Book Name:Ikhtiyarat-e-Mustafa (12Shab)

واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के दीन में दाख़िल होने की दा'वत दी थी । मैं ने देखा कि आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ (बचपन में) गहवारे (या'नी झूले) में चांद से बातें करते और अपनी उंगली से उस की जानिब इशारा करते, तो जिस त़रफ़ आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ इशारा फ़रमाते, चांद उस जानिब झुक जाता । ह़ुज़ूरे पुरनूर, शाफ़ेए़ यौमुन्नुशूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने फ़रमाया : मैं चांद से बातें करता था और चांद मुझ से बातें करता था, वोह मुझे रोने से बहलाता था और जब चांद अ़र्शे इलाही के नीचे सजदा करता, तो उस वक़्त मैं उस की तस्बीह़ करने की आवाज़ सुना करता था ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

डूबा सूरज पलट आया

          ख़ैबर के क़रीब मक़ामे सहबा में ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ नमाज़े अ़स्र पढ़ कर ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ली رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ की गोद में अपना सरे अक़्दस रख कर सो गए और आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर वह़्य नाज़िल होने लगी । ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ली رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ सरे अक़्दस को अपनी आगोश में लिये बैठे रहे यहां तक कि सूरज ग़ुरूब हो गया और आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को येह मा'लूम हुवा कि ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ली رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ की नमाज़े अ़स्र क़ज़ा हो गई, तो आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने येह दुआ़ फ़रमाई कि या अल्लाह पाक ! यक़ीनन अ़ली तेरी और तेरे रसूल की इत़ाअ़त (या'नी फ़रमां बरदारी) में (मसरूफ़) थे, लिहाज़ा तू सूरज को वापस लौटा दे ताकि अ़ली नमाज़े अ़स्र अदा कर लें । ह़ज़रते सय्यिदतुना अस्मा बिन्ते उ़मैस رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا फ़रमाती हैं : मैं ने अपनी आंखों से देखा कि डूबा हुवा सूरज पलट आया और पहाड़ों की चोटियों पर और ज़मीन के ऊपर हर त़रफ़ धूप फैल गई । (सीरते मुस्त़फ़ा, स. 722, मुलख़्ख़सन)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد