Book Name:Eman Ki Hifazat

          जब ह़ज़रते सय्यिदुना ह़ुज़ैफ़ा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ की मौत का वक़्त क़रीब आया, तो रो दिये और शदीद घबराहट का इज़्हार होने लगा । लोगों ने उन से रोने का सबब पूछा, तो फ़रमाया : मैं दुन्या छूटने पर नहीं रोता क्यूंकि मौत मुझे मह़बूब है बल्कि मैं तो इस लिये रो रहा हूं कि मैं अल्लाह पाक की रिज़ा पर दुन्या से जा रहा हूं या नाराज़ी में ? (اسد الغابۃ،حذیفۃ بن الیمان،۱/۵۷۴)

ईमान की ह़िफ़ाज़त और तन्हाई

          मन्क़ूल है : एक शख़्स सब से अलग रहता था । ह़ज़रते सय्यिदुना अबू दर्दा رَضِیَ اللّٰہُ عَنْہ ने उस के पास तशरीफ़ ला कर इस का सबब पूछा, तो उस ने कहा : मेरे दिल में येह ख़ौफ़ बैठ गया है कि कहीं ऐसा न हो मेरा ईमान छिन जाए और मुझे इस की ख़बर तक न हो । (क़ूतुल क़ुलूब, 1 / 388)

सारी रात रोते रहते

          ह़ज़रते सय्यिदुना युसूफ़ बिन अस्बात़ رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : मैं एक मरतबा ह़ज़रते सय्यिदुना सुफ़्यान सौरी رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के पास ह़ाज़िर हुवा । आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ सारी रात रोते रहे । मैं ने पूछा : क्या आप गुनाहों के ख़ौफ़ से रो रहे हैं ? तो आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने एक तिन्का उठाया और इरशाद फ़रमाया : गुनाह तो अल्लाह पाक की बारगाह में इस तिन्के से भी कम ह़ैसिय्यत रखते हैं, मुझे इस बात का ख़ौफ़ है कि कहीं ईमान की दौलत न छिन जाए । (منہاج العابدین، العقبۃ الخامسۃ، اصول سلوک طریق الخوف والرجاء ،الاصل الثالث،ص۱۵۵)

मेरा ख़ातिमा ईमान पर कर दे

          ह़ज़रते सय्यिदुना इमाम अह़मद बिन ह़म्बल رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के इन्तिक़ाल के वक़्त जब आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ के साह़िब ज़ादे ने त़बीअ़त पूछी, तो फ़रमाया : अभी जवाब का वक़्त नहीं है, बस दुआ़ करो कि अल्लाह पाक मेरा ख़ातिमा ईमान पर कर दे क्यूंकि शैत़ान मर्दूद अपने सर पर ख़ाक डालते हुवे मुझ से कह रहा है कि तेरा दुन्या से ईमान सलामत ले जाना मेरे लिये रन्जो ग़म का बाइ़स है और मैं उस से कह रहा हूं कि अभी नहीं ! जब तक एक भी सांस बाक़ी है, मैं ख़त़रे में हूं, मैं (तुझ से) अमन में नहीं हो सकता । (تذکرۃ الاولیاء،ذکر امام احمد حنبل،الجزء الاول، ص۱۹۹)

          ऐ आ़शिक़ाने औलिया ! आप ने सुना कि हमारे बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن किस क़दर ख़ौफे़ ख़ुदा के पैकर हुवा करते थे, उन की पूरी ज़िन्दगी शरीअ़तो सुन्नत के मुत़ाबिक़ गुज़रती थी, उन का हर हर लम्ह़ा यादे इलाही में गुज़रता था, येह ह़ज़रात सच्चे आ़शिके़ रसूल और नफ़्सो शैत़ान की चालों से अच्छी त़रह़ आगाह थे मगर इस के बा वुजूद ईमान की ह़िफ़ाज़त के मुआ़मले में बहुत डरते, ईमान छिन जाने के ख़ौफ़ से थरथर कांपते और प्यारे आक़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ की ता'लीमात को पेशे नज़र रखते हुवे दीने मतीन पर साबित क़दमी रहते । लिहाज़ा हमें भी अम्बियाए किराम عَلَیْھِمُ الصَّلٰوۃُ وَالسَّلَام, सह़ाबए किराम عَلَیْہِمُ الرِّضْوَان और अपने बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن की सीरत पर अ़मल करते हुवे अल्लाह