Book Name:Ikhtiyarat-e-Mustafa (12Shab)
फ़रमाया : مَنْ شَھِدَ لَہُ خُزَیْمَۃُ اَوْ شَھِدَ عَلَیْہِ فَہُوَ حَسْبُہُ ख़ुजै़मा (رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ) किसी के ह़क़ में गवाही दें या किसी के ख़िलाफ़ गवाही दें, इन की अकेले की गवाही काफ़ी है । (سنن الکبری،کتاب الشھادات،باب الامر بالاشھاد،۱۰/۲۴۶،حدیث:۲۰۵۱۶) (या'नी इन के गवाही दे देने के बा'द गवाही का निसाब पूरा करने के लिये किसी दूसरे गवाह की ज़रूरत नहीं)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد
इ़द्दत के ह़ुक्म में इख़्तियारे नबवी
अगर किसी औ़रत का शौहर मर जाए और वोह ह़ामिला न हो, तो उस की इ़द्दत अल्लाह पाक ने क़ुरआने करीम में चार माह दस दिन बयान फ़रमाई है । जैसा कि पारह 2, सूरतुल बक़रह की आयत नम्बर 234 में इरशाद होता है :
وَ الَّذِیْنَ یُتَوَفَّوْنَ مِنْكُمْ وَ یَذَرُوْنَ اَزْوَاجًا یَّتَرَبَّصْنَ بِاَنْفُسِهِنَّ اَرْبَعَةَ اَشْهُرٍ وَّ عَشْرًاۚ- (پ ۲، البقرۃ:۲۳۴(
तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : और तुम में से जो मर जाएं और बीवियां छोडें, तो वोह बीवियां चार महीने और दस दिन अपने आप को रोके रहें ।
सदरुल अफ़ाज़िल, ह़ज़रते अ़ल्लामा मौलाना सय्यिद मुफ़्ती मुह़म्मद नई़मुद्दीन मुरादाबादी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِتَعَالٰی عَلَیْہ इस आयते मुबारका की तफ़्सीर बयान करते हुवे फ़रमाते हैं कि ह़ामिला की इ़द्दत तो वज़्ए़ ह़म्ल है (या'नी बच्चा जनते ही इ़द्दत ख़त्म हो जाएगी) जैसा कि सूरए त़लाक़ में मज़कूर (ज़िक्र किया गया) है, यहां ग़ैरे ह़ामिला का बयान है, जिस का शौहर मर जाए, उस की इ़द्दत चार माह दस रोज़ है । इस मुद्दत में न वोह निकाह़ करे, न अपना मस्कन (या'नी शौहर का घर) छोड़े, न बे उ़ज़्र तेल लगाए, न ख़ुश्बू लगाए, न सिंगार करे, न रंगीन और रेशमी कपडे़ पहने, न मेहंदी लगाए, न जदीद (नए) निकाह़ की बात चीत खुल कर करे ।