Book Name:Aaqa Ka Safar e Meraj (Shab-e-Mairaj-1440)

ज़ियादा है़रान कर देने और तअ़ज्जुब दिलाने वाली बात है । पस इस वाक़िए़ के बा'द आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ "सिद्दीक़" मश्हूर हो गए ।

(مستدرک،کتاب معرفۃ الصحابۃ،باب  ذکر الاختلا ف  فی امر خلافۃ …الخ،۴/۲۵، حدیث:۴۵۱۵)

          ऐ आ़शिक़ाने सह़ाबा व अहले बैत ! आप ने सुना कि मे'राज की तस्दीक़ करने वाले सब से पहले सह़ाबी, आ़शिके़ अक्बर, अमीरुल मोमिनीन, ह़ज़रते सय्यिदुना अबू बक्र सिद्दीक़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ हैं । याद रहे ! नबियों और रसूलों के बा'द इन्सानों में आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ सब से अफ़्ज़ल हैं । आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ के फ़ज़ाइल बे शुमार हैं । नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर ईमान लाने वाले मर्दों में सब से पहले आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ही हैं, सफ़र व ह़ज़र में रसूले करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के साथ रहे, आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के साथ ही हिजरत की सआ़दत ह़ासिल की और उस मक़ाम पर जा पहुंचे कि अपना माल, जान, औलाद, वत़न, अल ग़रज़ ! हर चीज़ आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर क़ुरबान कर दी । येही वज्ह है कि बारगाहे इलाही में आप رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने बहुत बुलन्द रुत्बा पाया और ढेरों ढेर इनआ़माते इलाहिय्या के ह़क़दार भी क़रार पाए । चुनान्चे,

शाने सिद्दीके़ अक्बर

        मे'राज की मुबारक रात जब नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ जन्नत में तशरीफ़ लाए, तो रेशम के पर्दों से आरास्ता एक मह़ल मुलाह़ज़ा फ़रमाया । आक़ा करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने ह़ज़रते जिब्राईल عَلَیْہِ السَّلَام से पूछा : ऐ जिब्रईल ! येह किस के लिये है ? अ़र्ज़ की : ह़ज़रते अबू बक्र सिद्दीक़ رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ के लिये । ( الرياض النضرة، الباب الاول فى مناقب ابى بكر، الفصل الحادى عشر،۲/۱۱۰)

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

मक़ामे मुस्तवा

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! जब आक़ा करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ सिदरतुल मुन्तहा से आगे बढ़े, तो ह़ज़रते जिब्राईल عَلَیْہِ السَّلَام वहीं ठहर गए और आगे जाने से मा'ज़िरत करने लगे । (المواهب اللدنية،، المقصد الخامس،۲/۳۸۱ ) प्यारे नबी صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने इरशाद फ़रमाया : मैं ने जिब्रईले अमीन (عَلَیْہِ السَّلَام) से पूछा : क्या तुम ने अपने रब्बे करीम को देखा है ? उन्हों ने अ़र्ज़ की : मेरे और मेरे रब्बे करीम के दरमियान नूर के सत्तर पर्दे हैं, अगर मैं उन में से किसी के क़रीब भी जाऊं, तो जल जाऊं । (کنز العمال،کتاب القیامۃ،باب رؤیۃ اللہ تعالیٰ ،قسم الاقوال،جزء ۱۴،۷/۱۹۱،حدیث:۳۹۲۰۴) फिर सिर्फ़ मेहरबान आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ (अकेले सिदरतुल मुन्तहा से) आगे बढ़े और बुलन्दी की त़रफ़ सफ़र फ़रमाते हुवे एक मक़ाम पर तशरीफ़ लाए जिसे मुस्तवा कहा जाता है, यहां रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने क़लमों के चलने की आवाज़ें सुनीं । (بخارى، كتاب الصلاة، باب كيف فرضت...الخ، ص۱۶۱، حديث:۳۴۹) येह वोह क़लम थे जिन से फ़िरिश्ते रोज़ाना के अह़कामे इलाहिय्या लिखते हैं और लौह़े मह़फ़ूज़ से एक साल के वाक़िआ़त अलग अलग