Book Name:Ikhtiyarat-e-Mustafa (12Shab)

क़िस्म की आलाइश (या'नी गन्दगी) से पाक बल्कि आलाइशों (या'नी गन्दगियों) से पाक करने के लिये तशरीफ़ लाए । ग़ैब से आवाज़ आने लगी : रब्बे का'बा की क़सम ! का'बे को इ़ज़्ज़त मिल गई, होश्यार हो जाओ ! का'बे को उन का क़िब्ला व मस्कन (या'नी रहने की जगह) ठहरा दिया गया है ।

          मुस्त़फ़ा जाने रह़मत, ताजदारे रिसालत, शहनशाहे नुबुव्वत صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने दुन्या में तशरीफ़ लाते ही रब्बे करीम की बारगाह में सजदा किया, मुबारक उंगलियां आसमान की त़रफ़ उठी हुई थीं, जन्नती फूलों से बढ़ कर ह़सीन होंट ह़रकत कर रहे थे और आवाज़ आ रही थी : رَبِّ ھَبۡ لِیۡ اُمَّتِیۡ ،رَبِّ ھَبۡ لِیۡ اُمَّتِیۡ ،رَبِّ ھَبۡ لِیۡ اُمَّتِیۡ, विलादते मुस्त़फ़ा के मौक़अ़ पर 3 झन्डे नस्ब किये गए, एक मश्रिक़ में, एक मग़रिब में और एक ख़ानए का'बा की छत पर । ह़ज़रते सय्यिदतुना आमिना رَضِیَ اللّٰہُ تَعَالٰی عَنْھَا फ़रमाती हैं : विलादते मुस्त़फ़ा के वक़्त ऐसा नूर चमका कि मशारिक़ो मग़ारिब रौशन हो गए और मैं ने मक्के से शाम के मह़ल्लात वाज़ेह़ त़ौर पर देख लिये ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلٰی مُحَمَّد

        मीठे मीठे इस्लामी भाइयो ! अल्लाह पाक के ह़बीब صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने दुन्या में तशरीफ़ लाते ही सजदा फ़रमाया । काश ! उस सजदे के सदक़े में हमें सजदों की तौफ़ीक़ नसीब हो जाए और हम पांचों नमाज़ें मस्जिद में तकबीरे ऊला के साथ सफ़े अव्वल में पढ़ने के आ़दी बन जाएं । याद रखिये ! हर मुसलमान मर्द व औ़रत पर पांच वक़्त की नमाज़ फ़र्ज़ है । नमाज़ की फ़र्जि़य्यत का इन्कार करने वाला दाइरए इस्लाम से ख़ारिज है, चाहे उस का नाम और दीगर काम मुसलमानों वाले हों । जो बद नसीब एक वक़्त की नमाज़ भी जान बूझ कर क़ज़ा कर देता है, उस का नाम जहन्नम के दरवाज़े पर लिख दिया जाता है । अल्लाह पाक के मह़बूब صَلَّی اللّٰہُ تَعَالٰی عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की आमद की ख़ुशी में जिब्रईले अमीन عَلَیْہِ السَّلَام ने का'बे की छत पर झन्डा नस्ब किया ।  اِنْ شَآءَ اللّٰہ ! हम