Book Name:Eman Ki Hifazat
कुफ़्रिय्यात की गहरी खाई में जा पड़ता है और उसे इस बात का पता तक नहीं चलता कि उस का ईमान बरबाद हो चुका है । हमारे मुआ़शरे में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं जिन्हें दीनी मा'लूमात बहुत कम होती हैं मगर ऐसी फ़ुज़ूल (Useless) बह़सें करते हैं कि जैसे उन के पास इ़ल्म का बहुत बड़ा ख़ज़ाना मौजूद है । ऐसे जाहिल लोग अपनी ज़बान से कुफ़्रिय्यात तक बक जाते हैं ।
आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ "फ़तावा रज़विय्या" जिल्द 24, सफ़ह़ा नम्बर 159 ता 160 पर ऐसों के बारे में नक़्ल फ़रमाते हैं : कोई आदमी बदकारी और चोरी करे, तो बा वुजूद गुनाह होने के इस के लिये येह अ़मल इतना मोहलिक (या'नी हलाक करने वाला) और तबाह कुन नहीं (होता) जितना बिला तह़क़ीक़ इ़ल्मे इलाही के बारे में कलाम करना मोहलिक (या'नी हलाक करने वाला) है क्यूंकि बिला तह़क़ीक़ और बिग़ैर पुख़्तगिये इ़ल्म के कहीं वोह कुफ़्र का मुर्तकिब (या'नी कुफ़्र करने वाला) हो जाएगा और उसे इ़ल्म भी नहीं होगा ! इस की मिसाल ऐसे ही है जैसे तैरना जाने बिग़ैर दरया की मौजों और लहरों पर सुवार होने के, और शैत़ान की फ़रेब कारियां जो अ़क़ाइद और मज़ाहिब से तअ़ल्लुक़ रखती हैं, कोई ढकी छुपी नहीं हैं और अल्लाह (पाक) सब कुछ ख़ूब जानता है । (الحدیقۃ الندیۃ،۲/۲۷۰)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
3...ज़बान की ह़िफ़ाज़त न करना
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! ज़बान की ह़िफ़ाज़त न करना भी बा'ज़ अवक़ात ईमान की बरबादी की सबब बन जाता है । आज कल लोगों की ह़ालत येह हो गई है कि जो मुंह में आया बक दिया, अल्लाह पाक की ख़ुशी और ना ख़ुशी का एह़सास कम होता जा रहा है । आज कल नौजवान कुफ़्रिय्या अश्आ़र पर मुश्तमिल गाने (Songs) सुन कर अपनी ज़बान से गुनगुनाते फिरते हैं, इसी ज़बान से जन्नत, दोज़ख़, फ़िरिश्तों और अल्लाह पाक की शान में तौहीन वाले चुटकुले सुनाए जाते हैं, इसी ज़बान से अपनी ग़रीबी का रोना रोते रोते बा'ज़ कुफ़्रिय्यात बक जाते हैं, इसी ज़बान से किसी जवान या घर का ख़र्चा चलाने वाले की मौत पर अल्लाह पाक की ज़ात के तअ़ल्लुक़ से शिक्वा व शिकायात भरे कुफ़्रिय्यात बक दिये जाते हैं ।
ख़ुदारा ! होश में आइये और अपनी ज़बान को क़ाबू में रखते हुवे इसे फ़ुज़ूल, बेहूदा और कुफ़्रिय्या बातों से बचाइये वरना याद रखिये ! बसा अवक़ात ज़बान से ला इ़ल्मी में ऐसा जुम्ला निकल जाता है जो हमारे ईमान की बरबादी और दोज़ख़ की ह़क़दारी का सबब बन जाता । आइये ! इस बारे में दो फ़रामीने मुस्त़फ़ा صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ सुनिये और अपने ईमान की ह़िफ़ाज़त कीजिये ।
1. इरशाद फ़रमाया : आदमी अपने साथियों को हंसाने के लिये एक कलिमा कहता है लेकिन उस के सबब वोह सुरय्या (सितारे के फ़ासिले) से भी दूर (दोज़ख़ में) जा गिरता है । (مسندامام احمد،مسند ابی ھریرة،۳/ ۳۶۶،حدیث: ۹۲۳۱)