Book Name:Eman Ki Hifazat
था, उस की मौत दीने इस्लाम पर नहीं हुई, तुम अल्लाह पाक से उस की मुआ़फ़ी, मग़फ़िरत और उस की रिज़ा त़लब करो । (सिरात़ुल जिनान, 3 / 137, روح البیان، الانعام،تحت الآیۃ: ۷۰، ۳/۵۱)
صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب! صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد
प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! बयान कर्दा अस्बाब वोह हैं जो बुरे ख़ातिमे का बाइ़स बन सकते हैं, इस के इ़लावा ईमान छिन जाने के और भी बहुत से अस्बाब हैं, मसलन नमाज़ में सुस्ती, शराब नोशी, वालिदैन की ना फ़रमानी, मुसलमानों को तक्लीफ़ देना । (शर्ह़ुस्सुदूर, स. 27) लिहाज़ा हमें अपने ईमान की सलामती के लिये इन तमाम अस्बाब से बचने की कोशिश करनी चाहिये क्यूंकि जो ख़ुश नसीब मुसलमान ब ह़ालते ईमान सलामत ले कर इस दुन्या से रुख़्सत होते हैं, अल्लाह पाक अपनी रह़मत से उन्हें दाख़िले जन्नत फ़रमाएगा, اِنْ شَآءَ اللّٰہ । ईमान पर ख़ातिमे के लिये फ़राइज़ व वाजिबात की अदाएगी के साथ साथ हमारे बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن ने मुख़्तलिफ़ अवरादो वज़ाइफ़ भी अ़त़ा फ़रमाए हैं, जो शख़्स इन पर अ़मल करेगा, اِنْ شَآءَ اللّٰہ मौत के वक़्त उस का ईमान सलामत रहेगा । आइये ! ईमान पर ख़ातिमे के पांच अवरादो वज़ाइफ़ सुनते हैं । चुनान्चे,
ख़ातिमा बिल ख़ैर के 5 अवराद
एक शख़्स आ'ला ह़ज़रत, इमामे अहले सुन्नत, मौलाना शाह इमाम अह़मद रज़ा ख़ान رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ की बारगाह में ह़ाज़िर हो कर ईमान पर ख़ातिमा बिल ख़ैर के लिये दुआ़ का त़ालिब हुवा, तो आप رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ ने उस के लिये दुआ़ फ़रमाई और इरशाद फ़रमाया : (1) रोज़ाना 41 बार सुब्ह़ को یَا حَیُّ یَا قَیَّوْمُ لَآ اِلٰہَ اِلَّا اَنْتَ (तर्जमा : ऐ हमेशा ज़िन्दा रहने वाले ! ऐ हमेशा क़ाइम रहने वाले ! कोई मा'बूद नहीं मगर तू) अव्वल व आख़िर दुरूद शरीफ़ पढ़ लिया करें । (अल वज़ीफ़तुल करीमा, स. 21) (2) सोते वक़्त अपने सब अवराद के बा'द सूरए काफ़िरून रोज़ाना पढ़ लिया कीजिये, इस के बा'द कलाम वग़ैरा न कीजिये, हां ! अगर ज़रूरत हो, तो कलाम (बात) करने के बा'द फिर सूरए काफ़िरून तिलावत कर लीजिये कि ख़ातिमा इसी पर हो, اِنْ شَآءَ اللّٰہ ख़ातिमा ईमान पर होगा । (अल वज़ीफ़तुल करीमा, स. 34) (3) 3 बार सुब्ह़ और 3 बार शाम इस दुआ़ का विर्द रखिये :
اَللّٰھُمَّ اِنَّا نَعُوْذُبِکَ مِنْ اَنْ نُّشْرِکَ بِکَ شَیْئًا نَّعْلَمُہٗ وَ نَستَغْفِرُکَ لِمَالَانَعْلَمُہ
(तर्जमा : ऐ अल्लाह पाक हम तेरी पनाह मांगते हैं इस से कि जान कर हम तेरे साथ किसी चीज़ को शरीक करें और हम उस से तौबा करते हैं जिस को नहीं जानते) । (अल वज़ीफ़तुल करीमा, स. 17) (4) तफ़्सीरे सावी में लिखा है : जो कोई ह़ज़रते सय्यिदुना ख़िज़्र عَلَیْہِ السَّلَام का नाम कुन्यत व वलदिय्यत व लक़ब के साथ याद रखेगा, اِنْ شَآءَ اللّٰہ उस का ईमान पर ख़ातिमा होगा । आप का नाम, कुन्यत व वलदिय्यत व लक़ब के साथ इस त़रह़ है : अबुल अब्बास बल्या बिन मल्कान अल ख़िज़्र । ( تَفْسِیْرِ صاوی، ۲/۱۲۰۷-۱۲۰۸) (5) بِسْمِ اللّٰہِ عَلٰی دِیْنِیْ،بِسْمِ اللّٰہِ عَلٰی نَفْسِیْ وَوُلْدِیْ وَ اَھْلِیْ وَمَالِی (तर्जमा : अल्लाह पाक के नाम की बरकत से मेरे दीन, जान, औलाद और अहल व माल की ह़िफ़ाज़त हो) सुब्ह़ो शाम 3, 3 बार पढ़िये, दीन, ईमान, जान, माल, बच्चे सब मह़फ़ूज़ रहें । (अल वज़ीफ़तुल करीमा, स. 17)