म से आज़ाद क़रार देते हुवे किसी भी मुआ़मले में इन की अकेले की गवाही को दो मर्दों की गवाही के बराबर कर दिया और इरशाद