Book Name:Mojiza-e-Mairaj
बीमार आया, उसे ठीक कर दिया, खाना कम था, अफ़राद ज़ियादा थे, तो खाना ज़ियादा कर दिया, पानी नहीं था, तो करीम आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ने उंगलियों से पानी के चश्मे जारी फ़रमा दिए । येह तमाम मोजिज़ात भी आक़ा करीम صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم की शानो अ़ज़मत को बयान करते हैं मगर बाज़ मोजिज़ात ऐसे हैं जो अल्लाह पाक ने शाने मुस्त़फ़ा दिखाने के लिए आप صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم से ज़ाहिर फ़रमाए, उन में से एक मोजिज़ा "मोजिज़ए क़ुरआन" जब कि दूसरा मोजिज़ा "मोजिज़ए मेराज" है ।
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! याद रहे ! हर नबी का मोजिज़ा उस की नुबुव्वत की दलील हुवा करता है, मोजिज़ा ही सच्चे और झूटे के दरमियान फ़र्क़ की दलील होता है । ह़ज़रते आदम عَلَیْہِ السَّلَام से ले कर ह़ज़रते ई़सा عَلَیْہِ السَّلَام तक जितने अम्बियाए किराम عَلَیْہِمُ السَّلَام तशरीफ़ लाए, अल्लाह करीम ने उन तमाम नबियों को तक़रीबन उन के दौर के मुत़ाबिक़ मोजिज़ात अ़त़ा फ़रमाए । मिसाल के त़ौर पर :
ह़ज़रते मूसा عَلَیْہِ السَّلَام का मोजिज़ा
ह़ज़रते मूसा عَلَیْہِ السَّلَام के दौरे नुबुव्वत में चूंकि जादू और जादूगरों के कारनामे अपनी तरक़्क़ी की आला तरीन मन्ज़िल पर पहुंचे हुवे थे, इस लिए अल्लाह करीम ने आप को "यदे बैज़ा" और "अ़सा" के मोजिज़ात अ़त़ा फ़रमाए । (تفسیر کبیر ، طہ ، تحت الآیۃ : ۶۹ ، ۸ / ۷۴-۷۵ ، ملتقطاً)
ह़ज़रते ई़सा عَلَیْہِ السَّلَام का मोजिज़ा
ह़ज़रते ई़सा عَلَیْہِ السَّلَام के ज़माने में इ़ल्मे त़िब इन्तिहाई तरक़्क़ी पर पहुंचा हुवा था, ऐसे ऐसे ह़कीम थे जो बड़े बड़े अमराज़ का बेहतरीन इ़लाज किया करते थे, जिस की वज्ह से मरीज़ जल्दी ठीक हो जाते थे, लोग उन ह़कीमों से बड़े मुतास्सिर हो गए थे कि बस येही सब कुछ हैं लेकिन उन ह़कीमों के पास भी पैदाइशी अन्धे, कोढ़ के मरज़ और मौत का कोई इ़लाज नहीं था, इन तीन चीज़ों के इ़लाज से वोह आ़जिज़ थे । तो अल्लाह करीम ने ह़ज़रते ई़सा عَلَیْہِ السَّلَام को जो मोजिज़ात अ़त़ा फ़रमाए उन में से एक येह था कि ई़सा عَلَیْہِ السَّلَام पैदाइशी अन्धे के लिए दुआ़ फ़रमाते, तो अल्लाह करीम उसे बीनाई अ़त़ा फ़रमा देता, कोढ़ के मरीज़ के जिस्म पर हाथ फेरते, तो शिफ़ा देने वाला रब्बे करीम उसे भी शिफ़ा अ़त़ा फ़रमा देता और आप ने अल्लाह पाक की दी हुई त़ाक़त से मुर्दों को भी ज़िन्दा फ़रमाया था ।
ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! इसी त़रह़ हर नबी को उस दौर के माह़ोल के मुत़ाबिक़ और उस की क़ौम के मिज़ाज और त़बीअ़त के मुनासिब मोजिज़ात अ़त़ा हुवे फिर जब हमारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم तशरीफ़ लाए, तो वोह ज़बानो कलाम का दौर था, अ़रब के लोग बड़ी रवानी के साथ मौक़अ़ के मुत़ाबिक़ गुफ़्तगू करने वाले थे और उन्हें अपनी ज़बान पर बड़ा नाज़ था लेकिन जब उन के सामने प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّم ने क़ुरआने पाक की आयात तिलावत फ़रमाईं, तो वोह लोग ह़ैरान हो गए, क़ुरआने पाक का मुक़ाबला करने से आ़जिज़ आ गए और मानने पर मजबूर हो गए कि येह किसी इन्सान का कलाम नहीं है ।