Book Name:Aaqa Ka Safar e Meraj (Shab-e-Mairaj-1440)

जब कि क़र्ज़ लेने वाला ह़ाजत के सबब ही क़र्ज़ लेता है । (ابن ماجة، كتاب الصدقات، باب القرض، ص۳۸۹،حديث:۲۴۳۱)

मदनी अ़त़िय्यात की तरग़ीब

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! बयान कर्दा ह़दीसे मुबारका से जहां किसी मुसलमान को क़र्ज़ की ज़रूरत हो, तो अल्लाह पाक की रिज़ा और दीगर अच्छी अच्छी निय्यतों से जितनी तौफ़ीक़ हो क़र्ज़ दे कर ढेरों अज्रो सवाब ह़ासिल करना चाहिये और वहीं येह भी मा'लूम हुवा कि राहे ख़ुदा में ख़र्च करने वाले को भी दस गुना सवाब मिलता है । आइये ! राहे ख़ुदा में ख़र्च करने का जज़्बा पाने के लिये सदके़ के फ़ज़ाइल पर मुश्तमिल 8 अह़ादीसे मुबारका सुनते हैं :

1.      इरशाद फ़रमाया : सदक़ा बुराई के 70 दरवाज़े बन्द करता है ।

(المعجم الکبير ، ۴/۲۷۴، حديث:۴۴۰۲)

2.      इरशाद फ़रमाया : हर शख़्स (बरोज़े क़ियामत) अपने सदके़ के साए में होगा, यहां तक कि लोगों के दरमियान फै़सला फ़रमा दिया जाए ।

(المعجم الکبير ، ۱۷/ ۲۸۰، حديث: ۷۷۱)

3.      इरशाद फ़रमाया : बेशक सदक़ा करने वालों को सदक़ा क़ब्र की गर्मी से बचाता है और बिला शुबा मुसलमान क़ियामत के दिन अपने सदके़ के साए में होगा । (شُعَبُ الايمان، باب الزکاۃ، التحریض علی صدقة التطوع،۳/۲۱۲، حديث:۳۳۴۷)

4.      इरशाद फ़रमाया : बेशक सदक़ा रब्बे करीम के ग़ज़ब को बुझाता और बुरी मौत को दूर करता है । (ترمذی، کتاب الزکاۃ، باب ما جاء فی فضل الصدقة، ۲/ ۱۴۶، حديث:۶۶۴)

5.      इरशाद फ़रमाया : सुब्ह़ सवेरे सदक़ा दो कि बला सदके़ से आगे क़दम नहीं बढ़ाती । (شُعَبُ الايمان، باب فی الزکاۃ،التحريض علی صدقة التطوع،۳/۲۱۴، حديث:۳۳۵۳)

6.      इरशाद फ़रमाया : बेशक मुसलमान का सदक़ा उ़म्र बढ़ाता और बुरी मौत को रोकता है और अल्लाह पाक इस की बरकत से सदक़ा देने वाले से तकब्बुर व बड़ाई करने की बुरी आ़दत दूर कर देता है । (المعجم الکبير ،۱۷/۲۲، حديث:۳۱)

7.      इरशाद फ़रमाया : जो अल्लाह पाक की रिज़ा की ख़ात़िर सदक़ा करे, तो वोह (सदक़ा) उस के और आग के दरमियान पर्दा बन जाता है ।

(مجمع الزوائد،کتاب الزکاۃ، باب فضل الصدقة،۳/ ۲۸۶، حدیث: ۴۶۱۷)

8.      इरशाद फ़रमाया : नमाज़ (ईमान की) दलील है, रोज़ा (गुनाहों से) ढाल है और सदक़ा ख़त़ाओं को यूं मिटा देता है जैसे पानी आग को ।

(ترمذی، ابواب السفر، باب ما ذُکِر فی فضل الصلاۃ، ۲/ ۱۱۸، حديث:۶۱۴)

          'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ "फ़तावा रज़विय्या" जिल्द 23, सफ़ह़ा नम्बर 152 पर फ़ज़ाइले सदक़ात की अह़ादीस ज़िक्र फ़रमा कर उन फ़ज़ाइल को मदनी फूलों की सूरत में बयान फ़रमाते हैं : इन ह़दीसों से साबित हुवा कि जो मुसलमान इस अ़मल में नेक निय्यत (और) पाक माल से शरीक होंगे,