Book Name:Aaqa Ka Safar e Meraj (Shab-e-Mairaj-1440)

बारी तमाम आसमानों के दरवाज़े खुलवाए । पहले आसमान पर ह़ज़रते आदम عَلَیْہِ السَّلَام, दूसरे आसमान पर ह़ज़रते यह़्या और ह़ज़रते ई़सा عَلَیْہِمَا الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام, तीसरे आसमान पर ह़ज़रते यूसुफ़ عَلَیْہِ السَّلَام, चौथे आसमान पर ह़ज़रते इद्रीस عَلَیْہِ السَّلَام, पांचवें आसमान पर ह़ज़रते हारून عَلَیْہِ السَّلَام, छटे आसमान पर ह़ज़रते मूसा عَلَیْہِ السَّلَام और सातवें आसमान पर ह़ज़रते इब्राहीम عَلَیْہِ السَّلَام दिन रात ह़ुज़ूरे अक़्दस صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ज़ियारत व मुलाक़ात से मुशर्रफ़ हुवे, इन्हों ने ह़ुज़ूरे अन्वर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की इ़ज़्ज़त व तकरीम की और तशरीफ़ आवरी (आमद) की मुबारक बादें दीं, ह़त्ता कि नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ एक आसमान से दूसरे आसमान की त़रफ़ सैर फ़रमाते और वहां के अ़जाइबात देखते हुवे तमाम मुक़र्रबीन (ख़ास फ़िरिश्तों) की आख़िरी मन्ज़िल "सिदरतुल मुन्तहा" तक पहुंचे । इस जगह से आगे बढ़ने की चूंकि किसी मुक़र्रब फ़िरिश्ते की भी मजाल नहीं है, इस लिये ह़ज़रते (सय्यिदुना) जिब्रईले अमीन عَلَیْہِ السَّلَام आगे साथ जाने से मा'ज़िरत कर के वहीं रह गए फिर मक़ामे क़ुर्बे ख़ास में ह़ुज़ूरे पुरनूर صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने तरक़्क़ियां फ़रमाईं और उस क़ुर्बे आ'ला में पहुंचे की जिस के तसव्वुर तक मख़्लूक़ (लोगों) के अफ़्कारो ख़यालात (या'नी सोच) भी परवाज़ (या'नी वहां तक पहुंचने) से आ़जिज़ हैं । वहां रसूले अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ पर ख़ास रह़मत व करम हुवा और आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ इनआ़माते इलाहिय्या और मख़्सूस ने'मतों से सरफ़राज़ फ़रमाए गए, ज़मीनो आसमान की बादशाहत (Kingship) और उन से अफ़्ज़लो बरतर उ़लूम पाए । उम्मत के लिये नमाज़ें फ़र्ज़ हुईं, नबिय्ये करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने बा'ज़ गुनाहगारों की शफ़ाअ़त फ़रमाई, जन्नत व दोज़ख़ की सैर की और फिर दुन्या में अपनी जगह वापस तशरीफ़ ले आए ।

(सिरात़ुल जिनान, 5 / 414, 415, मुलख़्ख़सन)

अल्लाह की इ़नायत मरह़बा !          मे'राज की अ़ज़मत मरह़बा !

अक़्सा  की  शौकत  मरह़बा !          बुराक़ की क़िस्मत मरह़बा !

बुराक़  की  सुरअ़त  मरह़बा !          नबियों की इमामत मरह़बा !

आक़ा  की  रिफ़्अ़त  मरह़बा !         आसमां की सियाह़त मरह़बा !

मकीने ला मकां की अ़ज़मत मरह़बा !

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! आप ने सुना कि नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का सफ़रे मे'राज किस क़दर अ़ज़मतों और इ़नायतों से भरपूर था, जिस में रसूले पाक صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ ने रब्बे करीम की कई अ़ज़ीमुश्शान निशानियां मुलाह़ज़ा फ़रमाईं । येह भी मा'लूम हुवा ! नबिय्ये अकरम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के सीनए मुबारका को अ़ज़ीमुश्शान पानी या'नी ज़मज़म शरीफ़ से ग़ुस्ल दे कर उस में ह़िक्मत को भरा गया । हो सकता है कि किसी के दिल में येह ख़याल पैदा हो कि करीम आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ के पाकीज़ा जिस्म को ग़ुस्ल देने के लिये दीगर पानियों के बजाए ज़मज़म शरीफ़ को ही क्यूं मुन्तख़ब फ़रमाया गया ?