Book Name:Eman Ki Hifazat

یَامُجِیۡرُ یَامُجِیۡرُ یَامُجِیۡرُo

ऐ नजात देने वाले ! ऐ नजात देने वाले ! ऐ नजात देने वाले !

بِرَحۡمَتِکَ یَآاَرۡحَمَ الرّٰحِمِیۡنَo

अपनी रह़मत के सबब हम पर रह़म फ़रमा, ऐ सब से बढ़ कर रह़म फ़रमाने वाले !

صَلُّوْا عَلَی الْحَبِیْب!      صَلَّی اللّٰہُ عَلٰی مُحَمَّد

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! आप ने सुना कि मौत का मर्ह़ला किस क़दर दुशवार होता है कि सांस अटक रही होती है, होशो ह़वास जवाब दे जाते हैं, प्यास की शिद्दत अपनी इन्तिहा पर होती है, ऐसे मुश्किल ह़ालात में शैत़ान मल्ऊ़न अपनी औलाद के साथ मिल कर अपनी अस्ल शक्ल में नहीं बल्कि अ़ज़ीज़ों, मां-बाप, बहन भाइयों और दोस्तों की शक्ल में आ कर अपनी नुह़ूसतें लुटाता, ईमान वालों के ईमान से निहायत ख़त़रनाक अन्दाज़ में खेलता और दौलते ईमान को ज़ाएअ़ करने के लिये मुख़्तलिफ़ त़रीके़ आज़माता है । हमारे बुज़ुर्गाने दीन رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہِمْ اَجْمَعِیْن मौत के वक़्त ईमान सलामत रहने के बारे में बहुत ग़मगीन रहते थे । जैसा कि :

          ह़ज़रते सय्यिदुना मन्सूर बिन अ़म्मार رَحْمَۃُ اللّٰہ ِ عَلَیْہ फ़रमाते हैं : जब बन्दे की मौत का वक़्त क़रीब आता है, तो मरने वाले की ह़ालत 5 त़रह़ की होती है : (1) माल, वारिस के लिये । (2) रूह़, मौत के फ़िरिश्ते के लिये । (3) गोश्त, कीड़ों के लिये । (4) हड्डियां, मिट्टी के लिये और (5) नेकियां, क़ियामत के दिन अपने ह़क़ का मुत़ालबा करने वालों के लिये होती हैं । मज़ीद फ़रमाते हैं : वारिस माल ले जाए, तो क़ाबिले बरदाश्त है, इसी त़रह़ मौत का फ़िरिश्ता रूह़ ले जाए, तो भी दुरुस्ता है मगर ऐ काश ! मौत के वक़्त शैत़ान ईमान न ले जाए, वरना अल्लाह पाक से जुदाई हो जाएगी, हम उस से अल्लाह पाक की पनाह त़लब करते हैं क्यूंकि अगर सब जुदाइयां एक त़रफ़ जम्अ़ हो जाएं और रब्बे करीम की जुदाई एक त़रफ़ हो, तो येह तमाम जुदाइयों से ज़ियादा भारी है जिसे कोई बरदाश्त नहीं कर सकता । (ह़िकायतें और नसीह़तें, स. 37, मुलख़्ख़सन)

          प्यारे प्यारे इस्लामी भाइयो ! अल्लाह न करे, हमारे बुरे आ'माल की वज्ह से अगर मरते वक़्त अल्लाह पाक और उस के ह़बीब صَلَّی اللّٰہُ عَلَیْہِ واٰلِہٖ وَسَلَّمَ का फ़ज़्लो करम शामिले ह़ाल न रहा, शैत़ान मर्दूद ग़ालिब आ गया और مَعَاذَ اللّٰہ ईमान बरबाद हो गया, तो ख़ुदा पाक की क़सम ! ज़िल्लतो रुस्वाई मुक़द्दर हो जाएगी और मरने के बा'द हमेशा हमेशा के लिये दोज़ख़ की दहकती हुई आग में झोंक दिया जाएगा और जहन्नम का अ़ज़ाब इस क़दर शदीद होगा कि हमारे नाज़ुक बदन उस को बरदाश्त नहीं कर सकेंगे । पारह 16, सूरतुल कह्फ़ की आयत नम्बर 105 ता 107 में इरशादे बारी है :

اُولٰٓىٕكَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا بِاٰیٰتِ رَبِّهِمْ وَ لِقَآىٕهٖ فَحَبِطَتْ اَعْمَالُهُمْ فَلَا نُقِیْمُ لَهُمْ یَوْمَ الْقِیٰمَةِ وَزْنًا(۱۰۵) ذٰلِكَ جَزَآؤُهُمْ جَهَنَّمُ بِمَا كَفَرُوْا وَ اتَّخَذُوْۤا اٰیٰتِیْ وَ رُسُلِیْ هُزُوًا(۱۰۶) اِنَّ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ كَانَتْ لَهُمْ جَنّٰتُ الْفِرْدَوْسِ نُزُلًاۙ(۱۰۷))پ۱۶،الکہف:۱۰۵تا۱۰۷)