Book Name:Mojiza-e-Mairaj

नहीं देते थे, अल्लाह पाक ने इन पर ज़ुल्म नहीं किया और अल्लाह पाक बन्दों पर ज़ुल्म नहीं फ़रमाता । (الترغيب والترهيب ، كتاب الصدقات ، الترهيب من منع الزكاة...الخ ،  ص٢٦٣ ،  حديث : ١٥)

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! जन्नत की आसाइशों और नेमतों पर नज़र रखने के साथ साथ ज़रा इन अ़ज़ाबात पर भी ग़ौर कीजिए ! कौन है जो इन अ़ज़ाबात को बरदाश्त कर सके ? अल्लाह पाक की क़सम ! किसी में भी दोज़ख़ का अ़ज़ाब बरदाश्त करने की त़ाक़त नहीं और फिर अपनी कमज़ोरी को देखिए । आह ! हमारी कमज़ोरी का ह़ाल तो येह है कि हल्का सा सर दर्द या बुख़ार तड़पा कर रख देता है, तो फिर आख़िरत के येह दर्दनाक अ़ज़ाब कैसे बरदाश्त किए जा सकते हैं ? इस लिए अभी वक़्त है, डर जाइए और फ़ौरन गुनाहों से तौबा कर लीजिए, अगर येह मौक़अ़ हाथ से निकल गया और तौबा से पेहले ही मौत आ गई, तो फिर हलाकत ही हलाकत है ।

          याद रखिए ! दुन्या की ज़िन्दगी बहुत ही मुख़्तसर है जब कि आख़िरत की ज़िन्दगी हमेशा रेहने वाली है । यक़ीनन काम्याब वोही है जो इस चन्द दिन की ज़िन्दगी में अपनी आख़िरत बेहतर करने में लगा रहे, अल्लाह पाक और उस के रसूल صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم की रिज़ा वाले काम कर के जन्नत में दाख़िल हो जाए । पारह 4, सूरए आले इ़मरान की आयत नम्बर 185 में इरशाद होता है :

فَمَنْ  زُحْزِحَ  عَنِ  النَّارِ  وَ  اُدْخِلَ  الْجَنَّةَ  فَقَدْ  فَازَؕ-وَ  مَا  الْحَیٰوةُ  الدُّنْیَاۤ  اِلَّا  مَتَاعُ  الْغُرُوْرِ(۱۸۵) ) پ۴ ،  آل عمران :  ۱۸۵(

तर्जमए कन्ज़ुल इ़रफ़ान : तो जिसे आग से बचा लिया गया और जन्नत में दाख़िल कर दिया गया, तो वोह काम्याब हो गया और दुन्या की ज़िन्दगी तो सिर्फ़ धोके का सामान है ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!       صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

एतिकाफ़ की तरग़ीब

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आइए ! इस चन्द रोज़ा ज़िन्दगी को बेहतर करने के बजाए अपनी आख़िरत को बेहतर करें और नेक आमाल के ज़रीए़ उस जन्नत को ह़ासिल करने की कोशिश करें जहां कोई ग़म नहीं बल्कि वहां हमेशा रेहना है । नेकियों पर इस्तिक़ामत पाने और आख़िरत को बेहतर बनाने का एक बेहतरीन ज़रीआ़ आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी के मदनी माह़ोल से वाबस्ता होना, हर माह 3 दिन के क़ाफ़िले में सफ़र, मदनी इनआ़मात पर अ़मल और दावते इस्लामी के तह़्त पूरे माहे रमज़ान या आख़िरी दस दिनों के सुन्नत एतिकाफ़ में शिर्कत करना भी है । माहे शाबान के बाद اِنْ شَآءَ اللّٰہ माहे रमज़ान भी तशरीफ़ लाएगा, इस माहे मुबारक की बरकतों के तो क्या केहने ! इस माहे रह़मत में इ़बादतो तिलावत और ज़िक्रो दुरूद की कसरत कर के अपने नामए आमाल में ढेरों ढेर नेकियां लिखवाने के मवाके़अ़ बहुत बढ़ जाते हैं । हमें भी चाहिए कि गुनाहों से ख़ुद को बचाने और दिन रात नेकियों में गुज़ारने के लिए आ़शिक़ाने रसूल की मदनी तह़रीक दावते इस्लामी के तह़्त पूरे माहे रमज़ान या आख़िरी दस दिनों के सुन्नत एतिकाफ़ में शिर्कत की न सिर्फ़ ख़ुद सआ़दत ह़ासिल कीजिए बल्कि दीगर इस्लामी भाइयों पर इनफ़िरादी कोशिश कर के उन्हें भी तय्यार कीजिए । आइए ! तरग़ीब के लिए एतिकाफ़ के फ़ज़ाइल पर मुश्तमिल 3 फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم सुनिए । चुनान्चे,

एतिकाफ़ के फ़ज़ाइल

1.      इरशाद फ़रमाया : जिस शख़्स ने ईमान के साथ सवाब ह़ासिल करने की निय्यत से एतिकाफ़ किया, उस के पिछले तमाम गुनाह बख़्श दिए जाएंगे । (جامع صغیر ، ص۵۱۶ ، حدیث : ۸۴۸۰)