Book Name:Ikhtiyarat-e-Mustafa (12Shab)

          मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! आइये ! मीलादे मुस्त़फ़ा की कुछ ह़सीन घड़ियों का ज़िक्र सुनते हैं कि जब मेरे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की दुन्या में तशरीफ़ आवरी हुई, तारीख़ क्या थी ? दिन क्या था ? क्या ह़ालात थे ? आइये ! सुनिये, ईमान ताज़ा कीजिये ।

          माहे रबीउ़ल अव्वल की 12 तारीख़ और दिन पीर है, ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल मुत़्त़लिब رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْہ, प्यारे नबी صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के प्यारे दादाजान ह़रम शरीफ़ में आ गए हैं । ह़ज़रते सय्यिदतुना आमिना رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا घर में अकेली हैं क्यूंकि सास और शौहर का साया पहले ही उठ चुका था । सुसर त़वाफ़े ख़ानए का'बा में मश्ग़ूल हैं । ख़याल किया कि काश ! इस वक़्त ख़ानदाने अ़ब्दे मनाफ़ की कुछ औ़रतें मेरे पास होतीं । अचानक क्या देखती हैं निहायत ह़सीना व जमीला औ़रतों से घर भर गया । आप رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا ने उन से पूछा : बीबियो ! तुम कौन हो ? कहां से आई हो ? और क्यूं आई हो ? उन में से एक बोलीं : मैं उम्मुल बशर (या'नी) तमाम इन्सानों की मां, ज़ौजए आदम, ह़व्वा हूं, رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا । दूसरी बोलीं : मैं फ़िरऔ़न की बीवी आसिया हूं, رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا । तीसरी बोलीं : मैं ई़सा عَلَیْہِ السَّلَام की वालिदा, मरयम हूं, رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا और बाक़ी तमाम औ़रतें जन्नत की ह़ूरें हैं । आज कौनैन के दुल्हा, दो जहां के दाता, फ़क़ीरों के ह़ाजत रवा, मुह़म्मदुर्रसूलुल्लाह صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की आमद आमद है, इन के इस्तिक़्बाल और आप की ख़िदमत के लिये हम आई हैं । ऐ आमिना ! दरवाज़े के बाहर नज़र डालो चारों त़रफ़ दूर दूर तक फ़िरिश्तों के मेले लगे हुवे हैं, घर में ह़ूरें और मकाने आ़लीशान में फ़िरिश्ते ह़ाज़िर हैं जिन की क़ित़ारें आसमान तक हैं ।

प्यारे नबी, मीठे नबी, अच्छे नबी, सच्चे नबी, आमिना के आंखों के तारे नबी, दाई ह़लीमा के दुलारे नबी, बे सहारों के सहारे नबी صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ख़तना शुदा, नाफ़ बुरीदा, सुरमा लगी हुईं आंखों के साथ तशरीफ़ लाए, हर