Book Name:Eman Ki Hifazat

पाक की ख़ुफ़्या तदबीर से डरते हुवे ईमान की ह़िफ़ाज़त का जज़्बा अपने अन्दर उजागर करना चाहिये और नेक आ'माल पर कमर बस्ता हो कर अल्लाह पाक की बारगाह में बुरे ख़ातिमे से बचने की दुआ़ करते रहना चाहिये ।

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

ईमान ज़ाएअ़ करने वाले आ'माल

          ऐ आ़शिक़ाने रसूल ! ईमान की ह़िफ़ाज़त करना अल्लाह पाक के फ़ज़्लो करम के साथ साथ बन्दे के इख़्तियार में भी होता है, लिहाज़ा बन्दे को चाहिये कि वोह अपने ईमान की सलामती के लिये अल्लाह पाक की बारगाह में दुआ़ करे, गुनाहों से बचते हुवे ख़ुद को नेकियों में मश्ग़ूल रखे । अगर हम चाहते हैं कि दुन्या से जाते वक़्त हमारा ईमान सलामत रहे, तो इस के लिये हमें उन तमाम कामों से बचना होगा जो ईमान ज़ाएअ़ करने का सबब बनते हैं, जिन की वज्ह से बन्दा इस अ़ज़ीम दौलत से मह़रूम हो जाता है । आइये ! ईमान ज़ाएअ़ (Destroy) करने वाले चन्द कामों के बारे में सुनते हैं और साथ साथ येह निय्यत भी करते हैं कि ऐसे बुरे आ'माल से बचने की भरपूर कोशिश करेंगे कि जिन की वज्ह से ईमान बरबाद हो सकता है । अल्लाह पाक हमारा ईमान सलामत रखे । आइये ! ईमान बरबाद करने वाले चन्द कामों के बारे में सुनते हैं ।

1...बुरी सोह़बत इख़्तियार करना

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! बुरी सोह़बत इख़्तियार करना और बद मज़हबों के साथ उठना, बैठना ईमान के लिये बाइ़से नुक़्सान हो सकता है । जिस त़रह़ शराबियों, जुवारियों और गुनाहों में मुलव्वस रहने वालों के साथ उठना, बैठना बाइ़से हलाकत है, इसी त़रह़ बद मज़हबों से मेल जोल रखना, उन की तक़ारीर सुनना, किताबें पढ़ना, उन के ऑडियो (Audio), वीडियो (Video) बयानात सुनना या सोशल मीडिया (Social Media) के ज़रीए़ दूसरों को शेयर (Share) करना, उन के साथ खाना, पीना या रिश्तेदारी क़ाइम कर लेना भी ईमान के लिये ज़हरे क़ातिल और दुन्या व आख़िरत की शदीद तबाही व बरबादी का सबब है । लिहाज़ा ईमान की ह़िफ़ाज़त के लिये अच्छी सोह़बत इख़्तियार करना, ख़ौफे़ ख़ुदा रखने वाले लोगों में उठना, बैठना बेह़द ज़रूरी है मगर अफ़्सोस ! बा'ज़ नादान मुसलमान बुरे दोस्तों के साथ उठने, बैठने, घन्टों उन के साथ गपशप लगाने, मज़ाक़ करने और ग़ैर सन्जीदा ह़रकतों के आ़दी बनते जा रहे हैं । बुरी सोह़बत की नुह़ूसत उन पर ऐसी छा चुकी है कि उन का हर हर लम्ह़ा यादे इलाही से ग़फ़्लत में गुज़र रहा है, नमाज़ों में सुस्ती हो जाती है लेकिन इस का उन्हें कोई एह़सास तक नहीं होता, उन फ़ुज़ूल बैठकों में उन के कई कई घन्टे ज़ाएअ़ हो जाते हैं मगर उन्हें कोई फ़िक्र नहीं होती, उन दोस्तों के साथ फ़ुज़ूल और बे ह़याई से भरपूर गुफ़्तगू करते करते बसा अवक़ात कुफ़्रिय्यात तक बक दिये जाते हैं और ईमान बरबाद हो जाता है लेकिन उन्हें इस का इ़ल्म तक नहीं होता ।