Book Name:Aaqa Ka Safar e Meraj (Shab-e-Mairaj-1440)

          ह़कीमुल उम्मत, ह़ज़रते मुफ़्ती अह़मद यार ख़ान नई़मी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ इस ह़िक्मत को बयान करते हुवे फ़रमाते हैं : ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ह़ज़रते उम्मे हानी बिन्ते अबी त़ालिब رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا के घर सो रहे थे, मलाइका (या'नी फ़िरिश्ते) यहां से जगा कर आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ को ह़त़ीमे का'बा में लाए, अभी तक आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर ऊंघ त़ारी थी फिर यहां ग़ुस्ल दिया, दुन्यावी दुल्हा के जिस्म को ग़ुस्ल दिया जाता है, ह़ुज़ूरे अन्वर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ऐसे अनोखे दुल्हा हैं कि आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के दिल को भी ग़ुस्ल दिया गया । आबे ज़मज़म (ज़मज़म का पानी) दूसरे पानियों (Waters) से अफ़्ज़ल है कि ह़ज़रते सय्यिदुना इस्माई़ल عَلَیْہِ السَّلَام के क़दम से जारी हुवा है, इस लिये येह पानी उस ग़ुस्ल के लिये मुन्तख़ब हुवा । ईमान व ह़िक्मत उन्डेल (या'नी डाल) कर ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का सीना भर दिया फिर उसे सी दिया । ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के क़ल्ब शरीफ़ में ईमान व ह़िक्मत पहले ही से मौजूद था, येह भी (ईमान व ह़िक्मत की) ज़ियादती फ़रमाने के लिये हुवा । (मिरआतुल मनाजीह़, 8 / 152, मुलख़्ख़सन) (हर ऐ़ब से पाक नबी صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का) सीनए पाक पहले ही नूरानी था, अब नूरुन अ़ला नूर हो गया । सोना जन्नती था, पानी ज़मज़म, जन्नती सोने के बरतन में ह़रम का पानी शरीफ़ سُبْحٰنَ اللّٰہ सोने पर सुहागा है ।

(मिरआतुल मनाजीह़, 8 / 136, मुलख़्ख़सन)

शक़्के़ सद्र की ह़िक्मतें

          दा'वते इस्लामी के इशाअ़ती इदारे मक्तबतुल मदीना की किताब "सीरते मुस्त़फ़ा" के सफ़ह़ा नम्बर 79 और 80 पर लिखा है : आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का मुक़द्दस सीना चार मरतबा खोला गया । ٭ पहली मरतबा जब आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ, ह़ज़रते सय्यिदतुना ह़लीमा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْھَا के घर पर तशरीफ़ फ़रमा थे । इस की ह़िक्मत येह थी कि ह़ुज़ूर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ उन वस्वसों और ख़यालात से मह़फ़ूज़ रहें जिन में बच्चे मुब्तला हो कर खेल कूद और शरारतों की त़रफ़ माइल हो जाते हैं । ٭ दूसरी बार दस साल की उ़म्र में हुवा ताकि आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ जवानी की ख़्वाहिशात के ख़त़रात से बे ख़ौफ़ हो जाएं । ٭ तीसरी बार ग़ारे ह़िरा में सीनए मुबारक खोला गया और आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के मुबारक दिल में नूर और चैन व इत़मीनान भर दिया गया ताकि आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ वह़्ये इलाही के अ़ज़ीम बोझ को बरदाश्त कर सकें । ٭ चौथी मरतबा मे'राज की रात आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का मुबारक सीना खोल कर नूर व ह़िक्मत के ख़ज़ानों से भर दिया गया ताकि आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के मुबारक दिल में इतनी कुशादगी और सलाह़िय्यत पैदा हो जाए कि आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ दीदारे इलाही की तजल्लियां और कलामे इलाही की अ़ज़मतें बरदाश्त कर सकें ।

(सीरते मुस्त़फ़ा, स. 79-80, मुलख़्ख़सन)