Book Name:Ikhtiyarat-e-Mustafa (12Shab)

ह़राम कहते हैं, मैं (एक दम ही) इन तमाम गुनाहों को तो नहीं छोड़ सकता, अलबत्ता अगर आप इस बात पर राज़ी हो जाएं कि मैं इन में से सिर्फ़ किसी एक बुराई को छोड़ दूं, तो मैं आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर ईमान लाने को तय्यार हूं । सुल्त़ाने दो जहान, रह़मते आ़लमिय्यान صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : तुम झूट बोलना छोड़ दो । उस ने इस बात को क़बूल कर लिया और मुसलमान हो गया । जब वोह प्यारे आक़ा, मक्की मदनी मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के पास से गया, तो उस को शराब पेश की गई । उस ने सोचा कि अगर मैं ने शराब पी ली और नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने मुझ से शराब पीने के मुतअ़ल्लिक़ पूछा और मैं ने झूट बोल दिया, तो वा'दा ख़िलाफ़ी होगी और अगर मैं ने सच बोला, तो आप صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ मुझ पर ह़द (या'नी शरई़ सज़ा) क़ाइम कर देंगे, लिहाज़ा उस ने शराब को छोड़ दिया फिर उसे बदकारी करने का मौक़अ़ मुयस्सर आया, तो उस के दिल में फिर येही ख़याल आया, लिहाज़ा उस ने इस गुनाह को भी छोड़ दिया, इसी त़रह़ चोरी का मुआ़मला हुवा फिर वोह रसूले अकरम, नूरे मुजस्सम صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ख़िदमत में ह़ाज़िर हुवा और अर्ज़ करने लगा : या रसूलल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ! आप ने बहुत अच्छा किया कि मुझे झूट बोलने से रोक दिया और इस ने मुझ पर तमाम गुनाहों के दरवाज़े बन्द कर दिये । इस के बा'द वोह शख़्स तमाम गुनाहों से ताइब हो गया । (تفسیر کبیر،،پ۱۱،التوبۃ،تحت الآیۃ:۱۱۹،۶/۱۶۷-۱۶۸)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

        मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! इख़्तियाराते मुस्त़फ़ा के बारे में बयान किये गए इन तमाम वाक़िआ़त से अच्छी त़रह़ अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि अल्लाह पाक ने अपने मह़बूब صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को कैसा अ़ज़ीमुश्शान मक़ाम अ़त़ा फ़रमाया है कि शरीअ़त के अह़काम को मुक़र्रर कर देने के बा'द उन